मानव प्रजाति, उसके विकास, उसके रहस्यात्मक पहलुओं का उजागर होना एवं वाक शक्ति के माध्यम से संसार के अन्य जीवों से मानव की भिन्नता के दर्शन कराती ये पुस्तक - 'बोलना तो है', वाणी की उस योग्यता पर बल देती है, जिसे आज का मनुष्य स्वाभाविक गुणों के रूप में सामान्य समझता है। आदि मानव काल में जन्म से लेकर आज के मनुष्य तक वाणी के संघर्ष की कहानी को बयां करती यह पुस्तक वाणी के उस महत्व को समझाती है, जो आज के युग में परंपरागत तौर पर मनुष्य को आसानी से प्राप्त है, लेकिन मानव प्रजाति के प्रारंभिक युग में इसी वाणी की खोज एवं उसके विकास के लिए मानव को काफी संघर्ष करना पड़ा था। साथ ही यह दर्शाती है, कि वाणी कला या वाक् शक्ति के माध्यम से ही मानव ने अस्तित्व, अनास्तित्व, और जैविक के अलावा चौथ संसार अर्थात शब्द संसार की रचना कर पाया है लेखक द्वारा लिखी गई कुछ महत्वपूर्ण पंक्तियों से बातें आसानी से समझ आती हैं-
''पहले तनबोली की सहायक स्वरबोली, बाद में प्रधान हो गई''
'' जैसे-जैसे वाणी विकास में गति बढ़ी, वैसे वैसे मानव जाति की एक पीढी अपने अनुभव अगली पीढी को बताने में सक्षम होती गई''
शीतला प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित पुस्तक 'बोलना तो है', पत्रकार स्व.रवीन्द्र शाह व्दारा संपादित की गई है जिसके माध्यम से वाणी की समझ, उसके इतिहास, महत्व, एवं मानव की वर्तमान स्थिति में वाणी की भूमिका पर प्रकाश डाला गया गया है। इसके अलावा लेखक ने वाणी के अंग - तनबोली, स्वरबोली और शब्दबोली के अलावा इनके विभिन्न पहलुओं जैसे पढ़ना और बोलना, सहचिंतन, सभाई भाषण व उसके प्रकार, भाषण के मुख्य भाग एवं समापन, श्रोताओं की सहभागिता, श्रावकता एवं बोलने के तरीकों के बारे में बडी ही सरलता और विस्तार से समझाया है।
''वाणी के चश्मे पर अहंकार, जागरूकता अभाव, भय, लोभ, घ़णा की चिकनाई के धब्बे लगने के कारण मन साफ दिखाई नहीं देता''
जिसके अंतर्गत पढ़ने व बोलने का अर्थ, उसकी आवश्यकता, तरीका, सहचिंतन की परिभाषा, कारण, उसके प्रकार, तरीका और उसके समाधान के बारे में विस्तार से पाठकों को समझाया गया है। इसके अलावा यह पुस्तक सभा में दिए जाने वाले भाषण को प्रभावी बनाने के लिए उसके स्वरूप, बनावट, विभिन्न प्रकार एवं भाषण की प्रस्तुति कैसी हो, इसके प्रभावी तरीकों से अवगत कराती है, जो श्रोताओं के बीच अपनी पैठ बना सके। पुस्तक के जरिये लेखक ने वाणी के महत्व साथ-साथ श्रोताओं की सहभागिता पर भी विशेष रूप से बल दिया है, साथ ही साथ श्रावकता के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला है।
पुस्तक में बीच-बीच में लेखक द्वारा वाणी के संदर्भ में लिखी गई बातें जैसे - ''वाणी की वह शिक्षा अपूर्ण है ,विकलांग है, अनर्थकारी है, जो केवल बोलने की कला तक सीमित हो... उसको पूर्ण, सर्वांग, कल्याणकारी होना हो तो उसे भाषण कला के साथ-साथ श्रवण व मौन को भी अपनाना होगा''.. पाठकों को वाणी कला से जुड़ी उन बारीकियों से जोड़ती है, जिससे आम इंसान ज्यादातर अनभिज्ञ होता है।
लेखक शीतला मिश्र की पुस्तक '' बोलना तो है' वाणी और वाक् शक्ति के आदि से अंत तक हर पहलू पर इस प्रकार से प्रकाश डालती है, कि पाठक स्वत: ही वाणी के महत्व और उसके प्रभावकारी उपयोग को समझने में सक्षम होता है।