औद्योगिक विकास कि जो निर्दय, निर्विवेक विरासत भोपाल गैस कांड के रूप में लगभग तीस साल पहले भोपालवासियों के ऊपर टूट पड़ी थी, वही इस उपन्यास का मूल विषय है।
दरअसल यह न गैस कांड से शुरू होकर उसके बाद सालों तक इस त्रासदी को लेकर समाज, देश, सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रेस और न्याय व्यवस्था के चक्रव्यूह में जो चला उसकी कहानी है।
नब्बे और उसके बाद जन्मे लोग, बहुत संभव है कि इस घटना के बारे में बहुत मूर्त ढंग से कुछ न सोच पाते हों, उनके लिए यह उपन्यास सिर्फ इसलिए भी जरूरी है कि शायद पहली बार किसी उपन्यास में वे विवरण आए हैं, जो उन्हें उस त्रासदी की भयावहता को महसूस करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही उस पूरे वैचारिक, सामाजिक और प्रशासनिक-न्यायिक विमर्श को जानने में भी, जो बरसों चलता रहा।
परिचय - अंजली देशपांडे। जन्म 1954 में। हिंदी-अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में लेखन। पेशे से पत्रकार। छात्र आंदोलन से नारी मुक्ति आंदोलन तक अनेक आंदोलनों से जुड़ी रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. की पढ़ाई तथा दिल्ली पत्रकार संघ के लिए ‘26/11' यानी मुंबई पर आतंकी हमले की मीडिया में रिपोर्टिंग पर आप चर्चित समालोचना की सहलेखिका हैं। राजस्थान में बंधुआ मजदूरी और दिल्ली में घरेलू कामकाज में बाल मजदूरी पर आपके दशोध-पत्र भी प्रकाशित। कई नुक्कड़ नाटक लिखे और उनमें अभिनय भी किया। अंग्रेजी में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस के स्कूली पाठ्यक्रम और वेब मैगज़ीन 'आउटऑफ प्रिंट' सहित हिंदी और अंग्रेजी में आपकी कई कहानियों का प्रकाशन।