एक कवि आमतौर पर अपने एक ही रंग के लिए जाना जाता है, यूं कहें कि उसका अपना एक सिग्नैचर स्टाइल होता है। ता-उम्र उसके लेखन में वही एक छाप या एक इंप्रेशन नजर आता है। यही वजह है कि लेखक अपनी ही गढ़ी हुई इमेज से कई बार बाहर नहीं निकल पाता है। यह कोई बुरी बात नहीं है, हालांकि इस वजह से कई बार लेखन को विस्तार नहीं मिल पाता, और न ही लेखक अपने विचार को एक्सप्लौर ही कर पाता है।
लेकिन ठेला एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो अपने भीतर प्रेम के बेहद संवेदनशील भाव से लेकर मां के प्रति स्नेह, जिंदगी का त्रास, समाज की अराजकता, बीत रही उम्र का हिसाब और अनुभव सबकुछ लेकर चलती है। ठेला पढ़ते हुए यह अनुभूति होती है कि एक आदमी जो अपनी उम्र के एक पड़ाव को पार कर चुका है, वो जिंदगी का कितना विशाल, कितना वृहद कोलाज अपने भीतर लेकर चलता है। जिसमें कई आड़े-तिरछे किस्से और मजेदार पंक्तियां हैं।
लेखक अपने इस संकलन में अतीत और वर्तमान जीवन के इन दोनों आयामों को दर्ज करते हुए व्यंग्य भी रचते हैं, लेकिन व्यंग्य भी तो अंतत: एक गंभीर अनुभव होता है। जैसे किसी ने कहा था, कॉमेडी इज ए सिरियस सब्जेक्ट
हो सकता है इस व्यंग्य में कहीं आपके होंठ थोड़े से खुल जाए, लेकिन पंक्तियों के बीच कहीं छुपी हुई पीड़ा की सिकन भी उभर आती है, दुख की एक दरार सी नजर आ जाती है। यह पढ़ने वाले पर निर्भर है, वो इसे कैसे ग्रहण करता है।
लेखक अपने आसपास की चीजों को बेहद करीब और डीटेल में देखते हैं। इसलिए वे कभी कुत्ते से संवाद करते हुए लिखते हैं,
देर रात को सड़क से गुजरते हुए कुत्ता आपको डरा नहीं रहा है, रात के सन्नाटे से बोर वह तो आपसे बातें करना चाह रहा है।
पत्रकारिता व्यवसाय में रहते और उसे करीब देखने की वजह से यह छाप भी नजर आती है। एक कविता में वे कहते हैं,
बेईमान दुनिया में रह रहा हूं, बेशर्म बन कर जिंदा हूं झूठे मखमली वैभव पर पेबस्त, सच के टाट का चिन्दा हूं प्रजातंत्र में रह रहा हूं, वादे खाकर जिंदा हूं आजाद भारत में उपेक्षित, लोकतंत्र का पांचवां खम्बा हूं
ब्रेकिंग न्यूज शीर्षक से कविता में भी पत्रकारिता की छाप नजर आती है।
ठेला काव्य संग्रह को यूं तो व्यंग्य संकलन कहा गया है, लेकिन उसमें प्रेम का प्रेम बोध का भी खासा असर है। लेखक ने कई प्रेम कविताओं का इसमें समावेश किया है। कभी वे पत्नी नाम की मुसीबत पर व्यंग्य करते हैं तो कभी पत्नी पर प्यार भी बरसाते हैं, अपनी कामयाबी में पत्नी का हर छोटा योगदान दर्ज करते हैं। वहीं, कभी वे बिखरी जुल्फों पर लिखते हैं।
उनकी कविता अंतिम यात्रा जेहन को हिला देने वाला मृत्यु का चित्रण करती है। वहीं दूसरी तरफ एक कविता में वे ईश्वर से कहते हैं, नहीं है तैयार हम तेरी दुनिया में फिर से फंसने के लिए
लेखक महेन्द्र कुमार सांघी अपने और अपने आसपास के हर दृश्य को बेहद करीब से देखकर उसे अक्षरों में, अपनी एक बेहद सरल और मासूम सी भाषा में दर्ज करते हैं। कोई ऐसा विषय नहीं, कोई ऐसा बिंब नहीं जिसका इस्तेमाल कर उसे उन्होंने अपनी कविता में न पिरोया हो।
यह संग्रह सिर्फ एक ठेला भर नहीं, जिंदगी के विशाल कोलाज का एक पूरा दस्तावेज है। जिसमें थोड़ी-सी कड़वाहट है, थोड़ी खीज, थोड़ा प्यार, कुछ स्नेह और उम्र के हर पड़ाव में आए तमाम अनुभव और अनुभूतियां शामिल हैं।
यह काव्य संग्रह पढ़ना बहुत रोचक अनुभव है, पढ़ते हुए किसी एक भाव में स्थिर रहना मुश्किल है, क्योंकि इसमें कई भाव और बोध हैं। एक उम्र के साथ चलते हुए रची गई डायरी को कविताओं में तब्दील किया गया है। एक व्यक्ति के तौर पर एक मनुष्य में कितने रंग होते हैं, कितने अनुभव और कितनी अनुभूतियां होती हैं यह जानने के लिए ठेला काव्य संग्रह जरूर पढ़ा जाना चाहिए।