ऐसा कहा जाता है कि संगीत सुनने के लिए किसी समय का देखना जरुरी नहीं होता। पर यह कथन गलत है। शास्त्रीय संगीत में हर राग का एक विशेष समय होता है। रात के राग अलग होते हैं और दिन के अलग। उदाहरण के लिए अगर की कार्यक्रम शाम में होता है तो राग यमन, पुरिया धनश्री इत्यादि का गायन/वादन होता है, इसी प्रकार रात के समय जोग, मालकौंस और प्रातःकाल के समय भैरव, गुणकली इत्यादि का। जो लोग राग थरेपी लेते हैं, उन्हें भी इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। सुबह की दवाई शाम में और शाम की सुबह खाएंगे तो फायदा कम होगा !, इसी प्रकार रागों को भी उनके विशेष काल में ही सुनना चाहिए।
इसी प्रकार अलग-अलग ऋतुओं के भी राग होते हैं, जैसे वसंत ऋतु का राग वसंत और वर्षा ऋतु के राग मल्हार, धुलिया मल्हार और मेघ।