विभूतिनारायण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

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पिछले दिनों विभूतिनारायण राय द्वारा लेखिकाओं पर की गई अभद्र टिप्पणी के खिलाफ संस्था 'सार्थक संवाद' द्वारा एक निषेध प्रस्ताव पारित किया गया। संस्था सार्थक संवाद ने विभूतिनारायण राय तथा 'नया ज्ञानोदय' पत्रिका के संपादक रवीन्द्र कालिया के संपादकीय अविवेक के खिलाफ मुंबई में महिला रचनाकारों के साथ विरोध प्रदर्शन किया।

अपसंस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यहीनता के खिलाफ 'सार्थक संवाद' संस्था का गठन 1994 में मुंबई की महिला रचनाकारों ने मिलकर किया था। मुंबई महानगर की रचनाकारों, प्राध्यापिकाओं और विश्वविद्यालय की छात्राओं ने बड़ी संख्या में उपस्थित होकर चर्चा में भाग लिया। सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया कि कुलपति की जिम्मेदार कुर्सी को शर्मसार करने वाले और संपादक के गंभीर दायित्व की उपेक्षा करने वाले व्यक्तियों को इन पदों पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। गरिमापूर्ण पद को कलंकित करने के कारण इन्हें अविलंब इस्तीफा देने के लिए विवश किया जाना चाहिए।

हिन्दुस्तानी प्रचार सभा की मानद निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता ने आयोजन की भूमिका प्रस्तुत की। कुतुबनुमा की संपादक डॉ. राजम नटराजन ने कहा कि महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय केंद्र सरकार की अधीनस्थ संस्था है जिसकी स्थापना भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए की गई है। आज जब देश के सर्वोच्च नागरिक पद पर महिला राष्ट्रपति हों, इस तरह के वक्तव्य और अधिक असंवैधानिक हो जाते हैं।

'नया ज्ञानोदय' की प्रबंधन समिति की भी जिम्मेदारी बनती है कि हल्के स्तर की सामग्री के प्रकाद्गान पर रोक लगाएँ। 'नया ज्ञानोदय' किसी गली कूचे में छपने वाला पीत पत्र नहीं है। क्या भारतीय भाषाओं को गरिमा देने के लिए बनाए गए संस्थान के प्रबंधकों को भी बाजारीकरण (टी.आर.पी.) का खेल भाने लग गया है?

वरिष्ठ कथाकार सुधा अरोड़ा ने कहा कि इस पूरे प्रकरण ने संपादकीय नैतिकता और दायित्व पर सवाल खड़े किए हैं। इससे भारतीय ज्ञानपीठ जैसे संस्थान की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य की सबसे बड़ी विडंबना है कि जिन लेखकों ने अपने जीवन में स्त्रियों को कभी उनका अपेक्षित सम्मान नहीं दिया और जो हर स्त्री को 'वस्तु' की तरह देखते हैं, वे ही स्त्रियों के मुद्दों पर तफरीह से साक्षात्कार देते और विमर्श करते दिखाई देते हैं। शायद वे अपनी करनी के गुनाहों को कथनी की चादर से ढक लेना चाहते हैं। ऐसी मानसिकता वाले पुरुषों का शाब्दिक विचलन स्वाभाविक है पर इस वक्तव्य को शाब्दिक विचलन कहकर माफ नहीं किया जाना चाहिए। डॉ. शशि मिश्रा ने 'बेवफाई के विराट उत्सव' पर गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि बेवफाई का उत्सव ही अपने आप में शर्मनाक है फिर उसका विराट होना तो संस्कृति को रौंदने जैसा है। पद के मद में चूर हमारे ये पुरोधा अपनी पारंपरिक संस्कृति, अपनी सहकर्मी के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते तो उन्हें सार्वजनिक दायित्वों से बर्खास्त करने की माँग प्रबल होनी चाहिए।

कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने कहा - इन कुलपति महोदय के मनचले स्वभाव के बारे में मैं कई सालों से सुनती आ रही हूँ। अब यह मानसिकता खुलकर सामने आ गई है। उन्होंने कुलपति के अभद्र बयान को 'बेबाक बयान' कहने वाले रवींद्र कालिया को समान रूप से जिम्मेदार माना।

डॉ. सुनीता साखरे ने महिला विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए संपूर्ण समुदाय की अस्मिता की बात की। सभा में उपस्थित सभी महिलाओं ने जोरदार शब्दों में, एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से कुलाधिपति नामवर सिंह से यह निवेदन किया कि वे अपनी मारक चुप्पी को तोड़ें। वे मात्र एक अकादमिक व्यक्तित्व नहीं है, हिन्दी साहित्य की समीक्षा के शलाका पुरुष हैं। इस प्रकरण से हिन्दी साहित्य और हिन्दी भाषा को एक गर्त में धकेल दिया गया है।

इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार श्रीमती कमलेश बख्शी, गुजराती लेखिका डॉ. हंसा प्रदीप,युवा कवयित्री कविता गुप्ता, डॉ. नगमा जावेद, डॉ. उषा मिश्रा, डॉ. किरण सिंह, डॉ. विनीता सहाय, डॉ. मंजुला देसाई, डॉ. संगीता सहजवानी, सुश्री संज्योति सानप तथा समस्त स्नातकोत्तर छात्राओं ने विभूतिनारायण राय और रवीन्द्र कालिया के इस्तीफे की माँग पर एकजुट होकर हस्ताक्षर किए।

सांस्कृतिक और साहित्यिक अवमूल्यन को अपदस्थ कर हिन्दी साहित्य और संस्कृति की गरिमा को लौटा लाने की विकलता को क्या ये सभी पदाधिकारी और संस्थानों के मालिक और उच्चाधिकारी महसूस करेंगे?

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