अपने छुटपने में अपनी दादी के साथ
नदी के तट पर आया था
वहां दहाड़ खाती, कोलाहल करती नदी थी
निर्जन-सा घाट-तट था, कुछ नावें थीं।
कुछ अशिक्षित नाविक और मछुआरे थे
अपने यौवनकाल में,
दूर-दूर तक सुंदर रोशनी के नजारे हैं
दूर तक फैले हुए बतियाते हुए
प्रेमी युगलों के समूह हैं
अपनी अंतिम सांस को लेते हुए
जैसे कह रही है, तुम्हें यदि नदी, पोखरों को
बचाना है, तो उसके असली स्वरूप को लाना होगा
उसे फिर से यौवन का रूप वापस करना होगा
फिर से सुनो, सुनते जाओ नदी, पोखरों को बचाना होगा
ताकि नदी-पोखरे जिंदा रह सकें।