जिसने एक जमाने में जिस घर में शाही पनीर खा रखा हो और उसे सुबह शाम धुली मूँग की दाल खिलाई जाए, उसका फू और फा करना वाजिब है, इसलिए ऐसे शख्स को फूफा कहना उचित है।
भूमिका : बुआ के पति को फूफा कहते हैं। फूफाओं का बड़ा रोना रहता है शादी ब्याह में। किसी शादी में जब भी आप किसी ऐसे अधेड़ शख़्स को देखें, जो पुराना, उधड़ती सिलाई वाला सूट पहने, मुंह बनाए तना-तना सा घूम रहा हो जिसके आसपास दो-तीन ऊबे हुए से लोग मनुहार की मुद्रा में हों तो बेखट के मान लीजिए कि यही बंदा दूल्हे का फूफा है!
ऐसे मांगलिक अवसर पर यदि फूफा मुंह न फुला ले तो लोग उसके फूफा होने पर ही संदेह करने लगते हैं। अपनी हैसियत जताने का आखिरी मौका होता है यह उसके लिये। और कोई भी हिंदुस्तानी फूफा इसे गंवाना नहीं चाहता है!
करता कैसे है यह सब :
वह किसी-न-किसी बातपर अनमना होगा। चिड़चिड़ाएगा। तीखी बयानबाज़ी करेगा। किसी बेतुकी-सी बात पर अपनी बेइज़्ज़ती होने की घोषणा करता हुआ किसी ऐसी जानी-पहचानी जगह के लिए निकल लेगा, जहां से उसे मनाकर वापस लाया जा सके!
अगला वाजिब सवाल यह है, फूफा ऐसा करता ही क्यों है (CAUSE)
: दरअसल फूफा जो होता है, वह व्यतीत होता हुआ जीजा होता है। वह यह मानने को तैयार नहीं होता कि उसके अच्छे दिन बीत चुके है और उसकी सम्मान की राजगद्दी पर किसी नये छोकरे ने जीजा होकर क़ब्ज़ा जमा लिया है। फूफा, फूफा नहीं होना चाहता। वह जीजा ही बने रहना चाहता है और शादी-ब्याह जैसे नाज़ुक मौके पर उसका मुंह फुलाना, जीजा बने रहने की नाकाम कोशिश भर होती है।
प्रभाव (EFFECT)
: फूफा को यह ग़लतफ़हमी होती है कि उसकी नाराज़गी को बहुत गंभीरता से लिया जाएगा। पर अमूमन ऐसा होता नहीं। लड़के का बाप उसे बतौर जीजा ढोते-ढोते ऑलरेडी थका हुआ होता है। ऊपर से लड़के लडकी के ब्याह के सौ लफड़े। इसलिये वह एकाध बार ख़ुद कोशिश करता है और थक-हारकर अपने इस बुढ़ाते जीजा को अपने किसी नकारे भाई बंद के हवाले कर दूसरे ज़्यादा ज़रूरी कामों में जुट जाताहै।
बाकी लोग फूफा के ऐंठने को शादी के दूसरे रिवाजों की ही तरह लेते हैं। वे यह मानते हैं कि यह यही सब करने ही आया था और अगर यही नहीं करेगा तो क्या करेगा? ज़ाहिर है कि वे भी उसे क़तई तवज्जो नहीं देते। फूफा यदि थोड़ा-बहुत भी समझदार हुआ तो बात को ज़्यादा लम्बा नहीं खींचता।
समाधान (SOLUTION)
: वह माहौल भांप जाता है। मामला हाथ से निकल जाए, उसके पहले ही मान जाता है। बीबी की तरेरी हुई आंखें उसे समझा देती हैं कि बात को और आगे बढ़ाना ठीक नहीं। लिहाजा, वह बहिष्कार समाप्त कर ब्याह की मुख्य धारा में लौट आता है।
हालांकि, वह हंसता-बोलता फिर भी नहीं और तना-तना सा बना रहता है। उसकी एकाध उम्रदराज सालियां और उसकी ख़ुद की बीबी ज़रूर थोड़ी-बहुत उसके आगे-पीछे लगी रहती हैं। पर जल्दी ही वे भी उसे भगवान भरोसे छोड़-छाड़ दूसरों से रिश्तेदारी निभाने में व्यस्त हो जाती हैं।
भविष्य (FUTURE)
: फूफा बहादुर शाह ज़फ़र की गति को प्राप्त होता है। अपना राज हाथ से निकलता देख कुढ़ता है, पर किसी से कुछ कह नहीं पाता। मन मसोस कर रोटी खाता है और दूसरों से बहुत पहले शादी का पंडाल छोड़ खर्राटे लेने अपने कमरे में लौट आता है। फूफा चूंकि और कुछ कर नहीं सकता, इसलिए वह यही करता है।
उपसंहार(The End)
: इन हालात को देखते हुए मेरी आप सबसे यह अपील है कि फूफाओं पर हंसिए मत। आप आजीवन जीजा नहीं बने रह सकते। आज नहीं तो कल आपको भी फूफा होकर मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा हो जाना है।