हर भाषा की अपनी एक अलग पहचान होती है। भाषा की यह पहचान इस भाषा के बोलने वालों की सांस्कृतिक परंपराओं, देशकाल-वातावरण, परिवेशजन्य विशेषताओं, जीवनशैली, रुचियों, चिंतन-प्रक्रिया आदि से निर्मित होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हर भाषा का अपना एक अलग मिज़ाज होता है, अपनी एक अलग प्रकृति होती है, जिसे दूसरी भाषा में ढालना या फिर अनुवादित करना असंभव नहीं तो कठिन जरूर होता।