* मैं गद्य का ऐसा बुरा पाठक नहीं हूं जैसा लोंगों ने मुझे बदनाम किया है -अशोक वाजपेयी
नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेले के दूसरे दिन रविवार होने के कारण राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर पुस्तकप्रेमियों का उत्साह देखने लायक था, पाठक अपने प्रिय लेखकों के किताबों को खरीदने के लिए उमड़े हुए थे।
राजकमल प्रकाशन को दोपहर बाद साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास ‘कलिकथा वाया बायपास’ की विख्यात लेखिका अलका सरावगी का एक और दिलचस्प उपन्यास ‘एक सच्ची-झूठी गाथा’ का लोकार्पण वरिष्ठ कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी, लेखक प्रियदर्शन और राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी द्वारा किया गया।
अशोक वाजपेयी ने अलका सरावगी के पुस्तक अंश पढ़ते हुए कहा कि 'मैं गद्य का ऐसा बुरा पाठक नही हूं जैसा लोगों ने मुझे बदनाम किया है।' इसके साथ अशोक वाजपेयी ने पाठकों के आग्रह पर अपनी पुस्तक 'प्रतिनिधि कविताएं' में से कविता पाठ भी किया।
लेखक प्रियदर्शन ने कहा कि 'अलका सरावगी ने अपने पांचों उपन्यासों में कभी किसी दृश्य को दोहराया नहीं है।'
अलका सरावगी की यह पुस्तक इक्कीसवीं सदी की यह गाथा 'एक स्त्री और एक पुरुष' के संवाद और आत्मालाप से बुनी गई है। यहां सिर्फ सोच की उलझनें और उनकी टकराहट ही नहीं, आत्मीयता की आहट भी है, किन्तु यह सम्बन्ध इंटरनेट की हवाई तरंगों के मार्फत है, जहां किसी का अनदेखा, अनजाना वजूद पूरी तरह एक धोखा भी हो सकता है।
यह गाथा पाठकों को एक साथ कई अनचिन्ही पगडंडियों की यात्रा कराएगी। कई बार उन्हें ऐसी जगहों पर ले जाएगी, जहां आगे जाने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा, लेकिन यह जोखिम उठाना खुद के अंदर के और बाहरी ब्रह्मांड की गहरी पहचान करवाएगा। एक ऐसी तृप्ति के बोध के साथ, जो सिर्फ दुस्साहस और नई अनुभूतियों को जीने के संकल्प से ही मिल सकती है।