'एसएमएस' की बीमारी, युवाओं पर भारी

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बिना बात की बात करने में माहिर युवाओं को एसएमएस की लत महंगी साबित हो रही है। इससे उनकी जेब तो ढीली हो ही रही है, उनकी रातों की नींद हराम होने के साथ ही मानसिक शांति भी गायब सी होती जा रही है। इस समस्या से सबसे ज्यादा पीड़‍ित हो रहे हैं टीनएजर्स, क्योंकि एसएमएस का चस्का उनमें सबसे ज्यादा है।

एसएमएस की लतों से मानसिक रूप से परेशान और बैचेन अनेक युवा इन दिनों मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। एसएमएस की वजह से क्या-क्या परेशानियां आ रही हैं और इनसे किस तरह निजात पाई जा सकती है, जानें एक्सपर्ट सलाह पर आधारित जितेंद्र सूर्यवंशी की इस रिपोर्ट में।

कंपनियों द्वारा कम पैसे में दी गई एसएमएस की सुविधा युवाओं के लिए दुविधा साबित हो रही है। मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे ज्यादातर मामलों में यह बात सामने आई है कि एसएमएस की लत मानसिक शांति और सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रही है। इससे क्रोध बढ़ने के अलावा बैचेनी और अनिद्रा जैसी समस्याएं हो रही हैं।

यही नहीं, एसएमएस का लगातार प्रयोग करने वाले युवाओं में अवसाद के साथ ही डर की भावना भी पैदा हो रही है। दरअसल, एसएमएस के जरिए दोस्तों से हर वक्त संपर्क में रहने के चलते युवाओं की दिनचर्या पूरी तरह गड़बड़ा गई है, इससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। देर रात तक मोबाइल में संदेश के माध्यम से बात करने के कारण अधिकांश युवा गहरी नींद भी नहीं ले पा रहे हैं।

कुछ रोचक मामलों में यह भी शामिल है कि अधिकांश युवा अक्सर अपने मोबाइल को इसलिए देखते रहते हैं कि शायद कोई एसएमएस आया हो, लेकिन प्रायः उनके लिए कोई एसएमएस नहीं होता। कई युवा तो ऐसे भी हैं जिन्हें अपने सहपाठियों से एसएमएस का जवाब नहीं मिलने पर वह निराशा और चिंता में भी डूब गए हैं, इससे उनके मन में एक तरह का अवसाद घर कर गया है कि कोई उनके संपर्क में रहना पंसद नहीं कर रहा है।

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रोज 150-200 एसएमएस
युवाओं से बातचीत में यह खुलासा हुआ कि वह बिना किसी वाजिब वजह के प्रतिदिन 150-200 तक एसएमएस कर देते हैं। इस मामले में टीनएजर्स युवतियां लड़कों से कहीं आगे हैं, क्योंकि लड़के जहां 50-100 एसएमएस ही कर पाते हैं, जबकि लड़कियां रोजाना 200 एसएमएस तक करती हैं। मजे की बात यह है कि एसएमएस के इस सिलसिले में बिना बात की बात या यूं कहें कि टाइम पास करने के लिए बेतुकी बातें ही होती हैं। इसमें सुबह से लेकर रात्रि तक की रूटीन बातें, पसंद-नापसंद, हॉबी, गपशप, घुमने-फिरने तक की बातें शामिल हैं।

अकेलापन मिटाने का जरिया
एक मेडिकल स्टूडेंट अमित बैरागी ने बताते हैं कि वह रोजाना 100 से अधिक एसएमएस कर देते हैं, सिर्फ इसलिए कि उन्हें एसएमएस से बातें करना अच्छा लगता है, टाइम पास हो जाता है और अकेलेपन से भी मुक्ति मिल जाती है। अमित यह स्वीकार करते हैं कि इससे उनकी पढ़ाई बेहद प्रभावित हुई है और नींद भी उड़ गई है, क्योंकि कई बार उन्हें नींद में भी ऐसा लगता है कि मोबाइल पर कोई एसएमएस आया है, इससे नींद खुल जाती है।

इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रूपेश त्यागी का कहना है कि मेरे लिए एसएमएस नए-नए दोस्त बनाने का जरिया है और मैं इसके लिए हमेशा एसएमएस का सहारा लेता हूं, क्योंकि यह सस्ता भी है। लेकिन फिलहाल वह एसएमएस से बेहद परेशान हो चुके हैं, उनका कहना है कि शुरू में तो कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन अब इतने अधिक एसएमएस आने लगे हैं कि मोबाइल देखकर ही सिरदर्द होने लगता है और मैं कभी-कभी एसएमएस भेजने वाले दोस्तों पर क्रोधित हो जाता हूं।

यह समस्याएं आ रहीं सामने
मनोचिकित्सक रूमा भट्टाचार्य ने बताया कि फिलहाल एसएमएस की लत से परेशान हो चुके युवाओं के जो मामले उनके पास आ रहे हैं उनमें सबसे ज्यादा शिकायतें अनिद्रा, अवसाद, कम भूख, ब्रेन टयूमर, गुस्सा, बैचेनी और क्रोधित होने जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

उन्होंने बताया कि उनके पास आने वाले ज्यादातर युवाओं में यह शिकायत आम है कि वह सोते समय मोबाइल अपने पास में ही रखते हैं, इससे वह पूरी नींद नहीं ले पाते, क्योंकि एसएमएस आने या मोबाइल पर कॉल आते ही उनकी नींद खुल जाती है। प्रायः एसएमएस मिलने पर युवा नींद तो़ड़कर उसे पढ़ते हैं, जिससे उनकी नींद प्रभावित हो रही है।

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ज्यादातर युवाओं में यह शिकायत भी है कि वह मैसेज की आशंका से हर कुछ ही सैकंड के बाद अपना मोबाइल देखते हैं और लगातार मैसेज टाइप करने की वजह से उनके अंगूठे और कलाई के बीच दर्द रहता है।

इसी तरह वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ आरएन साहू ने बताया कि कुछ मामले ऐसे भी हैं जिनमें युवाओं ने स्वीकार किया है कि यदि वह एसएमएस करते हैं और रिप्लाई नहीं मिलता तो वह बैचेन हो जाते हैं और उनमें हीनभावना आने लगती है। इस स्थिति को 'टेक्स्टाफ्रेनिया' कहा जाता है। उन्होंने बताया किए ऐसे मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।

ऐसे पाएं निजात
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ आरएन साहू कहते हैं कि इस समस्या से छुटकारा पाने का बेहतर रास्ता तो यही है कि मोबाइल का उपयोग कम से कम किया जाए। एसएमएस ही नहीं, बल्कि बातचीत में भी इसका उपयोग सीमित हो, क्योंकि यह सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

युवाओं को चाहिए कि वह जरूरी होने पर ही एसएमएस करें। एसएमएस को गप्पबाजी या टाइम पास का माध्यम न बनाएं। जितनी भी बातें करनी है वह मिलकर करें। खासकर देर रात तक एसएमएस से बात करने से बचें एवं सोते समय मोबाइल अपने पास में न रखें, बेहतर होगा कि सोने से पहले मोबाइल बंद कर दें।

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