नरेन्द्र मोदी को लेकर जिस तरह एग्जिट पोल नतीजों ने सकारात्मक रुझान दिखाए हैं, उससे एक हद तक साबित होता है कि मोदी इस देश के नए खेवनहार बनने ही वाले हैं। चूंकि इसकी संभावना ज्यादा बढ़ गई है लिहाजा संघ और उनके बीच भावी रिश्तों को लेकर पड़ताल होनी ही चाहिए।
इस पड़ताल के पहले संघ से जुड़े लोगों के उपरोक्त प्रसंग का अपना महत्व है। इस प्रसंग से एक बात जाहिर है कि संघ के अधिसंख्य कार्यकर्ताओं में भी नरेन्द्र मोदी के भावी कदमों और उनके शासन की रूपरेखा को लेकर संदेह जरूर है। इसके बावजूद अगर संघ ने हालिया चुनाव अभियान में अपनी पूरी ताकत झोंकी तो उसकी अपनी खास वजह है।
वजह यह है कि उसे नरेन्द्र मोदी के रूप में खुद को उबारने वाली एक ऐसी शख्सियत भी मिल गई है... जो उसके ही अपने परिवार से है। पिछले 10 साल से जितने हमले मोदी पर हुए हैं, उससे कहीं ज्यादा हमले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी हुए हैं।
हिन्दू उग्रवाद के नाम पर उसके कार्यकर्ताओं को छोड़िए, इंद्रेश कुमार जैसे वरिष्ठ स्वयंसेवक तक को परेशान किया गया। प्रज्ञा भारती की गिरफ्तारी हुई और उनके खिलाफ एक भी मामला अब तक साबित नहीं किया जा सका है।
लिहाजा इन वजहों से शायद संघ को लगता रहा कि अगर इस बार उसने केंद्र की सत्ता नहीं बदली तो अगले 5 साल उसके अस्तित्व के लिए ज्यादा चुनौतीभरे होंगे इसीलिए संघ ने अपनी पूरी ताकत और कार्यकर्ताओं की फौज चुनाव मैदान में झोंक दी।
मोदी ने भी इन चुनावों में एक भी ऐसा कदम नहीं उठाया जिससे लगा हो कि संघ की वे अवमानना कर रहे हों। चुनाव अभियान की शुरुआत के पहले और चुनाव अभियान के खात्मे के बाद बलिया की आखिरी रैली से वे सीधे दिल्ली स्थित संघ मुख्यालय ही पहुंचे।
संघ के लिए भी फायदेमंद था मोदी का साथ... अगले पन्ने पर...