लंदन ओलिम्पिक का सभी को बेसब्री से इंतजार है। किसी को टेबल टेनिस, फुटबॉल पसंद है, तो किसी को मुक्केबाजी, निशानेबाजी। हर बार इन प्रतियोगिता में अलग-अलग देश से प्रतिभागी पहुंचते हैं। मुक्केबाजी भी एक अलग ही खेल है। आइए जानते हैं इस खेल के कुछ रोचक तथ्य।
मुक्केबाजी का इतिहास- मुक्केबाजी ओलिम्पिक स्पर्धा से पहले भी होती रही है। वर्ष 1896 में एथेंस ओलिम्पिक को पुन: शुरू किया जा रहा था, तब कहा गया था कि यह खतरनाक खेल है और इसे ओलिम्पिक में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। बाद में किसी तरह 1904 में इसे ओलिम्पिक में शामिल किया गया। 1912 में इसे फिर से बाहर कर दिया गया, लेकिन 1912 में यह ओलिम्पिक का हिस्सा बन गया।
इस बार लंदन ओलिम्पिक में सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाओं की मुक्केबाजी भी देखने को मिलेगी। यह पहला ऐसा मौका है, जब ओलिम्पिक में महिलाओं को शामिल किया जा रहा है।
नियम- बॉक्सिंग अलग-अलग वजन वर्गों में होती है। इस खेल में हर प्रतियोगी को प्रतियोगिता के लिए अपना वजन करवाना होता है। पुरुषों के लिए यह 10 अलग वजन वर्गों में और महिलाओं के लिए तीन वजन वर्गों में होती है।
इसमें हर मैच महत्वपूर्ण और नॉक आउट ही होता है, यानी मैच हारे तो बाहर। बॉक्सिंग में पुरुषों के लिए तीन-तीन मिनट के तीन राउंड होते हैं। इसमें हर राउंड के बीच में 1 मिनट का रेस्ट टाइम मिलता है।
इस खेल में प्रतिद्वंदी को मुक्के से चित करना कठिन होता है, इसलिए पॉइंट के आधार पर विजेता चुने जाते हैं। मुक्केबाजी ओलिम्पिक की ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें सेमीफाइनल में हारने वाले दोनों प्रतियोगियों को ब्रॉन्ज मेडल मिलता है।
कॉर्नर: बॉक्सिंग में हर मुक्केबाज को रिंग का एक कोना दिया जाता है। जहां राउंड के बीच में वह आराम करता है। यह कोना कॉर्नर कहलाता है। यहां बॉक्सर के साथ तीन और भी लोग ट्रेनर, असिस्टेंट और कटमेन होते हैं।
मुक्केबाजी में ट्रेनर और असिस्टेंट बॉक्सर को लड़ाई की रणनीति समझाते हैं। कटमेन जो कि डॉक्टर के रूप में रहता है, जो बॉक्सर के चेहरे पर लगने वाले कट का ध्यान रखता है। कट के कारण आंखों और शरीर में गंभीर चोट का खतरा होने पर लड़ाई रोक दी जाती है।