हिजबुल्लाह और इस्लामिक जिहाद की एंट्री की आहट धकेल सकती है दुनिया को तीसरे वर्ल्ड वॉर की तरफ
हमास-इजरायल जंग दुनिया को किस तरफ ले जाएगी
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रूस-यूक्रेन जंग को सालभर से ज्यादा होने जा रहा है। न रूस तबाही मचाने में कोई कसर रख रहा है, और न ही यूक्रेन हार मानने को तैयार है। ऐसे में अब इजरायल और हमास के बीच हो रही भीषण जंग ने दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ धकेलना शुरू कर दिया है। इस जंग में हमास तो लड़ ही रहा है,लेकिन अब हिजबुल्लाह और इस्लामिक जिहाद जैसे आतंकी संगठनों की आहट भी सुनाई देने लगी है। अगर इजरायल-हमास के बीच हिजबुल्लाह और इस्लामिक जिहाद की एंट्री होती है तो यह न सिर्फ इजरायल बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे का अलार्म होगा।
जानते हैं आखिर क्या हैं हमास,हिजबुल्लाह और इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों की ताकत, उनका मकसद और उनके आतंक का इतिहास।
हमास क्या है? (What is Hamas)
हमास एक आतंकी संगठन है। इसकी स्थापना 1987 में फलस्तीन शरणार्थी शेख अहमद यासीन (Sheikh Ahmed Yassin) ने की थी। न्यूज एजेंसी एपी के मुताबिक हमास इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन का अरबी संक्षिप्त रूप है। हमास ने कई बार इजरायली नागरिकों और सैनिकों पर हमले किए हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने 1997 में हमास को आतंकी समूह घोषित किया था। यूरोपीय संघ और अन्य पश्चिमी देश भी इसे एक आतंकी संगठन मानते हैं।
किसने की स्थापना, कौन है हमास का नेता?
मौजूदा समय की बात करें तो येहिया सिनवार (Yehia Sinwar) और इस्माइल हनियेह (Ismail Haniyeh) हमास के नेता है। हनियेह निर्वासन में रह रहा है। हमास की स्थापना यासीन (Hamas founder Yassin) ने की थी। वह लकवाग्रस्त था, जिसके कारण व्हीलचेयर का प्रयोग करता था। वह कई वर्षों तक इजरायल की जेल में रहा। यासीन ने 1993 में पहला आत्मघाती हमला किया। हालांकि इजरायली सेना की कार्रवाई में वह 2004 में मारा गया। इसके बाद खालिद मशाल नेता बना। हमास ने 2006 में संसदीय चुनाव में जीत हासिल की। इसके बाद उसने 2007 में हिंसा के दम पर फलस्तीनी प्राधिकरण से गाजा पट्टी को छीन लिया। फलस्तीनी प्राधिकरण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त था। अब यह इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक के अर्ध-स्वायत्त क्षेत्रों पर शासन करता है। हमास को कतर और तुर्की जैसे अरब देशों का समर्थन भी मिला हुआ है। कुछ समय से वह ईरान और उसके सहयोगियों का भी करीबी बन गया गया है।
हमास की ताकत
1987 में फलस्तीन शरणार्थी शेख अहमद यासीन ने की थी हमास की स्थापना
अमेरिका ने 1997 में हमास को आतंकी समूह घोषित किया।
कुछ रिपोर्ट्स में हमास के लड़ाकों की संख्या 50 हजार से बताई गई है
BBC के मुताबिक हमास रॉकेट से लेकर मोर्टार और ड्रोन अटैक क्षमता से लैस है
अकेले कतर ही हमास को 1.8 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दे चुका है। हमास के समर्थक दुनियाभर में हैं
इस्लामी जिहाद (PJI) क्या है?
अमेरिकी विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों में विशेषज्ञता वाले थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (OFR) की रिपोर्ट के मुताबिक फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) एक इस्लामी फ़िलिस्तीनी राष्ट्रवादी संगठन है। ये इज़रायल के अस्तित्व का हिंसक विरोध करता है। अमेरिकी विदेश विभाग की आतंकवाद पर 2006 की रिपोर्ट के मुताबिक 1997 में PIJ के आतंकवादी संगठन होने का ऐलान किया था।
PIJ पूरे फिलिस्तीन में एक इस्लामी शासन लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता में इजरायली नागरिकों और सैन्य कर्मियों को निशाना बनाता है। हालांकि, फतह या हमास के उलट पीआईजे राजनीतिक प्रक्रिया में शिरकत नहीं करता है। ये हमास के बाद गाजा का दूसरा सबसे बड़ा चरमपंथी संगठन है। अमेरिका के नेशनल काउंटरटेररिज़्म सेंटर के मुताबिक इस्लामिक जिहाद को ईरान और लेबनान का चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह मदद देता हैं।
इस्लामी जिहाद (PJI) कब वजूद में आया?
फिलिस्तीनी इस्लामी जिहाद के संस्थापक फतेही शाकाकी (Fathi Shaqaqi) और अब्द अल-अजीज अवदा (Abd al-Aziz Awda) मिस्र में छात्र थे। ये दोनों 1970 के दशक के आखिर तक मिस्र मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्य थे। उन्हें लगा कि ब्रदरहुड बहुत उदारवादी होता जा रहा था और फिलिस्तीनी के फायदों के लिए उसकी प्रतिबद्धता काफी नहीं है। इसके बाद इन दोनों ने फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) बनाने का फैसला किया। इसके साथ ही PIJ इजराइल के विनाश और एक संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध एक अलग इकाई के तौर पर उभरा।
हमास ने 2007 से गाजा को काबू में कर यहां अपना शासन जमाया। बीते 35 साल में गाजा में हमास की ही दादागिरी चलती है। ईरान इन दोनों समूहों को फंडिंग करता है, साथ ही हथियारों की सप्लाई करता है। इजरायल और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) दोनों को आतंकवादी संगठन मानते हैं।
क्या है इस्लामी जिहाद PIJ का मकसद?
फ़िलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद 1948 से पहले के जनादेश वाले फ़िलिस्तीन की भौगोलिक सीमाओं के साथ एक संप्रभु इस्लामी फिलिस्तीनी राज्य को दोबारा से स्थापित करना चाहता है। पीआईजे हिंसक तरीकों से इज़रयल के विनाश की वकालत करता है। PIJ सदस्य हिंसा को मध्य पूर्व के नक्शे से इज़रायल को हटाने का इकलौता तरीका मानते हैं। PIJ इज़राइल और फिलिस्तीन के सह-अस्तित्व वाले किसी भी दो-राष्ट्रों वाली व्यवस्था को अस्वीकार करता हैं।
कितना ताकतवर है PIJ?
फिलिस्तीन में सक्रिय रूप से काम करने वाले PIJ का मुख्यालय सीरिया की राजधानी दमिश्क में है। उसके पास 8,000 से ज्यादा सक्रिय सदस्य हैं। इस संगठन के आतंकी आत्मघाती हमला करने के लिए जाने जाते हैं। 1987 में इस संगठन ने इजरायली पुलिस अधिकारी की हत्या कर अपने पहले हमले को अंजाम दिया था। शुरुआत में संगठन में महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जाता था, लेकिन 2003 के बाद से महिलाओं को भी संगठन का सदस्य बनाया जाने लगा। हमास की तरह ये संगठन भी अपने हथियारों का निर्माण गाजा पट्टी में ही करता है।
इस्लामी जिहाद की ताकत
PIJ में 8,000 से ज्यादा सक्रिय सदस्य हैं।
1987 में संगठन ने इजरायली पुलिस अधिकारी की हत्या कर अपने पहले हमले को अंजाम दिया था।
PIJ के आतंकी आत्मघाती हमलों के लिए जाने जाते हैं।
2003 के बाद महिलाएं भी बनने लगीं PIJ संगठन का सदस्य।
कौन है हिजबुल्लाह?
हिजबुल्लाह लेबनान का कट्टर शिया आतंकवादी समूह है। 1982 में इजरायल ने जब दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण किया था तब हिजबुल्लाह संगठन अस्तित्व में आया। हालांकि आधिकारिक रूप से हिजबुल्लाह की स्थापना 1985 में हुई थी। तब से लेकर अब तक हिजबुल्लाह के लड़ाके इजरायल पर हमले करते रहते हैं। इजरायल ने भी हिजबुल्लाह के खिलाफ कई ऑपरेशन चलाए हैं। हिजबुल्लाह का मकसद सशस्त्र संघर्ष के जरिये इजरायल को खत्म करना और अमेरिकी आधिपत्य और क्रूर पूंजीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ना है। इजरायली सेना के मुताबिक हिजबुल्लाह के पास 45,000 लड़ाके हैं, जिसमें से 20,000 सक्रिय रहते हैं और 25,000 रिजर्व में हैं।
हिजबुल्लाह की ताकत
हिजबुल्लाह के पास 45,000 लड़ाके हैं।
इन लड़ाकों में से 20,000 सक्रिय रहते हैं
करीब 25,000 लड़ाके रिजर्व में रहते हैं।
कैसे पैदा हुआ हिजबुल्लाह?
हिजबुल्लाह के जन्म की कहानी इजरायल की स्थापना से भी पुरानी है। 1943 में लेबनान में शिया, सुन्नी और ईसाइयों के बीच राजनीतिक समझौता हुआ था। इसके तहत सुन्नी मुसलमानों को प्रधानमंत्री, ईसाइयों को राष्ट्रपति और शिया मुसलमानों को संसद स्पीकर का पद दिया गया। ऐसे में लेबनान का प्रधानमंत्री केवल सुन्नी मुसलमान ही बन सकता था। वहीं, राष्ट्रपति का पद ईसाई के लिए आरक्षित हो गया और शिया मुस्लिम सिर्फ संसद का स्पीकर बन सकता था। यह समझौता करीब 25 साल तक चला लेकिन फिलिस्तीन से सुन्नी मुसलमानों के आने के कारण लेबनान में धार्मिक समीकरण गड़बड़ाने लगे। यही कारण था कि शिया मुसलमानों को लेबनान की सत्ता से बेदखल होने का डर सताने लगा।
इजरायली डिफेंस फोर्सेज का कहना है कि हर साल हिजबुल्लाह को करीब 70 करोड़ डॉलर से ज्यादा का फंड मिलता है।
इस फंड का एक बड़ा हिस्सा ईरान से आता है।
ईरान हिजबुल्लाह को हथियार, सैन्य ट्रेनिंग और खुफिया जानकारी के जरिए भी मदद करता है।
हिजबुल्लाह के शस्त्रागार में 120000 से 130000 मिसाइलें हैं। हिजबुल्लाह के पास एंटी टैंक मिसाइलें, दर्जनों ड्रोन, एंटी शिप मिसाइल, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल और एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम भी मौजूद हैं।
इजराइल की सेना ताकत
इजराइल दुनिया में अपने खुफिया तंत्र के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अब उसे बड़े सैन्य संघर्ष की स्थिति में अपनी पारंपरिक सैन्य ताकत पर बहुत अधिक निर्भर रहना होगा। इजरायली वायु सेना, जो दुनिया में तकनीकी रूप से सबसे उन्नत है।
F-35 स्टील्थ फाइटर जेट।
स्मार्ट बमों की एक विस्तृत श्रृंखला इजराइल के पास है जो न्यूनतम क्षति के साथ लक्ष्य पर हमला करती है।
इजराइल के पास संचालन की एक अत्यधिक नेटवर्क-केंद्रित प्रणाली है। जो लक्ष्य का पता लगाने और संलग्न करने के लिए कई स्तरों पर सेंसर का उपयोग करता है।
इजराइल के पास लगभग 500 मर्कवा टैंक भी है।
आने वाली मिसाइलों या नौसैनिक ड्रोनों के खतरों से निपटने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली वाली मिसाइल नावें भी इजराइल के पास है।
इज़राइल एक परमाणु शक्ति भी है, हालांकि यह एक ऐसी क्षमता है जो हमास के साथ लड़ाई के संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है।
क्या कहता है तीसरे विश्वयुद्ध का सर्वे?
दिसंबर 2022 इंटरनेशनल फर्म Ipsos ने एक सर्वे कराया था, जिसमें शामिल 34 देशों के ज्यादातर लोगों ने माना कि जल्द ही तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया इसमें सबसे ऊपर था, जहां लगभग 81 प्रतिशत लोगों ने युद्ध की आशंका पर हां की। वहीं जापान 51 प्रतिशत के साथ इस लिस्ट में सबसे नीचे था। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान इस देश को परमाणु हमला तक झेलना पड़ गया था। तो हो सकता है कि वो इसकी कल्पना से भी डरता हो। भारत भी सर्वे का हिस्सा था, जिसमें लगभग 79 प्रतिशत लोगों ने युद्ध की आशंका जताई थी।