रोचक इसलिए हुए क्योंकि इन सीटों में से कुछ पर तो जीत हार का अंतर महज 200 मतों का था। सत्तारूढ़ भाजपा और दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब धोलका और फतेपुरा जैसी सीटों पर एनसीपी और बीएसपी जैसी छोटी पार्टियों ने महत्वपूर्ण वोट अपनी झोली में डालकर कांग्रेस से जीत छीन ली। यही नहीं, इस चुनाव में कुछ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी अच्छे खासे मत हासिल करके कद्दावरों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया।
हिम्मतनगर, पोरबंदर, विजापुर, देवदर, डांग, मानसा और गोधरा विधानसभा सीटों पर रोचक मुकाबला देखने को मिला। कई स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवारों और प्रमुख बागियों ने दो मुख्य पार्टियों में से एक के वोट काटे। डांग सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के उम्मीदवार से केवल 768 मतों के अंतर से जीत दर्ज कर सके जबकि कपराडा (अनसूचित जाति) सीट पर कांग्रेस केवल 170 वोटों से विजय हासिल कर पाई। गोधरा समेत ऐसी कम से कम आठ सीटें ऐसी थी, जहां कांग्रेस के उम्मीदवार अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों से दो हजार से कम मतों से पीछे रहे।
प्रतिष्ठित गोधरा सीट पर भाजपा के सी के राउलजी केवल 258 वोटों से जीत दर्ज कर पाए। हैरत की बात तो यह रही कि गोधरा में नोटा वोटों की संख्या 3 हजार 50 थी और एक निर्दलीय उम्मीदवार को तो 18,000 से अधिक मत मिले। साफ जाहिर है कि गोधरा का मतदाता भाजपा को सबक सिखाना चाहता था। धोलका विधानसभा सीट पर कांग्रेस केवल 327 वोटों के अंतर से हारी। इस सीट पर बीएसपी और एनसीपी को क्रमश: 3139 और 1198 वोट मिले। इसी तरह फतेपुरा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस पर 2,711 वोटों से जीत हासिल की।
एनसीपी उम्मीदवार को 2,747 मत प्राप्त हुए। बोटाद सीट पर कांग्रेस केवल 906 वोटों के अंतर से हारी। इस सीट पर बीएसपी को 966 मत मिले। तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने यहां 7,500 मत प्राप्त किए। कपराडा विधानसभा सीट के अलावा भाजपा ने मानसा सीट 524 वोटों से गंवाई। भाजपा देवदर सीट पर 972 वोटों से हारी। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि इस चुनाव में कहीं न कहीं असंतोष की ज्वाला जलना शुरू हो चुकी है।