हम में से बहुतों को खासकर बच्चों को अक्सर सर्दी-खांसी होती रहती है। यह बहुत ही साधारण बीमारी होती है व कुछ दिन रहकर ठीक हो जाती है। यह एक सामान्य बात है, परंतु इसके दूरगामी परिणाम भयावह होते हैं। होता गले का इंफेक्शन है, परंतु हृदय के वाल्व तथा किडनी (गुर्दे) इसके शिकार हो सकते हैं।
एक विशेष कीटाणु के खिलाफ शरीर के प्रतिरोध शक्ति द्वारा बनाए हुए इम्यून कॉम्प्लेक्स हृदय के वाल्व या किडनी के ऊपर अटैक कर देते हैं। किडनी के ऊपर हुए असर के कारण उसके द्वारा रक्त की शुद्धिकरण की क्रिया पर असर होता है। इसे नेफ्राइटिस कहते हैं। इस वजह से गुर्दे कुछ समय के लिए फेल हो जाते हैं। मूत्र कम बनता है तथा उसमें खून भी आता है। हाथ-पैरों में सूजन आती है तथा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
ज्यादातर केसों में यह तकलीफ उपचार से ठीक हो जाती है, किंतु बार-बार के इंफेक्शन से या एक बार में ही ज्यादा संक्रमण हो तो गुर्दे भी फेल हो सकते हैं। उसी तरह हृदय के वाल्व पर इसका असर होता है तो कालांतर में वाल्व या तो सिकुड़ जाते है या उनकी कंपन गति कमजोर हो जाती है जिसकी वजह से खून के संचालन में बाधा आती है। खासकर बाईं तरफ के वाल्व में यह खराबी होती है जिसे माइट्रल या एओरटिक कहते हैं।
कई बार हृदय इस वजह से फूलने लगता है या खून का प्रेशर उसमें बढ़ने लगता है, अतः जब भी गला खराब हो उसे गंभीरता से लें। बुखार की दवाओं के साथ-साथ एंटीबायोटिक का पूरी मात्रा में सेवन करें। वैक्सीन लगाने से भी इंफेक्शन की रोकथाम की जा सकती है। खान-पान की तरफ ध्यान दें, विटामिन सी का सेवन करने से बीमारी से बच सकते हैं।
तंग बस्ती में रहने वाले तथा जहां पर वायु प्रदूषित हो वहां यह बीमारी ज्यादा होती है। अगर ह्रदय का वाल्व खराब हो गया हो तो लंबे समय तक ह्रदय रोग की दवाइयों के साथ पुन: इंफेक्शन ना हो इसके लिए पेनिसिलिन नामक एंटीबायोटिक निश्चित मात्रा में समय-समय पर लगानी पड़ती है।
अगर इससे एलर्जी है तो अन्य एंटीबायोटिक का सेवन करना चाहिए। समय-समय पर ह्रदय के चेकअप से वाल्व की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कालांतर में अगर खराबी ज्यादा है तो वाल्व का ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है। अत: सावधानी बरतें और गले की खराबी से बचें।