आइए, जानें कि पूरे भारत में गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है:
1. महाराष्ट्र:भव्य पंडाल और सार्वजनिक उत्सव- गणेश चतुर्थी का सबसे भव्य और प्रसिद्ध रूप महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। यहां यह एक विशाल सार्वजनिक उत्सव है।
* सार्वजनिक पंडाल: शहरों और गांवों में बड़े-बड़े पंडाल/ मंडप सजाए जाते हैं, जहां गणपति की विशाल और कलात्मक प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। मुंबई का 'लालबागचा राजा' और पुणे का 'दगडूशेठ हलवाई गणपति' सबसे प्रसिद्ध हैं।
* भक्ति और उत्साह: इन दस दिनों तक वातावरण "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयकारों से गूंजता रहता है। भक्तगण पंडालों में दर्शन के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते हैं।
* ऐतिहासिक महत्व: इस उत्सव को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ब्रिटिश शासन के दौरान लोगों को एकजुट करने और सामाजिक भावना को बढ़ावा देने के लिए एक सार्वजनिक आयोजन का रूप दिया था।
2. दक्षिण भारत: पारंपरिक और पारिवारिक उत्सव- दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, गणेश चतुर्थी को मुख्य रूप से एक पारिवारिक और पारंपरिक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
* घर पर पूजा: यहां लोग घर पर ही मिट्टी की छोटी गणेश प्रतिमाएं स्थापित करते हैं, जिन्हें बाद में घर के भीतर ही पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।
* विशेष प्रसाद: इस क्षेत्र में गणेश जी को विशेष रूप से मोदक (मोदकम) और सुंडल (विभिन्न दालों और सब्जियों से बना व्यंजन) का भोग लगाया जाता है।
* घरों में भक्ति का माहौल: महाराष्ट्र की तरह यहां विशाल जुलूस और सार्वजनिक पंडाल कम ही देखने को मिलते हैं, लेकिन घरों में पूजा-अर्चना और भक्ति का माहौल बहुत गहरा होता है।
* सामुदायिक उत्सव: यहां भी लोग कॉलोनी और मोहल्लों में छोटे-छोटे पंडाल लगाकर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करते हैं।
* रीति-रिवाज: पूजा और आरती की विधि काफी हद तक महाराष्ट्र के समान होती है, जिसमें मोदक का भोग और भक्तिपूर्ण गीत शामिल होते हैं।
* पर्यावरण जागरूकता:कई शहरों में लोग पारिस्थितिकी के प्रति जागरूकता के चलते पर्यावरण के अनुकूल इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएं स्थापित करते हैं, जो मिट्टी, बीज और प्राकृतिक रंगों से बनी होती हैं।
यह उत्सव हमें सिखाता है कि भले ही रीति-रिवाज अलग हों, पर भक्ति और आस्था का सार एक ही है। गणेश चतुर्थी भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने को एक धागे में पिरोने का काम करती है।
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