आपके किचन में रखे हैं 7 एंटीबायोटिक्स..पढ़ें रोचक जानकारी

प्रस्तुति : निवेदिता भारती 

हम सभी को कभी न कभी एंटीबायोटिक्स की जरूरत होती है। एंटीबायोटिक्स बीमारी फैलाने वाले बैक्टेरिया को खत्म करते हैं। एंटीबायोटिक्स ऐसी दवाईयां होती हैं जिनसे इंफेक्शन जनित बीमारियों से छुटकारा मिलता है।

एंटीबायोटिक्स को एंटीबैक्टेरियल भी कहा जाता है। एंटीबायोटिक्स ऐसी शक्तिशाली दवाइयां होती हैं जो बैक्टेरिया के हमले से लड़ती हैं और या तो उन्हें पूरी तरह खत्म कर देती हैं या उनकी बढ़त रोक देती हैं। 
 
हमारे शरीर में इम्यून सिस्टम होता है जो इन बैक्टेरिया से लड़ता रहता है परंतु बैक्टेरिया इम्यून सिस्टम से ज्यादा शक्तिशाली हो जाते हैं हमें बाहर से इन्हें रोकने हेतु उपाय करने पड़ते हैं जिनमें एंटीबैक्टेरियल दवाईयां शामिल हैं। हमारे शरीर के श्वेत रक्त कण हानि पहुंचाने वाले बैक्टेरिया को खत्म करने का काम करते हैं। परंतु बहुत से बैक्टेरिया गुणित (multiply) होते हैं और अचानक से संख्या में बहुत बढ़ जाते हैं जिन पर हमारा इम्यून सिस्टम बेअसर हो जाता है। 
 
कान में इंफेक्शन, पेट की समस्याएं और बहुत सी त्वचा संबंधी समस्याएं बैक्टेरिया जनित होती हैं। अलग प्रकार के एंटीबायोटिक्स अलग प्रकार के बैक्टेरिया पर काम करते हैं और शरीर में पनप चुके पैरासाइट (परजीवीयों) से लड़ते हैं। चिकित्सक बैक्टेरिया के हिसाब से एंटीबायोटिक्स लिख देते हैं जिससे हमें तुरंत आराम मिलता है। 
 
पैनिसिलिन, जिससे चेचक का इलाज किया गया था, पहला खोजा गया एंटीबायोटिक्स था। कुछ ऐसे इंफेक्शन होते हैं जिनसे सर्दी, ज्यादातर खांसी के प्रकार और गला खराब होना शामिल हैं बैक्टेरिया की वजह से नहीं होते बल्कि इनके होने की वजह वायरस का हमला होता है। इस तरह की तकलीफों में एंटीबैक्टेरियल दवाईयां बेअसर होती हैं।  इसके अलावा एंटीबैक्टेरियल दवाईयों का उपयोग फंगल इंफेक्शन होने पर भी नहीं किया जाता है। एंटीबायोटिक्स अधिक या गलत तरीके से लेने पर खतरनाक होती हैं। इनके अधिक इस्तेमाल से बचना चाहिए। इसके अलावा एंटीबायोटिक्स हमारे सामान्य रक्षा तंत्र को भी हानि पहुंचाते हैं और इनके साइड इफेक्ट के रूप में डायरिया, पेट दर्द और चक्कर आना शामिल हैं।   
 
जैसा कि हम पहले बात कर चुके हैं एक हद तक हमारे शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम बैक्टेरिया के हमले से हमारी सुरक्षा करता है। जितना मजबूत इम्यून सिस्टम होगा उतना हमारा बैक्टेरिया के हमले से बचाव होगा और कम से कम दवाईयां का इस्तेमाल होगा। हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे पदार्थ जिनमें प्राकृतिक एंटीबायोटिक मौजूद होते हैं और जिनके नियमित इस्तेमाल से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। मजबूत इम्यून सिस्टम बैक्टेरिया हमले के बाद हमारी रक्षा करता है और इस तरह हम दवाईयों के उपयोग से बच जाते हैं। 
 
हमारे किचन में ऐसी कुछ खास चीजें मौजूद हैं जो बेहद  प्रभावशाली हैं और बहुत से स्वास्थ्य से जुड़े मसलों पर काफी कारगर हैं। इस चीजों को नियमित तौर पर अपनाकर हम न सिर्फ बीमारियों को ठीक कर सकते हैं बल्कि उन्हें आने से पहले ही रोक सकते हैं। 
 
इसके अलावा इन चीजों के अन्य फायदों में फंगल और वायरस इंफेक्शन से लड़ना भी शामिल है जबकि एंटीबैक्टेरियल दवाईयां ऐसा नहीं कर पातीं साथ ही शरीर की जरूरत अच्छे बैक्टेरिया को भी ये पदार्थ नुकसान नहीं पहुंचाते। 

1. लहसुन : लहसुन एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक है। इसमें एंटीफंगल और एंटीवायरल तत्व मौजूद होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार लहसुन में पाया जाने वाला सल्फर कंपाउंड एलीसिन प्राकृतिक एंटीबायोटिक के समान कार्य करते हैं। इसके अलावा, लहसुन में कई प्रकार के विटामिन, न्यूट्रिएंट्स और मिनेरल्स होते हैं जो संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।   लहसुन आंतों में होने वाले पैरासाइट्स को खत्म करता है। 

प्रतिदिन खाली पेट लहसुन की 2 से 3 कलियां खाई जा सकती हैं। लहसुन को विभिन्न प्रकार की डिश में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ लोग बाजार में उपलब्ध लहसुन सप्लीमेंट भी ले सकते हैं परंतु बाजार में उपलब्ध सप्लीमेंट लेने के पहले डॉक्टरी सलाह ले लेनी चाहिए।

2. शहद : प्राकृतिक चिकित्सा में शहद को सबसे कारकर एंटीबायोटिक्स में से एक माना जाता है। इसमें एंटीमाइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमैटोरी (सूजन कम करने वाला) और एंटीसेप्टीक गुण होते हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन के अनुसार शहद में इंफेक्शन से कई स्तरों पर लड़ने की ताकत होती है। इसके इस गुण के कारण बैक्टेरिया शहद के इस्तेमाल के बाद पनप नहीं पाते। 

शहद हाइड्रोजन पैरोक्साइड, एसिडिटी, ओस्मोटिक इफेक्ट, हाई शुगर (ज्यादा शर्करा) और पोलिफेनोल्स होते हैं जो बैक्टेरिया सेल को खत्म करते हैं। शहद का लाभ पूरी तरह से मिले इसके लिए कच्ची और जैविक शहद इस्तेमाल में ली जानी चाहिए। शहद में समान मात्रा में दालचीनी मिलाकर दिन में एक बार खाना चाहिए। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसके अलावा, चाय, फ्रूट स्मूदी और ज्यूस में शहद का इस्तेमाल किया जा सकता है।  

3. अजवाइन : साल 2001 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अजवाइन के तेल में बैक्टेरिया से लड़ने की शक्ति भरपूर मात्रा में होती है। इसमें कार्वाक्रोल, एक केमिल्कल कंपाउंड, पाया जाता है जिससे इंफेक्शन में कमी आती है और अन्य किसी पारंपरिक एंटीबायोटिक्स की तरह यह प्रभावशाली होता है। 

इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमैटोरी, एंटीपैरासिटिक और दर्द-निवारक गुण होते हैं। पैर या नाखून में होने वाले इंफेक्शन के लिए अजवाइन के तेल की कुछ बूंदे एक टब गर्म पानी में डालकर उसमें पैर डूबाना चाहिए। पैर कुछ मिनट तक पानी में रहने देने चाहिए। यह प्रक्रिया एक हफ्ते तक रोजाना की जानी चाहिए। 
 
सायनस या अन्य श्वसन संबंधी इंफेक्शन के लिए अजवाइन तेल की कुछ बूंदे गर्म पानी में डालकर इस भाप को सूंघना चाहिए। जब तक इंफेक्शन खत्म न हो यह प्रयोग करते रहना चाहिए। 

4. जैतून : जैतून की पत्तियों के सत ( extract ) में विभिन्न प्रकार के बैक्टेरिया इंफेक्शन के इलाज के गुण होते हैं। जैतून की पत्तियों में काफी मात्रा में एंटीमाइक्रोबियल गुण होता है जिससे यह बैक्टेरिया और फंगी से बचाव करती हैं। इनमें एंटीइंफ्लेमैटोरी गुण भी होते है जिससे सूजन आसानी से उतर जाती है। 

जैतून की पत्तियों का सत आसानी से घर पर प्राप्त किया जा सकता है। पत्तियों को काटकर एक कांच के जार में डालना होता है। इस जार को वोडका से पत्तियां डूबने तक भरना है। इस जार को ढक्कन बंद करके अंधेरे में चार से पांच हफ्ते तक रखना होता है। नियत समय के बाद कपडे की मदद से छानकर द्रव्य निकाल सकते हैं। इस द्रव्य को अलग जार में स्टोर किया जा सकता है। यही जैतून की पत्तियों का सत है। 
 
जैतून की सप्लीमेंट भी कैप्सूल के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं। परंतु इन्हें इस्तेमाल के पहले डॉक्टरी परामर्श आवश्यक है। 

5. हल्दी : आयुर्वेद में हल्दी को गुणों की खान समझा जाता है। हल्दी में एंटीबायोटिक गुण भरपूर मात्रा में होते हैं जिनके कारण यह बैक्टेरिया का नाश करती है और शरीर के प्राकृतिक सुरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करती है। इसके साथ ही यह घाव होने पर यह बैक्टेरिया इंफेक्शन होने से भी रोकती है। 

एक चम्मच हल्दी और पांच से छह चम्मच हल्दी को एक एयरटाइट जार में स्टोर करके रखना चाहिए। प्रतिदिन इस मिश्रण को आधा चम्मच मात्रा में लेना चाहिए। इसके अलावा बाजार में हल्दी के सप्लीमेंट कैप्सूल के रूप में भी मिलते हैं परंतु बिना डॉक्टरी सलाह के इनका इस्तेमाल हानिकारक हो सकता है। 

6. अदरक : अदरक में प्राकृतिक एंटीबायोटिक गुण भरपूर होते हैं और इसके इन्हीं गुणों के कारण यह बैक्टेरिया जनित बहुत सी बिमारियों से बचाव करता है। ताजे अदरक में एक प्रकार का एंटीबायोटिक प्रभाव होता है जो खाने से पैदा होने वाले पैथोगेंस ( pathogens ), इंफेक्शन फैलाने वाले एजेंट, से हमें सुरक्षित रखता है। अदरक में श्वसन तंत्र और मसूडों पर होने वाले बैक्टेरियल हमले से बचाने के गुण भी भरपूर होते हैं। 

अदरक की चाय बैक्टेरियाअल इंफेक्शन से लड़ने में बहुत कारगर साबित होती है। अदरक की चाय बनाने के लिए एक इंच ताजा अदरक किस कर आधा कप पानी में करीब दस मिनिट तक उबालिए। इसे छानकर इसमें एक चम्मच और नीबू रस मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। इसके अलावा ताजा अदरक भी अन्य डिश में मिलाया जा सकता है। अदरक के भी कैप्सूल उपलब्ध होते हैं परंतु ताजा अदरक अधिक फायदेमंद है। 

7. नीम : नीम की एंटीबायोटिक के रूप में पहचान हम सभी को है। नीम त्वचा संबंधी समस्याएं पैदा करने वाले बैक्टेरिया से लड़ता है। एंटीबायोटिक से पृथक नीम का गुण यह है कि इसके हमेशा इस्तेमाल के बाद भी बैक्टेरिया पर इसका असर खत्म नहीं होता। त्वचा के अलावा नीम मुख की समस्याओं जैसे केविटी, प्लांक़, जिंजिविटिस और अन्य मसूड़ों संबंधी बीमारियों से बचाव करता है। 

 
स्किन इंफेक्शन रोकने हेतु आजकल ऐसे कोस्मेटिक्स और स्किन केअर सामान चलन में हैं जिनमें नीम सबसे खास तत्व के रूप में शामिल किया जाता है। नीम की गोलियां भी मौजूद है जिससे शरीर के अंदर सफाई की जा सके। इनके उपयोग से पहले अपने डॉक्टर से जानकारी अवश्य लें। नीम के उपयोग हम सभी जानते हैं। शरीर के भीतर और बाहर दोनों ही क्षेत्रों में नीम के फायदे अनुपम हैं। 
 
प्राकृतिक एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल का सबसे अधिक फायदा यह है कि इनके इस्तेमाल के कोई साइड इफेक्ट नही होते। बैक्टेरिया पर इनका असर खत्म नहीं होता जैसा एंटीबायोटिक्स के लंबे समय तक इस्तेमाल से होता है। इसके अलावा अगर आप हमेशा इस प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करते हैं तो बीमारियां आपको नहीं घेर पाती हैं। तो बस शुरू कर दीजिए बारिश में स्वस्थ रहने के उपाय। 

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