दोस्त और दोस्ती के अशआर

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* दोस्तों से इस क़दर सदमे हुए हैं जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा।

* न छेड़ो ज़िक्र मेरे दोस्तों का
दुहाई दोस्ती देने लगेगी

* हज़ारों मुश्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर इक फ़ायदा है पीठ पर ख़ंजर नहीं लगता

* न पूछ कैसे गुज़ारी है ज़िन्दगी ऎ दोस्त
बड़ी तवील कहानी है फिर कभी ऎ दोस्त।

* मुझको यारों न करो राहनुमाओं के सुपुर्द
मुझको तुम राहगुज़ारों के हवाले कर दो।

* वफ़ा, इख़लास, रस्मोराह, हमदर्दी, रवादारी
ये जितनी भी हैं ऎ दोस्त अफ़सानों की बातें हैं

* ये वफ़ा की सख़्त राहें, ये तुम्हारे पा-ए-नाज़ुक
न लो इनतिक़ाम मुझसे, मेरे साथ-साथ चलके

* दोस्ती से मुझे हो गई दुश्मनी
ऎसी की दोस्ती आपने आपने

* इससे बढ़कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं
सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं

* हाथ रखकर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
तूने ऎ दोस्त ये गिरता हुआ घर थाम लिया

* सब्र-ए-अय्यूब किया, गिरया-ए-याक़ूब किया
हमने क्या-क्या न तेरे वास्ते मेहबूब किया

* हम भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा करके
तुमने अच्छा किया वफ़ा न की

* जग में आकर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा

* अगर बख़्शे ज़हे क़िस्मत, न बख़्शे शिकायत क्या
सर-ए-तसलीम ख़म है जो मिज़ाज-ए-यार में आए

* वीराँ है मयकदा, ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं
तुम, क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के

* दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफ़रेब हैं ग़म रोज़गार के ।

WDWD
* कौन क़ातिल बचा है शहर में फ़ैज़
जिससे यारों ने रस्म-ओ-राह न की ।

* कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आए

* आप की जिस में हो मरज़ी वो मुसीबत बेहतर
आपकी जिसमें ख़ुशी हो वो मलाल अच्छा है।

*वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
दोस्त दुनिया में नहीं दाग़ से बेहतर अपना

* जो शख़्स मुद्दतों मेरे शैदाइयों में था
आफ़त के वक़्त वो भी तमाशाइयों में था

* तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
तो ऎसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

* रोज़ आया न करो उसने कहा था राशिद
आज सड़कों पे भटक लूँ वहाँ कल जाऊंगा।

* निगाह-ए-यार का क्या है, हुई हुई न हुई
ये दिल का दर्द है प्यारे, गया गया न गया।

* दिन में जो हँस-हँस के मिलता है अज़ीज़
रात में उठ-उठ के वो रोता है दोस्त

* हमारी चाहतें सच हैं मगर हालात का दरिया
मुझे इस पार रखता है तुम्हें उस पार रखता है

* बे यार रोज़-ए-ईद शब-ए-ग़म से कम नहीं
जाम-ए-शराब दीदा-ए-पुरनम से कम नहीं

* न हुआ पर न हुआ मीर का अंदाज़ नसीब
ज़ौक़ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा ।

* हम मोहब्बत में भी तोहीद के क़ाइल हैं फ़राज़
एक ही शख़्स को महबूब बनाए रखना ।

* दोस्ती उसकी निभ नहीं सकती
दिल न माने तो आज़मा देखो

* बात कम कीजे, ज़हानत को छुपाए रहिए
अजनबी शहर है ये दोस्त बनाए रहिए

* दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाए रहिए

* दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त बन जाएँ तो शर्मिन्दा न हों

* मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तो
ज़हर भी इसमें अगर होगा दवा बन जाएगा
संकलन- अजीज अंसार