Raksha Bandhan 2024। हर साल श्रावण/सावन के महीने में रक्षाबंधन का पर्व नजदीक आते ही राखी उत्सव की तैयारियां जोरों पर शुरू हो जाती है। इसका उत्साह घर के बड़े-बुजुर्ग, भाई-बहनें तथा बच्चों में देखने को मिलता है। इस दिन का इंतजार भाई और बहनें दोनों ही करते हैं, क्योंकि जहां बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं, वहीं भाई भी अपनी बहनों के लिए तरह-तरह की भेंट लाकर उन्हें उपहारस्वरूप देकर खुश करते हैं। इसी दिन यज्ञोपवीत भी बदला जाता है।
आइए यहां पढ़ें रक्षाबंधन के पर्व पर रोचक निबंध-
प्रस्तावना- राखी/रक्षाबंधन का त्योहार सात्विक प्रेम का पर्व है। रक्षा बंधन भाई-बहनों का वह त्योहार है, तो मुख्यत: हिन्दुओं में प्रचलित है पर इसे भारत के सभी धर्मों के लोग समान उत्साह और भावपूर्वक मनाते हैं। हर वर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन राखी पर्व या रक्षा बंधन का यह त्योहार मनाया जाता है। इसे तीन उत्सवों का पर्व भी कहते हैं। इस दिन श्रावणी पूर्णिमा, नारियल पूर्णिमा और रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। पूरे भारत में इस दिन का माहौल देखने लायक होता है और हो भी क्यूं ना, यही तो एक ऐसा विशेष दिन है जो भाई-बहनों के लिए बना है।
महत्व- वर्षों से चला आ रहा राखी का त्योहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। हालांकि रक्षा बंधन की व्यापकता अब पहले से भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। यूं तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है पर रक्षा बंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।
हिन्दू श्रावण मास यानी जुलाई-अगस्त के बीच पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। रक्षा बंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनको तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। राखी पूर्णिमा के पावन पर्व पर रेशम के धागे से बहन द्वारा भाई के कलाई पर बंधा यह बंधन हमें भारतीय होने पर गर्व महसूस कराता है, लेकिन यह तभी संभव होगा जब हम हर बेटी की रक्षा का वचन खुद से लेंगे और उस तरफ ठोस कदम उठाएंगे भी।
महाभारत : महाभारत में भी रक्षा बंधन पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि- मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।
इतिहास में राखी के महत्व के अनेक उल्लेख मिलते हैं। जिसमें मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी।
इतिहास में रक्षाबंधन : हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी। कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।
हिंदू पुराण की कथाओं में रक्षा बंधन के त्योहार का इतिहास वर्णित है। इसमें वामन अवतार नामक पौराणिक कथा में रक्षा बंधन का प्रसंग मिलता है।
कथा इस प्रकार है- राजा बलि ने यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार का प्रयत्न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु जी वामन ब्राह्मण बनकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी।
वामन बने भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई। नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया। बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
उपसंहार : रक्षा बंधन का त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। लेकिन भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं। आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है, वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले निरंतर सामने आते रहते हैं।
यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बेटी, बहनें, बहू, लड़कियां हमारे जीवन में कितना महत्व रखती हैं। अगर हमने कन्या-भ्रूण हत्या पर जल्द ही काबू नहीं पाया तो मुमकिन है एक दिन देश में लिंगानुपात और तेजी से घटेगा और सामाजिक असंतुलन भी। इसके साथ ही उन्ही बहनों को कुछ पुरुषों द्वारा उन्हें हानि पहुंचाने का काम भी किया जाता है, जो कि उचित नहीं हैं। इतना ही नहीं कई बालिकाएं युवाओं की शिकार हो जाती है, जो कि बिलकुल भी भाई कहलाने के लायक नहीं है।
इसीलिए हमें चाहिए कि हम अपने भाइयों-बहनों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम, कर्तव्य और रक्षा का दायित्व लेते हुए शुभकामनाएं तथा शुभाशीष के साथ रक्षा बंधन का त्योहार मनाना चाहिए। साथ ही बहनों की जान तथा लाज बचाने का संकल्प भी लेना चाहिए, ताकि किसी भी भाई की कलाई सुनी ना रहें और बहनें भी हमेशा सुरक्षित रहें।
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