दद्दू का दरबार : रेल दुर्घटना...

प्रश्न : दद्दूजी, इंदौर-पटना ट्रेन कल रात कानपुर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई। अब तक की जानकारी के अनुसार 129 यात्री मारे गए और 300 घायल हैं। बताया जा रहा है कि भारतीय रेलवे कंगाली की ओर बढ़ रहा है और उसके पास सुरक्षा तथा संरक्षा जरूरतों के लिए आवश्यक बजट नहीं हैं। इस बारे में आप क्या सुझाव देंगे? 


 
उत्तर : देखिए, यह दुर्घटना बड़ी ही दु:खद है। जब तक कि रेलवे के जरूरत के अनुसार बजट का पैसा नहीं मिल जाता तब तक रेल यात्रियों को चाहिए कि वे ड्राइवर के पास जाकर उससे कह दें कि ‘बाबूजी धीरे चलना, पटरियों पर जरा संभलना।' दुर्घटना से ट्रेन लेट भली।
 
 
प्रश्न : दद्दूजी, रेलवे, केंद्र व राज्य सरकारों ने मृतकों के परिवारजनों के लिए 12.5 लाख रुपयों की सहायता राशि घोषित की है। आप क्या कहेंगे इस बारे में?
 
उत्तर : देखिए, मृतकों के परिवारजनों की मदद अच्छी बात है, पर इस खबर के साथ एक और खबर है कि मध्यप्रदेश के खंडवा तथा महू के बीच चलने वाली ट्रेन के इंजन के दो पहिए बेपटरी हो गए। ढलान होने के बावजूद ड्राइवर ने सतर्कता दिखाते हुए ट्रेन को नियंत्रित कर ब्रेक लगाकर रोका। कुछ दिन पूर्व भी इसी ट्रैक पर एक लड़के ने लाल साड़ी से सिग्नल देकर एक यात्री गाड़ी को रोककर ड्राइवर को पटरी के क्षतिग्रस्त होने की सूचना देकर यात्रियों की जान बचाई। रेलवे तथा सरकार यदि ऐसे सजग और बहादुरों को भी एक आधा लाख रुपया पुरस्कारस्वरूप देकर प्रोत्साहित करे तो शून्य दुर्घटना का लक्ष्य पाया जा सकता है और दुर्घटना पश्चात बांटे जाने वाले मुआवजे के करोड़ों रुपए भी बचाए जा सकते हैं।
 
प्रश्न : दद्दूजी, इस ट्रेन में यात्रियों ने रेलवे कर्मचारियों को ट्रेन से अजीब-सी आवाजें आने की शिकायतें की थीं, पर उन्होंने इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। इस बारे में भविष्य में क्या सावधानी रखी जानी चाहिए?
 
उत्तर : इस बारे में तो बस यही किया जा सकता है कि बोगी के सभी यात्री मिलकर निर्णय लें और चेन खींचकर ट्रेन को आगे जाने से रोक दें। कानून बनाया जाकर इस तरह की चेन पुलिंग को अपराध न माना जाए।
 
प्रश्न : दद्दूजी, खबर है कि ड्राइवर ने झांसी में ही अफसरों को खतरे के संकेत दे दिए थे, पर उन्होंने कहा कि जैसे-तैसे कानपुर पहुंच जाओ।
 
उत्तर : ऐसे गैरजिम्मेदार अफसरों को जांच के बाद निलंबित करने के पूर्व कान पकड़कर झांसी से कानपुर तक की पैदल यात्रा करवाई जानी चाहिए।
 
प्रश्न : दद्दूजी, जब तक देश की हर रेल सुरक्षित यात्रा के लिए सुसज्जित नहीं कर दी जाती तब तक क्या सरकार को बुलेट ट्रेन के बारे में सोचना चाहिए?
 
उत्तर : सोचने में न हींग लगती है, न फिटकरी अत: उन्हें सोचने दें। हां, कोई भी करार या फैसला लेने में उतना ही वक्त (वर्ष) लगना चाहिए जितने वक्त में देश के न्यायालय दीवानी मामलों में अंतिम फैसला सुनाते हैं।
 
प्रश्न : दद्दूजी, क्या रेल दुर्घटना जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी देश के राजनीतिक दलों को राजनीति करनी चाहिए? 
 
उत्तर : देखिए, राजनीति की जान लोकतंत्र के तोते की गर्दन में है। जब तक लोकतंत्र रहेगा तब तक नेता लोग राजनीति किए बिना मानेंगे नहीं चाहे फिर मुद्दा कोई भी क्यों न हो। 

 

वेबदुनिया पर पढ़ें