इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी पाकिस्तान के 18 वें और वर्तमान प्रधान न्यायाधीश हैं। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने उन्हें 30 जून, 2005 को प्रधान न्यायाधीश नामित किया था लेकिन मुशर्रफ ने ही 3 नवंबर, 2007 को उन्हें निलम्बित भी कर दिया था।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा के निवासी चौधरी की शिक्षा सिंध विश्वविद्यालय में हुई थी। सिंध हाई कोर्ट में 1976 में उन्होंने बतौर एक वकील प्रैक्टिस की शुरुआत की थी। बाद में वे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील भी बन गए।
बाद में, उन्हें क्वेटा में ही बलूचिस्तान हाई कोर्ट का एक अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया था। यह नियुक्ति तत्कालीन राष्ट्रीय गुलाम इशहाक खान ने की थी। 1999 में राष्ट्रपति रफीक तराड़ ने उन्हें बलूचिस्तान हाई कोर्ट का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया।
वर्ष 2002 में उनकी सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की गई और बाद में 2005 में जनरल मुशर्रफ ने उन्हें प्रमुख न्यायाधीश नियुक्त किया, लेकिन बाद में उन पर इस्तीफा देने के लिए दबाव डाला। जब चौधरी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया तो उन्हें 3 नवंबर, 2007 को निलंबित कर दिया गया।
उनके निलम्बन का समाचार मिलते ही समूचे देश में अशांति फैल गई थी। नागरिक समाज में असंतोष और खराब होती आर्थिक व्यवस्था और मनमाने फैसले से लोग मुशर्रफ के खिलाफ हो गए। 2009 में मुशर्रफ को देश छोड़कर जाना पड़ा। बाद में, प्रधानमंत्री गिलानी और राष्ट्रपति जरदारी को भी लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अंतत: 22 मार्च, 2009 को चौधरी को कई अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ बहाल करना पड़ा।
न्यायमूर्ति चौधरी का प्रमुख निर्णय पाकिस्तान स्टील मिल्स के मामले में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने सुयो मोटो इस मामले पर ध्यान दिया। बलूचिस्तान में लापता लोगों के मामले दायर किए, न्यूमुरी प्रोजेक्ट पर रोक लगाई और नेशनल रिकंशिलिएशन ऑर्डिनेंस (एन.आर.ओ.) को निरस्त कर दिया।
इस मामले को लेकर उन्होंने सरकार पर राष्ट्रपति के स्विस बैंकों में खातों की सम्पति का पता लगाने का आदेश दिया जिसको न मानने पर प्रधानमंत्री गिलानी को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। उनके बाद ही राजा अशरफ को प्रधानमंत्री बनाया जा सका था।
उल्लेखनीय है कि यह अध्यादेश राष्ट्रपति मुशर्रफ ने बेनजीर भुट्टो के साथ एक गुप्त समझौते के बाद जारी किया था जिसके तहत जरदारी को तमाम आरोपों से मुक्ति दी गई थी।
इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी का जन्म 12 दिसंबर, 1948 को क्वेटा में हुआ था। 1947 में विभाजन के दौरान उनके पिता जान मुहम्मद एक पुलिस ऑफीसर से थे जोकि फैसलाबाद जिले के एक गांव से आकर क्वेटा में बस गए थे। बे पंजाब के आरेन जनजाति के हैं।
चौधरी ने अपना सारा समय क्वेटा में बिताया है और वर्ष 2000 में जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया था तो वे इस्लामाबाद आए थे। चौधरी के तीन भाई और हैं और वे सभी विदेशों में बसे हुए हैं। वे अपने माता-पिता के दूसरे सबसे बड़े बेटे हैं।
इफ्तिखार का विवाह फायका से हुआ था और उनके पांच बच्चे हैं। दो बेटे, अर्शलान इफ्तिखार और अहमद बलोच इफ्तिखार हैं जबकि उनकी बेटियों के नाम आयशा, इफरा और पलवाशा हैं।
चौधरी ने जमशोरो, सिंध से बी.ए. और कानून की डिग्री ली है। 1974 में वे बार से जुड़े थे। बाद में, 1976 में उन्हें हाईकोर्ट के वकील के तौर पर नामित किया गया था और 1985 में वे सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट बने थे। 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अकबर बुग्ती ने उन्हें बलूचिस्तान का एडवोकेट जनरल बनाया गया था। बाद में, उन्हें 1990 में राज्य की हाईकोर्ट का अतिरिक्त जज बनाया गया था। 22 अप्रैल, 1999 में उन्हें हाईकोर्ट का प्रधान न्यायाधीश बनाया गया था। हाईकोर्ट में जज रहते हुए उन्होंने बैंकिंग जज, जज स्पेशल कोर्ट फॉर स्पीडी ट्रायल्स, कस्टम्स अपीली कोर्ट जज और कंपनी जज भी रहे।
इस दौरान वे हाईकोर्ट बार एसोशिएशन के प्रमुख भी रहे। बाद में वे दोबार देश की बार काउंसिल के लिए भी चुने गए। वे बलूचिस्तान लोकल काउंसिल इलेक्शन अथॉरिटी भी दो बार रहे। वे राज्य की रेड क्रेसेंट सोसायटी के अध्यक्ष भी दो बार रहे।
चार फरवरी, 2000 को उन्हें पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का न्यायमूर्ति नामित किया गया। वे देश के सबसे कम उम्र के प्रधान न्यायाधीश हैं और वे सबसे लम्बे समय तक प्रधान न्यायाधीश बने रहेंगे। फिलहाल वे पाकिस्तान बार काउंसिल की एनरोलमेंट कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग समिति के अध्यक्ष हैं।
नौ मार्च, 2007 को चौधरी को राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने निलंबित कर दिया था। चौधरी को आर्मी हाउस में बुलाया गया और उनसे पांच सैनिक जनरलों की मौजूदगी में इस्तीफा देने को कहा।
जब चौधरी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो राष्ट्रपति ने उन्हें कदाचरण के आरोप में कानूनी प्रावधानों का सहारा लेते हुए निलम्बित कर दिया। पाक सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह ऐसा पहला अवसर था जब एक सिटिंग प्रधान न्यायाधीश को निलम्बित कर दिया गया। उन्होंने भी मुशर्रफ के आदेश को चुनौती दी और इस मामले के खिलाफ सारे देश में आवाज उठाई
बीस जुलाई को चौधरी को सुप्रीम कोर्ट की तेरह सदस्यीय खंडपीठ ने उन्हें फिर से पद पर बहाल कर दिया। 3 नवंबर, 2007 को मुशर्रफ ने देश में आपात काल लागू कर दिया और देश के संविधान तथा संसद को भंग कर दिया। सारे न्यायाधीशों को उन्होंने नजरबंद कर दिया। उनके एक बेटे को फिजियोथेरेपी की जरूरत थी जोकि नहीं उपलब्ध कराई गई और उनकी बेटी को ए लेवल की परीक्षा घर में ही देनी पड़ी।
फरवरी में आम चुनावों के ठीक बाद, 28 मार्च, 2008 को अपने कार्यकाल के पहले ही दिन प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी चौधरी को नजरबंदी से रिहाकर दिया और बाद में उन्हें अपने पद कर फिर से बहाल कर दिया गया। चौधरी ने अपने कार्यकाल में कई बहुत ही अहम फैसले दिए लोगों का विश्वास जीता और उन्होंने लोकप्रियता हासिल की।
न्यायमूर्ति चौधरी को अपने कार्यकाल में कई अवसरों पर सम्मानित किया गया लेकिन जब वे नवंबर, 2008 में पहली बार अमेरिका की यात्रा पर गए तो उन्हें हार्वर्ड लॉ स्कूल का मेडल ऑफ फ्रीडम दिया गया। 2007 में नेशनल लॉ जर्नल ने उन्हें वर्ष का सर्वश्रेष्ठ वकील चुना।
न्यूयॉर्क के बार संघ ने चौधरी को संघ की मानद सदस्यता दी। उन्हें पाकिस्तान में न्यायिक और वकील स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर सम्मानित किया गया। टाइम पत्रिका ने उन्हें विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की सूची में स्थान दिया।