भाजपा की सभी इस बात पर खिंचाई करते हैं कि उसके नेता मुखर होकर अपने अंतर्विरोध प्रकट कर रहे हैं, पर क्या यही स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं है? पारदर्शिता नहीं है? कांग्रेस तो छोड़िए, आम आदमी पार्टी में भी इस तरह खुलकर विचार व्यक्त करने कि स्वतंत्रता नहीं है। कोई ऐसा करता है तो तत्काल सजा पाता है।
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जो भी आडवाणी कि हिमायत करते हैं वे यह क्यों भूल जाते हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें भी तो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में सामने रखकर चुनाव लड़ा था। तब अगर वे स्वयं को साबित नहीं कर पाए तो इसमें किसका कसूर है। आज नरेंद्र मोदी ने तमाम अंदरूनी विरोधों के बावजूद देश में कांटे कि लड़ाई सामने खड़ी कर दी है। सारा देश और सारी पार्टियां मिलकर सिर्फ एक आदमी के खिलाफ लड़ रहे हैं, वे हैं नरेंद्र मोदी। यही मोदी कि सबसे बड़ी सफलता भी है।
सांप्रदायिकता की माचिस जला-जलाकर मोदी को बदनाम करने वाले अपने-अपने दामन में मोदी से भी बड़ी कालिख छुपाकर बैठे हैं। फिर चाहे 1984 का सिख जनसंहार हो, उत्तरप्रदेश के दंगे हों या कुछ और। दंगे बुरे हैं इसमें कोई शक नहीं, लेकिन दंगों का डर दिखाकर देश में असहिष्णुता का माहौल पैदा करना क्या कम बुरा है? किसी वर्ग विशेष को सिर्फ वोट के लिए जूते के तलवे की तरह इस्तेमाल करना क्या कम बुरा है? देश की अफसरशाही की सड़ांध मार रही व्यवस्था को ऐसा ही रहने देना क्या कम गुनाह है? देश के आम नागरिकों के जेब से वसूला गया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के पैसे की खुली लूट, बर्बादी क्या गुनाह नहीं है?
मोदी को तानाशाह कहा जाता है पर इतिहास गवाह है कि अनुशासन को अमल में लाने के लिए शासक का डर अधिकारियों में होना आवश्यक है। देश को योजनाकार कि जरूरत है। वर्तमान माहौल में यह नरेंद्र मोदी में दिखता है। वो कर्म करने में विश्वास रखते हैं। परिणाम अच्छे या बुरे हो सकते हैं परंतु काम ही नहीं किया जाए या सारे महत्वपूर्ण निर्णयों के प्रति आंख मूंद ली जाए, जैसा मनमोहनजी ने किया तो क्या देश चल पाएगा? काम करेंगे तो अच्छे या बुरे परिणाम दोनों ही हो सकते हैं। कम से कम मोदी से यह उम्मीद तो है कि वे निर्णय लेने तथा उस निर्णय पर अमल करवाना जानते हैं। आज तक कांग्रेस सब्सिडी, मुफ्त का माल लुटाकर चुनाव जीतती आई है पर क्या इस बात के लिए मोदी कि तारीफ नही की जानी चाहिए कि उन्होंने देश के सामने ऐसी कोई पेशकश नहीं की है।
हम जापान का उदाहरण देते नहीं थकते कि वहां उद्यमिता कूट-कूटकर भरी है। चीन हमसे उद्यमिता के मामले में कोसों आगे निकल गया है। ऐसे में हम उद्यमिता से कैसे दूर रह सकते हैं, जब हमारे अपने एशिया द्वीप में इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा है। क्या बुराई है अगर मोदी उद्योग लगाने की बात करते हैं, जन साधारण की मासिक आमदानी बढाने की बात करते हैं। प्रधानमंत्री का पद देश के सबसे प्रमुख रणनीतिकार का पद होता है। देश की प्रगति के लिए एक विजन रखने वाले व्यक्ति का होता है। नीतियों के गठन और उनके यथाशक्ति सटीक क्रियान्वयन करने वाले का होता है और मोदी में यह गुण है।
केजरीवाल जैसे व्यक्ति जो सिर्फ खो-खो खेलते रहते हैं। अगर केजरीवाल सच्चे होते तो पहले दिल्ली की जनता को पांच साल का सुराज देते, अपना कर्तव्य निभाते। कह देते कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेगें, पहले दिल्ली को सुधारेंगे। लेकिन, चापलूसों की फौज उन्हें लोकसभा चुनाव तक ले आई, दिल्ली ने जिताया, चंदा दिया, भरोसा किया पर केजरीवाल ने लोकसभा के लालच में दिल्ली की जनता के साथ धोखा किया। नौटंकी की। देश को नौटंकीबाज नहीं 'नायक' चाहिए, सारी दुनिया के सामने भारत के गौरव का चेहरा चाहिए और इस चुनाव में यह सब सिर्फ मोदी के पास दिखता है, किसी और के पास नहीं। भविष्य की परतों में क्या छिपा है यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन वर्तमान में मोदी एक सटीक विकल्प हैं, इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता।