माइक्रोवेव ओवन में पक रही हैं भयानक बीमारियां-2

वैज्ञानिकों के अनुसार माइक्रोवेव ओवन की ऊर्जा रूपी विकिरण किरणें खाद्य पदार्थों के भीतर के रासायनिक और आणविक बंधन को तोड़ डालती है और उनकी मौलिक जीवनीय(बायोलॉजिकल) और जैव रासायनिक (बायोकैमिकल) संरचना को बिगाड़ देती है। 

जर्नल ऑफ द साइंस ऑफ फूड एवं एग्रीकल्चर के 2003 के अंक में प्रकाशित 'स्पेनिश साइंटिफिक रिसर्च कौंसिल के शोधार्थियों द्वारा संपन्न अध्ययन की सह लेखिका डॉ. क्रिस्टीना गार्सिया-विगुएरा के अनुसार माइक्रोवेव में पकाई गईं सब्जियों की पौष्टिकता कम हो जाती है। ब्रोकली नामक सब्जी पर किए अपने अध्ययन में पाया गया कि ब्रोकली में मौजूद तीन प्रमुख कैंसररोधी एंटीऑक्सीडेंट्स क्रमश: 97%, 74% और 87% कम हो गए थे, जबकि परंपरागत तरीके से पकाई गई ब्रोकली में ये कैंसररोधी एंटीऑक्सीडेंट्स केवल 11%, 0% और 8% नष्ट हुए।
 
* जापान में वातानाबे द्वारा संपन्न एक शोध में पाया गया कि दूध को 6 मिनट तक माइक्रोवेव ओवन में गर्म करने से उसमें मौजूद विटामिन बी12 30 से 40% तक निष्क्रिय हो गया।

माइक्रोवेव ओवन से संबंधित कुछ विशिष्ट और उल्लेखनीय घटनाक्रम
 
स्विट्जरलैंड के फूड वैज्ञानिक डॉ. हंस हेर्टेल और उनके साथी डॉ. ब्लंक ने 1989 में पहली बार माइक्रोवेव ओवन के खतरों के विषय में प्रामाणिकता और पा‍रदर्शिता के साथ अध्ययन किया था। शोध में सम्मिलित सभी प्रतिभागियों के रक्त के परीक्षण से पता चला है कि ओवन में खाना पकाने से भोजन के पौष्टिक तत्व कमतर हो जाते हैं। माइक्रोवेव ओवन के विकिरण खाद्य पदार्थों की मौलिक रासायनिक संरचना को बिगाड़कर उसे नष्ट कर देते हैं तथा नए किंतु खतरनाक और हानिकारक रेडियोलायटिक रसायन बन जाते हैं जिनके कारण रक्त की रासायनिक संरचना प्रभावित होती है।


उन्होंने पाया कि अच्‍छा कोलेस्ट्रॉल कम और खराब कोलेस्ट्रॉल तेजी से बढ़ता है, हीमोग्लोबिन और श्वेत रक्त कोशिकाएं उल्लेखनीय रूप से कम हो जाते हैं। डॉ. हेर्टेल और डॉ. ब्लंक के निष्कर्ष प्रकाशित होते ही 'स्विस एसोसिएशन ऑफ डीलर्स फॉर इलेक्ट्रोएपरेटसेस फॉर हाउस होल्ड्स एंड इंडस्ट्री' नामक शक्तिशाली ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने शोध नि‍ष्कर्ष को सार्वजनिक करने से रोकने के लिए कोर्ट में अपील की। 

न्यायालय में कई स्तर पर जान-बूझकर देरी की गई और अंतत: डॉ. हेर्टेल और डॉ. ब्लंक को वाणिज्य में व्यवधान डालने की सजा के रूप में मार्च 1993 में मुंह बंद रखने (गैग ऑर्डर) के आदेश देते हुए कहा कि वे अपने शोध निष्कर्षों को आगे से प्रकाशित नहीं करें। डॉ. हेर्टेल ने घोषणा भी की कि उन्हें चुप रहने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है। फिर उन्होंने जोरदार तरीके से अपील की कि न्याय प्रक्रिया निष्पक्ष हो और सत्य को सुना जाए, जान-बूझकर देरी की गई और उन्हें मीडिया से दूर रखा गया। वे वर्षों तक अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे। अंतत: 25 अगस्त 1998 को 'द यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स' स्ट्रासबर्ग, ऑस्ट्रिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन मानते हुए 'गैग ऑर्डर' को रद्द कर दिया और स्विट्जरलैंड को आदेश दिया कि वह डॉ. हेर्टेल को हर्जाना भी दें।

नॉरमा लेविट नामक महिला के कूल्हे के जोड़ की शल्य चिकित्सा (हिप जॉइंट सर्जरी) हिलक्रेस्ट मेडिकल सेंटर, ओक्लाहोमा में 1998 में हुई थी और उन्हें रक्त चढ़ाया जाना था। नर्स ने फ्रीज से निकाले गए रक्त को माइक्रोवेव ओवन में गर्म करवाया और रक्त चढ़ाते ही उस महिला की मृत्यु हो गई। उसके परिजनों ने न्यायालय की शरण ली। वे चाहते थे कि लोगों को माइक्रोवेव ओवन की वास्तविकता का पता चले। फरियादी के वकील का तर्क था कि माइक्रोवेव ओवन में गर्म किए जाने से रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाने से रक्त टॉक्सिक हो गया थी। लंबी बह‍स चली, परंतु न्यायालय ने प्रकरण को निराधार माना और आटोप्सी रिपोर्ट में पाया बताया गया कि यह दुर्घटना मृत्यु थी, जो हिमोलाइज्ड ब्लड (ऐसा रक्त जिसकी लाल कोशिकाएं टूट-फूट गई हों) चढ़ाने के दुष्प्रभाव के कारण हुई। 


कोर्ट में यह बात भी सामने आई कि नर्स ने एक तकनी‍शियन को स्टाफ कॉफी रूम में रक्त को माइक्रोवेव ओवन में 4 मिनट के लिए गर्म करने और 3 बार पलटाने के निर्देश दिए थे। एक अन्य जांचकर्ता राल्फा लजारा ने कहा कि रक्त में पोटेशियम की इतनी कम मात्रा थी, जो किसी को भी मार सकती थी, परंतु पोटेशियम की इतनी ज्यादा भी कमी नहीं ‍थी कि उससे दिल काम करना बंद कर दें। डॉ. बोयड शूक नामक जांचकर्ता ने पाया ‍कि शल्य चिकित्सा के कारण रक्त में जो थक्के (क्लाट) निकले थे, उनके कारण फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया था, संभवत: इसीलिए नॉरमा की मौत हुई। यह भी गौरतलब है कि हॉस्पिटल ने यह स्पष्ट निर्देश जारी किए कि भविष्य में माइक्रोवेव ओवन को केवल खाना गर्म करने के उपयोग में ही लिया जाए। यह संयोग ही है कि न्याय व्यवस्था से जुड़े या आरोपियों ने निर्दोष ठहराने के लिए माइक्रोवेव ओवन में गर्म किया रक्त चढ़ाने का प्रयोग जानवर पर भी नहीं दोहराया।

माइक्रोवेव ओवन में गर्म किए पानी का पौधों पर विनाशक प्रभाव
 
ब्रिटेन की ससेक्स शहर के अरिएल्ले रेनोल्ड्स सेकंडरी स्कूल की 17 वर्ष की एक लड़की ने अपने स्कूल के विज्ञान मेले में एक अनूठे प्रयोग का प्रदर्शन कर पूरे विश्व को माइक्रोवेव ओवन के घातक प्रभावों की तरफ अचानक आकर्षित कर डाला था। उसने एक ही प्रजाति और उम्र के दो पौधे लिए। एक को परंपरागत तरीके से उबालकर ठंडे किए पानी से सींचा जबकि दूसरे को माइक्रोवेव ओवन में उबालकर ठंडे किए पानी से सींचा। धीरे-धीरे दूसरा पौधा मुरझाने लगा और पहला पौधा स्वस्थ रहते हुए बढ़ता रहा। नौवें दिन माइक्रोवेव ओवन के पानी से सिंचित पौधा पूरी तरह मुरझा गया। इस प्रयोग को दूसरे बच्चों ने भी दुहराया और समान प्रभाव देखा।
 
माइक्रोवेव ओवन के पक्षधर लोगों का अनूठा और बहुत ही मासूम-सा तर्क था कि उस लड़की के मन में यह प्रबल विचार था कि दूसरे वाले पौधे पर विपरीत प्रभाव पड़े इसलिए वह मन की शक्ति से मर गया। ऐसे तर्क देने वालों को अपने मन की शक्ति का उपयोग कर सादे पानी से सींचकर किसी पौधे को मर जाने के लिए विवश करके दिखाना था।
 
ऐसा नैतिक साहस किसी ने नहीं किया। यह भी कहा गया कि वह विज्ञान मेला छठी ग्रेड का (निम्नस्तरीय) था और ऐसे प्रयोग के आधार पर माइक्रोवेव ओवन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह भी तर्क दिया गया कि माइक्रोवेव ओवन में प्लास्टिक की बोतल में पानी गर्म करने से (उससे निकले घातक रसायनों से) ऐसा हुआ होगा। बहरहाल, सुधि पाठक उन विद्यार्थियों द्वारा किए गए इस प्रयोग को दुहरा सकते हैं।
 
अस्तु, यह बात सच है कि आप स्वतंत्र हैं, क्योंकि परमात्मा द्वारा दिए गए आपके शरीर के आप स्वयं स्वामी हैं। परंतु उक्त तमाम तथ्‍यों को देखते हुए अंधानुकरण की बजाय विज्ञान की कसौटी पर ठोंक-बजाकर और आश्वस्त होकर ही किसी नई परंपरा को अपनाएं। एक बार जरूर ध्यान रखिएगा कि भारत की विज्ञान परंपरा विश्व के समस्त देशों की तुलना में बहुत ज्यादा उन्नत और पुरातन रही है। अपनी परंपराओं पर विश्वास कीजिए और सुखी, संतुष्ट, समृद्ध तथा स्वस्थ रहिए। समय की तथाकथित कमी के फेर से बचें और अपने लाड़ले बच्चों और प्रियजनों को धीमी आंच पर पकाया स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक भोजन प्रेम के साथ खिलाइए। जहां तक भोजन ग्रहण करने का प्रश्न है, आयुर्वेद में भोजन को ग्रहण करने से पूर्व हाथ-पैर-मुंह धोकर, आसन पर बैठकर, परिजनों के साथ शांति से, प्रसन्नमना होकर, ध्यान और प्रार्थनापूर्वक मंत्रोच्चार किए जाने की परंपरा रही है। यह भी कहा गया है कि भोजन कक्ष साफ, स्वच्छ, प्रकाशमान और हवादार हो तथा बनाने तथा परोसने वाले की मन:स्थिति प्रसन्नतापूर्ण हो, जबकि हमने इस महत्वपूर्ण चर्या को समय की कमी के बहाने वाहन में पेट्रोल डालने जैसे निपटाऊ बना डाला है।
 
इस प्रस्तुति को लिखने का कारण

इस प्रस्तुति को लिखने का कारण
 
एमबीबीएस के पहले साल में ही हमें शिक्षकों ने बताया था कि खाद्य पदार्थों को काटकर धोने, गरम करने अथवा फ्रीज में रखे रखने आदि से उनमें मौजूद विटामिन्स और अन्य सूक्ष्म पौष्टिक तत्व कम होते जाते हैं। जब हमारे घर में माइक्रोवेव ओवन लाने की बात चली तो पता चला कि इसमें खाना चंद मिनटों में गरम हो जाता है। शिक्षकों द्वारा दिए गए ज्ञान के चलते माथा ठनका कि यदि किसी खाद्य पदार्थ का तापमान एकदम से उछाल मारेगा तो उसके सूक्ष्म पौष्टिक तत्व इस आकस्मिक विद्युत चुम्बकीय विकिरण के उष्ण आक्रमण (थर्मल अटैक) को कैसे झेल पाते होंगे?

माइक्रोवेव ओवन खरीदने का निर्णय रद्द किया गया और उसके विषय में जानकारियां एकत्रित करने का काम शुरू हुआ। उन जानकारियों में से कुछ इस प्रस्तुति में सम्मि‍लित की गई हैं। यह सामग्री नेट पर उपलब्ध जानकारियों की अपनी भाषा शैली में प्रस्तुतिभर है, यह प्रस्तुति कबीरदासजी के शब्दों में 'ज्यूं की त्यूं धर धीनी च‍दरिया' की तरह है।
 
माइक्रोवेव ओवन किस तरह काम करता है?
 
यह ऊर्जा (विकिरण) ओवन में रखे खाद्य पदार्थों के अणुओं से क्रिया करती है। यह ऊर्जा प्रत्येक चक्र में खाद्य पदार्थों के अणुओं की ध्रुवीयता (पोलेरिटी) को ‍पॉजिटिव से नेगेटिव में लाखों बार बदल देती है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हर खाद्य पदार्थ में पानी की काफी मात्रा होती है और पानी के अणुओं में भी चुम्बक की तरह दो ध्रुव होते हैं- सकारात्मक एवं नकारात्मक। उक्त ध्रुवीय परिवर्तन पानी के अणुओं में भी होता है। बाजारों में उपलब्ध 1,000 वॉट्स के एसी करेंट के माइक्रोवेव ओवन के मैग्नेट्रान की ऊर्जा से खाद्य पदार्थों के अणुओं में प्रति सेकंड लाखों बार ध्रुवीय परिवर्तन होता रहता है। इसके कारण घर्षण होता है और ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे भोजन गर्म होता है अर्थात माइक्रोवेव ओवन में खाद्य पदार्थ के भीतर से निकली गर्मी ही उसे गर्म करती है। यह महाघर्षण आसपास के अणुओं को भी विघटित और विद्रूप कर देता है जिसे विज्ञान की भाषा में 'स्ट्रक्चरल आइसोमेरिज्म' कहा जाता है।
 
माइक्रोवेव ओवन का विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र (ईएमएफ)
 
माइक्रोवेव ओवन से निकलने वाले विद्युत क्षे‍त्र से तो बचाने के सार्थक उपाय उपकरण में संभव हो सकते हैं, परंतु चुम्बकीय क्षेत्र ओवन के दरवाजे से निकलकर सीमेंट-कांक्रीट, स्टील की दीवार और मानव शरीर में प्रवेश करने में सक्षम होता है। विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र को मापने की इकाई को मिलीगॉस कहते हैं। एक मिलीगॉस एक गॉस का हजारवां हिस्सा होता है।
 
एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन (ईपीए) ने 0.5 मिलीगॉस से 2.5 मिलीगॉस तक के विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र को सुरक्षित माना है। वैज्ञानिकों के अनुसार माइक्रोवेव ओवन से निकलने वाले विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र का माप 3 फुट तक की दूरी तक 1 से 25 मिलीगॉस तक होता है तथा यदि आपकी अपने ओवन से दूरी 4 इंच की हो तो यह बढ़कर 100 से 500 मिलीगॉस तक हो जाता है। अध्ययनों के अनुसार 2 मिलीगॉस का विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र शरीर में जैव तनाव (बायोलॉजिकल स्ट्रेस) उत्पन्न करना शुरू कर देता है, 2 से 12 मिलीगॉस का विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र कैंसरकारी तथा रोग प्रतिरोधक तं‍त्र को प्रभावित करने लगता है। 12 से अधिक मिलीगॉस का विद्युत चुम्बकीय क्षे‍त्र नींद, मूड और समूचे स्वास्‍थ्य के लिए जरूरी मेलेटोनिन नामक हार्मोन को कम कर देता है।
 
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति इलेक्ट्रोकेमिकल है। रोबर्ट ओ बेकर की पुस्तक 'द बॉडी इलेक्ट्रिक' और एलेन सुगरमन की पुस्तक 'वॉर्निंग द इलेक्ट्रिसिटी अराउंड यू मे बी हेजार्डस टू योर हेल्थ' के अनुसार जो भी मशीन या वातावरण मानव शरीर की प्राकृतिक विद्युत रासायनिक संरचना में व्यवधान डालते हैं, वे मानव शरीर की कार्यप्रणाली (फिजियोलॉजी) को प्रभावित करते हैं। डॉ. लिटा ली ने अपनी पुस्तक 'हेल्थ इफेक्ट्स ऑफ माइक्रोवेव रेडिएशन- माइक्रोवेव ओवन्स' तथा 'अर्थ लेटर' के सितंबर 1991 के अंक में लिखा है कि 'हरेक माइक्रोवेव ओवन से विद्युत चुम्बकीय विकिरण लीक होता है, जो खाद्य पदार्थों को नुक्सान पहुंचाती है और पकाए गए पदार्थ को मानव अंगों के लिए घातक बना देती है तथा उसमें कैंसरकारक उत्पाद उत्पन्न हो जाते हैं।

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