अपनी कहानियों के लिए विषय और कच्चे माल की तलाश में विचार, भूगोल और समय की बनी-बनाई चौहद्दियों का अतिक्रमण करते हुए कहानी के कथातत्व को आरंभ से अंत तक प्राणवंत बनाए रखना जयश्री के कथाकार की ऐसी विशेषता है, जो इन्हें अपने समकालीनों से अलग ला खड़ा करता है। वैश्विक और स्थानीय के बीच संतुलन बनाकर चलने वालीं इन कहानियों का संवेदनात्मक भूगोल वृंदावन की विधवाओं से लेकर पंजाब के विवश वैश्विक विस्थापन तक फैला हुआ है।
कथा पात्रों के मनोविज्ञान की सूक्ष्मतम परतों की विश्वसनीय पड़ताल हो या सूचना क्रांति के बाद निर्मित आभासी दुनिया की नवीनतम जटिलताओं के बीच बनते-बिगड़ते निजी, पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के द्वंद्व- जयश्री इन सबको समान रचनाशीलता और तटस्थ अंतरंगता के साथ कथात्मक विन्यास प्रदान करती हैं।