एक बार गुप्ता जी को कहीं दावत पर जाना था।
जमाना पुराना था, स्ट्रीट लाइट वगैरह तब ज्यादा नहीं हुआ करती थी।
उन्होंने सोचा कि आज तो बहुत देर रात तक शेरो-शायरी, मौसिकी और शराब की महफ़िल जमेगी, इसलिए अंधेरे में घर लौटने में दिक्कत हो सकती है तो क्यों न घर से अपना लालटेन भी साथ लेकर चलें।
फिर जैसा कि उन्होंने सोचा था, महफ़िल वैसी ही देर रात तक चली।
गुप्ता जी जैसे तैसे नशे में टुन्न होकर घर लौटे। बेचारे दोपहर तक सोते रहे।
गुप्ता जी :- जी नहीं साहब, कैसे याद किया?
मेजबान :- कैसी रही दावत? रात को अंधेरे में घर पहुंचने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?