पतित पावनी मां गंगा के 10 पौराणिक और 10 ऐतिहासिक तथ्य

अनिरुद्ध जोशी
गंगा नदी को भारत में सबसे पवित्र नदी माना जाता है। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा पर्व मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इस वर्ष यह 20 जून 2021 को मनाया जाएगा। आओ जानते हैं मां गंगा के 10 पौराणिक और 10 ऐतिहासिक तथ्य।
 
 
1. विष्णु के कमंडल से प्रकट हुई गंगा : यह भी कहा जाता है कि गंगा का जन्म ब्रह्मा के कमंडल से हुआ था। मतलब यह कि गंगा नामक एक नदी का जन्म। एक अन्य कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया। भगवान विष्णु के अंगूठे से गंगा प्रकट हुई अतः उसे विष्णुपदी कहां जाता है। 
 
2. हिमवान की पुत्री : एक अन्य कथा के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं। कुछ जगहों पर उन्हें ब्रह्मा के कुल का बताया गया है। 
 
3. जाह्‍नु ऋषि की पुत्री : जैसे राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने हिमालय के यहां पार्वती के नाम से जन्म लिया था उसी तरह माता गंगा ने अपने दूसरे जन्म में ऋषि जह्नु के यहां जन्म लिया था।
 
4. स्वर्ग से धरती पर उतरी गंगा : पौराणिक शास्त्रों के अनुसार गंगा अवतरण हेतु ऋषि भागीरथ की तपस्या ने घोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शंकर ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। बाद में भगीरथ की आराधना के बाद उन्होंने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त कर धरती पर उतार दिया।
 
 
5. गंगा दशहरा के दिन हुआ गंगा अवतरण : पुराणों अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को मां गंगा स्वर्गलोक से सबसे पहले शिवशंकर की जटाओं में पहुंची और फिर धरती गंगा दशशहरा के दि धरती पर उतरीं। 
 
6. शिव की गंगा : कहते हैं कि ब्रह्मचारिणी गंगा के द्वारा किए स्पर्श से ही महादेव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। पत्नी पुरुष की सेवा करती है अतः उसका वास पति के हृदय में अथवा चरणों मे होता है किंतु भगवती गंगा शिव के मस्तक पर विराजति है।
 
7. गणेश और कार्तिकेय की माता : कहते हैं कि शंकर और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का गर्भ भी देवी गंगा ने धारण किया था। गंगा के पिता भी हिमवान है अतः वो पार्वती की बहन मानी जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार, देवी गंगा कार्तिकेय (मुरुगन) की सौतेली माता हैं; कार्तिकेय वास्तव में शंकर और पार्वती के एक पुत्र हैं। पार्वती ने अपने शारीरिक मेल से गणेश की छवि का निर्माण किया, लेकिन गंगा के पवित्र जल में डूबने के बाद गणेश जीवित हो उठे। इसलिए कहा जाता है कि गणेश की दो माताएं हैं-पार्वती और गंगा और इसीलिए उन्हें द्विमातृ तथा गंगेय (गंगा का पुत्र) भी कहा जाता है।
 
8. गंगा और शांतनु : जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा ने राजा शांतनु से विवाह करते सात पुत्रों को जन्म दिया और सभी को नदी में बहा दिया। तब आठवां पुत्र हुआ तो राजा शांतनु ने पूछ लिया कि तुम ऐसा क्यों कर रही हो। यह सुनकर गंगा ने कहा कि विवाह की शर्त के मुताबीक तुम्हें ऐसा नहीं पूछना था। अब मुझे पुन: स्वर्ग जाना होगा और यह आठवीं संतान अब तुम्हारे हवाले। वही आठवीं संतान आगे चलकर भीष्म पितामह के नाम से विख्‍यात हुई।
 
9. गंगा का पानी अमृत क्यों : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा नदी में ही समुद्र मंथन से निकला अमृत कुंभ का अमृत दो जगह गिरा था। पहला प्रयाग और दूसरा हरिद्वार।
 
10. ग्रंथों में गंगा : ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता, रामायण और महाभारत इत्यादि में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है। 
ऐतिहासिक तथ्य : 
1. भागीरथ की गंगा : ब्रह्मा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था। उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने आगे बढ़ाया। पहले हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को देवलोक कहा जाता था। वहां से भगीरथजी ने गंगा को नीचे धरती पर उतारा। भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा नदी को देवी के रूप में निरुपित किया गया है। परंतु देवी गंगा और नदी में क्या अंतर है यह बताना मुश्‍किल है।
 
2. गंगा की मुख्य 12 धाराएं : हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है इसमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
 
3. गंगोत्री मुख्‍य पड़ाव : गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया। 
 
4. गौमुख से निकली गंगा : किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
 
5. हरिद्वार को कहते हैं गंगा द्वार : हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। हरिद्वार को गंगा द्वार भी कहते हैं क्योंकि यहीं से गंगा पहाड़ों से उतरकर मैदानी इलाके में आगे बढ़ती है।
 
6. गंगा का सागर से संगम : फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह नदी बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। इस स्थान को गंगा सागर कहते हैं। कहते भी हैं कि सारे तीरर्थ बार बार गंगा सागर एक बार।
 
7. गंगा का अन्य नदियों से संगम : इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना। गंगा देवप्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश से प्रयागराज पहुंचकर यह यमुना से मिलती है।
 
8. गंगा के तट के तीर्थ : गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र। गंगा देवप्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयागराज, काशी, भागलपुर, गिरिया से होते हुए गंगासागर तक अनेकों तीर्थ है। महाभारत के अनुसार मात्र प्रयाग में माघ मास में गंगा-यमुना के संगम पर तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का संगम होता है।
 
9. गंगा के जंगल : ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह ज्ञात होता है कि 16वीं तथा 17वीं शताब्दी तक गंगा-यमुना प्रदेश घने वनों से ढका हुआ था। इन वनों में जंगली हाथी, भैंस, गेंडा, शेर, बाघ तथा गवल का शिकार होता था। यहां लाखों तरह के पशु और पक्षी विचरण करते थे। परंतु आधुनिकरण और शहरीकरण के चलते यह सबकुछ नष्ट हो गया।
 
10. गंगा जल के जंतु : इसमें मछलियों की 140 प्रजातियां, 35 सरीसृप तथा इसके तट पर 42 स्तनधारी प्रजातियां पाई जाती हैं। गंगा के पर्वतीय किनारों पर लंगूर, लाल बंदर, भूरे भालू, लोमड़ी, चीते, बर्फीले चीते, हिरण, भौंकने वाले हिरण, सांभर, कस्तूरी मृग, सेरो, बरड़ मृग, साही, तहर आदि काफी संख्या में मिलते हैं। विभिन्न रंगों की तितलियां तथा कीट भी यहां पाए जाते हैं।

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