भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है। भारत भूमि के साथ-साथ अंग्रेजों की ही धरती ब्रिटैन से स्वतंत्रता की मांग करने वाले महापुरुष भी रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है दादा भाई नरौजी।
दादा भाई नौरोजी वह प्रथम भारतीय थे जिन्हें 6 जुलाई 1892 को ब्रिटैन की संसद में चुना गया था। वहां के हॉउस ऑफ कॉमन्स में पहुंचने वाले दादा भाई रौजी, महात्मा गांधी के पहले भारत के नेतृत्वकर्ता माने जाते हैं। दादा भाई नौरोजी ब्रिटैन की संसद में वहां की लिबरल पार्टी के कैंडिडेट के रूप में पहुंचे थे। वह प्रथम एशियाई थे जो वह तक पहुंचे।
वे 1892 से 1895 तक तीन वर्ष की अवधि तक संसद के सदस्य रहे। उनके समर्थन में वहां के किसान, नारीवादी, मजदूर और अन्य नेता आए। उस समय ब्रिटैन में रंगभेद चरम पर था। इसी कारण नाखुश कई लोगों ने उन्हें 'कार्पेटबैगेर' और भद्दे नामों से भी पुकारा। यहां तक कि ब्रिटैन के प्रधानमंत्री लार्ड सैलिसबैरी ने तो उन्हें एक काला व्यक्ति बता दिया जो वोट लेने का भी अधिकार नहीं रखता। अपने देश से इतने दूर रहकर इतनी विषम परिस्थितियों में भी वह डटकर खड़े रहे और लन्दन के सेन्ट्रल फिंसबरी क्षेत्र से मात्रा 5 वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे।
उन्होंने ब्रिटैन की सांसद में ही एक सदस्य के रूप में ब्रिटैन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध किया था। उन्होंने ब्रिटिश शासन को दुष्ट बताया और साथ ही भारत पर उनके तानाशाही और अत्याचारी रवैये को गलत ठहराते हुए, भारतियों के हाथ में सत्ता देने के भी प्रयास किए। उनके प्रयास भले ही उचित परिणाम न दे पाए हो, पर अपने शत्रु के देश में, उन्हीं के बीच रहकर, उन्हीं की शासन व्यवस्था से चुने जाने के बाद उन्ही की संसद में अकेले ही अपने देश की स्वतंत्रता की बात रखने के लिए उनका इतिहास में विशेष योगदान है जिसके लिए हर भारतीय को गर्व करना चाहिए।