पुस्तक समीक्षा : केनवास पर शब्द

प्रीति‍ सोनी 
संदीप राशि‍नकर का संकलित काव्य संग्रह केनवास पर शब्द, उनकी रचनाओं और रेखांकन की बेहतरीन जुगलबंदी है। अपने विचारों और भावों को उन्होंने कविता के साथ-साथ रेखाचित्रों के माध्यम से भी अभि‍व्यक्त किया है, जो प्राय: कम ही देखने को मिलता है। हर कवि उतना ही अच्छा कलाकार भी हो यह हमेशा संभव नहीं। केनवास पर शब्द काव्य संग्रह, यथार्थ को निहारते हुए कवि के मन में उठते भावों, विचारों और अंर्तद्वंदों को व्यक्त करता है। 
 
कविताओं के माध्ययम से संदीप जी ने ऐसी छोटी-छोटी बातों और परिस्थि‍तियों की ओर आम इंसान का ध्यान आकर्ष‍ित किया है, जो भागदौड़ भरी जीवनशैली में सामान्य इंसान सोच भी नहीं पाता। इस संग्रह को उन्होंने हर तरह के भावों से सजाया है, और मन में उठते गिरते हर सवाल को उठाने का भी प्रयास किया है। कभी वातावरण को तो कभी रिश्तों और बदलते वक्त को लेकर उनकी संवेदनशीलता कविताओं में साफ झलकती है। 
 
वन संपदा बचाने, बढ़ाने में हम 
इतने प्रयत्नशील हो गए 
कि आदमी जंगली और 
शहर जंगल हो गए 
 
 
पहले मिलते थे, रुकते थे, अभि‍वादन करते थे
घंटों बतियाते थे, आबोहवा के बारे में 
अब मिलते हैं, पर रुकते नहीं 
सोचते हैं रुकेंगे, मिलेंगे, क्या बात करेंगे पता नहीं 
पता नहीं इन दिनों क्या हुआ है 
न बची है आब, न बह रही हवा है 
 
शब्दों और अभि‍व्यक्ति के बीच मौन के अस्तित्व को भी कवि ने महसूस किया है और बताया है कि मौन का अपना महत्व है, उसकी अपनी महिमा है। वह सिर्फ मौन नहीं, बल्कि हर संवाद का साक्षी है।  यह संवाद और संवाद हीनता के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है जिसे कवि ने अपने शब्दों में ढाला है। 
 
कुछ कहने और सुनने के बीच 
खड़ा है समय 
समय, जो मौन है 
 
हर कहने, सुनने के बीच 
शाश्वत है मौन, मौन रहकर
हर संवाद का बनते हुए साक्षी 
 
मौन पत्तों की सरसराहट ने 
मौन मौसम को संवादों से भर दिया 
तोड़कर खुद को, प्रकृति को 
हरा भरा कर दिया 
 
प्रेम, प्रकृति, ममता, सपने और अंर्तमन से जुड़े कोमल भावों की अभि‍क्ति देने के साथ-साथ संदीप जी ने अपने कविताओं में क्रांति और त्रासदी जैसे विषयों को भी शामिल किया है। वहीं कन्फेस जैसी कविताएं कवि का आत्मिक स्तर पर खुद से किए गए संवादों की झलक कागज पर उतारती हैं। उनकी काफी कविताओं में साथी के प्रति उपजे विभि‍न्न भावों और विचारों की तस्वीर नजर आती है। वहीं कुछ दिल को छू लेने वाले विषयों को उन्होंने गजल के रूप में भी उतारा है।
 
हवाओं के साथ बहने लगे हैं, मुखौटों पे जिनके मुखौटे लगे हैं 
मुझे धक्का दे के जो आगे चले थे, घुटनों के बल आज चलने लगे हैं 
 
उजाले का है हर चलन बदला-बदला 
मशालें अंधेरे में जलने लगी हैं
 
संदीप राशि‍नकर का कविता संग्रह  केनवास पर शब्द, लगभग सभी रंगों से भरा और रेखाचित्रों से उभरा कविताओं का एक बगीचा सा है। यहां प्रकृति के साथ-साथ चिड़ि‍यों की चहक भी है और मन के अनेकों भाव भी जो कल्पना नगरी से चिरते कभी यथार्थ के धरातल पर, कभी अपनों के बीच रिश्तों के रूप में तो कभी दूर-दराज तक फैले हैं, अलग-अलग भावों के रूप में कागज पर उतरे हैं। कविताओं के साथ-साथ रेखाचित्रों का तालमेल अभि‍व्यक्ति को गहराई प्रदान करता है, और संदीप जी की कला को सराहने के लिए प्रोत्साहित भी करता है।
 
 
पुस्तक - केनवास पर शब्द 
लेखक - संदीप राशि‍नकर 
प्रकाशन - अंसारी पब्लिकेशन 
मूल्य - 250 रूपए 

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