कैसे विलुप्त हुए डायनासोर

- कोलकाता से दीपक रस्तोगी

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6 करोड़ 50 लाख साल पहले क्या हुआ था? हम-आप शायद इस सवाल का जवाब देने में घंटों सिर खुजाते रहें लेकिन शंकर चटर्जी इस सवाल का जवाब खोज चुके हैं। शंकर चटर्जी कोलकाता के रहने वाले हैं और अमेरिका की टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी में भू-तत्व के प्राध्यापक हैं।

पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने इसी सवाल को लेकर पोर्टलैंड में जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ अमेरिका के वार्षिक सम्मेलन में कई व्याख्यानें दीं और उसके बाद से दुनिया भर के वैज्ञानिकों में खलबली है। छोटे से इस सवाल का उन्होंने कुछ लंबा जवाब रखा- अंतरिक्ष से 40 किलोमीटर के व्यास वाला एक पिंड पृथ्वी से भारत के हिस्से में आ टकराया था जिससे हाईड्रोजन बम विस्फोट से 10 हजार गुना अधिक असर हुआ।

सुनामी आई और पृथ्वी पर कई ज्वालामुखी फट पड़े। महीनों तक आसमान में गैस की परतें छाई रहीं-अंधेरा छाया रहा। इतने दिनों तक सूर्य की किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुंच सकीं और चरम खाद्य संकट आ खड़ा हुआ। ऐसे में भुखमरी के चलते पृथ्वी के भारी-भरकम जीव नष्ट हो गए।

शंकर चटर्जी के इस शोध ने डायनासोरों के नष्ट होने को लेकर वैज्ञानिकों की अब तक की मान्यता ध्वस्त कर दी है। अब तक माना जा रहा था कि शिकागो या मेक्सिको में बने हजारों किलोमीटर के व्यास वाले गड्ढे ही डायनासोरों के लुप्त होने के प्रमाण हैं। इन जगहों पर अंतरिक्ष से पिंड टकराए और हजारों हाईड्रोजन बमों के समान बनी ऊर्जा में डायनासोर नष्ट हो गए लेकिन दोनों जगहों की उम्र को लेकर वैज्ञानिक असमंजस में थे।

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दोनों जगहों की मिट्टी और पत्थर के नमूनों के अनुसार, ये डायनासोरों के लुप्त होने के तीन लाख साल पहले अस्तित्व में आए। अब चटर्जी की थ्योरी है कि अंतरिक्ष से गिरा पिंड दरअसल, भारत के पश्चिमी हिस्से में टकराया था जिससे बने क्रेटर का नाम उन्होंने शिवा क्रेटर रखा। अरब सागर के नीचे स्थित इसी शिवा क्रेटर के ऊपर स्थित है बांबे हाई। शिवा क्रेटर का रहस्य खुलने के साथ ही डायनासोरों के लुप्त होने को लेकर नई थ्योरी बनी है।

अपनी थ्योरी से रातोरात चर्चित हो उठे शंकर चटर्जी अपनी पत्नी शिवानी के साथ हाल में भारत की यात्रा पर थे। दो-तीन महीने वे कोलकाता में थे। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय, इंडियन स्टैटिकल इंस्टीट्यूट, जादवपुर यूनिवर्सिटी आदि कई जगहों पर शोधपत्र पढ़े । उन्होंने भारत और विदेशों में डायनासोरों के जीवाश्म खोजने के अपने अनुभवों के बारे में जानकारी दी। जिओलॉजी की भाषा में उस युग को क्रिटाशियस युग कहा जाता है। इसके बाद का युग था टरशियरी। दोनों युगों के संधिकाल को वैज्ञानिक के-टी एक्सटींक्शन कहते हैं।

दोनों युगों के संधिकाल में 70 फीसदी से अधिक डायनोसोर नष्ट हुए। कल्पना कीजिए, अगर साढ़े छह करोड़ साल पहले उल्कापात नहीं हुआ होता तो क्या होता? पृथ्वी पर 10 करोड़ साल तक राज करने वाले डायनासोरों के जीवाश्म अब भी उस युग की कहानियां सुनाते हैं। उस युग में डायनासोर और सरीसृप का ही तो बोलबाला था। भारत में तो इस बात के सबूत भी मिले हैं कि कहीं-कहीं सरीसृप डायनोसोरों पर भारी पड़ते थे।

दरअसल, डायनासोर युग के खात्मे को लेकर दुनियाभर में 1980 के बाद माना जाने लगा कि अंतरिक्ष से कुछ पृथ्वी से टकराया और उसके चलते डायनासोर और बड़े जीव नष्ट हुए। इससे पहले माना जा रहा था कि काल के स्वाभाविक प्रवाह में जीवों के स्वरूप बदलते गए या जीव नष्ट होते गए और नई प्रजातियाँ पैदा होती गईं।

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