कबीर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। मालवा का तो कबीर से गहरा संबंध रहा है। यहां की मौखिक गायन परम्परा ने बहुत नाम कमाया है। मालवा ने कबीर को मौखिक तौर पर घर घर तक पहुँचाया।
कबीर से हमारे हिस्टोरिकल रिलेशन को कोई नहीं मिटा सकता। लेकिन कबीर की हर बात को आज के समय में प्रासंगिक मान लेना गलत होगा। जरूरी यह है कि हम कबीर को राम के प्रति, और मनुष्य के प्रति प्रेम के माध्यम से समझ समझे।
कबीर का प्रेम
कबीर का प्रेम समझना होगा। कबीर सिर्फ प्रेम की ही बात नहीं करते, वो उन चीजों से घृणा भी करते हैं जो घृणा के लायक है। वे प्रेम और नफ़रत में साफ़ खाई को देखते हैं। कबीर मूलतः कवि थे इसलिए उनके प्रेम में भी कविता है।
वैष्णव शब्द एक व्यापक शब्द है। हिंदुस्तान में हर वो मनुष्य वैष्णव है जो मांसाहार नहीं करता और ऊंच नीच में आस्था नहीं रखता। लेकिन कबीर वैष्णव के लिए भी गाइडलाइन जारी करते हैं।
कबीर का सहज
कबीर का सहज भी इतना आसान नहीं, वो अनुशासन की बात करते हैं। वो अनुशासन सार्थक और नैतिक जीवन जीने का अनुशासन है। नमाज़ पढ़ने और कर्म कांड का जीवन नहीं है।
जब- तक हम व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से अपनी वासनाओं को नियंत्रित नहीं करेंगे, हम कबीर को अपना नहीं पाएंगे।
कबीर की राम की अवधारणा में वो राम नहीं जो अयोध्या का राजा है।