रूदन जो पहुँचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक

Ravindra VyasWD
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादी हमले के घेरे में सौ से ज्यादा लोगों के मरने की खबरें और इस घेरे में घायलों की गूँजती चीखें इस घेरे का व्यास और मारकता ज्यादा बढ़ाती हैं। इस पागलपन का असर कहाँ तक गया है, इसका अंदाजा शायद राजनीतिज्ञों, अर्थशास्त्रियो, समाजशास्त्रियों, पुलिस और कानून के विशेषज्ञों द्वारा अलग अलग लगाया जाएगा और इनकी राय, विश्लेषण और इससे निकलने वाले विचार निश्चित ही महत्वपूर्ण माने जाएँगे

लेकिन इस तरह की घटनाओं और पागलपन को एक कवि की निगाह बिलकुल भिन्न तरह से देखती-दिखाती है। एक कवि अपने समय की बड़ी घटनाओं और चीखों-चीत्कारों का ज्यादा मानवीय और मानीखेज ढंग से बखान करता है।


अब जबकि मुंबई में आतंकवादी हमला हुआ है ऐसे में इस बार हम संगत स्तंभ के तहत इजराइल के एक महान कवि येहूदा अमीखाई की एक कविता बम का व्यास का चयन कर रहे हैं। यह कविता इस तरह की हिंसा भरी घटनाओं की दूर तक फैली हद में आए लोगों के दुःख को अपनी नैतिक संवेदना के साथ इतनी मारकता से अभिव्यक्त करती हैं कि आप गहरे विचलित हो जाते हैं।


  इस तरह की घटनाओं और पागलपन को एक कवि की निगाह बिलकुल भिन्न तरह से देखती-दिखाती है। एक कवि अपने समय की बड़ी घटनाओं और चीखों-चीत्कारों का ज्यादा मानवीय और मानीखेज ढंग से बखान करता है।       
येहूदा अमीखाई अपनी कविता में अचूक दृष्टि और गहरी मानवीय प्रतिबद्धता से अपने समय की हलचलों को इस तरह छूते हैं कि वह अपनी तमाम स्थानीयता और भौगोलिकता को पार करते हुए एक सार्वभौमिक सत्य को उद्घाटित करती है। यहाँ उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने देश के प्रति अपने अगाध प्रेम और अस्तित्व के लिए लड़ाइयों में हिस्सा लिया और शांति के लिए प्रयासरत रहे।


वे हिंसा से लहूलुहान देश और अपने प्यारे-पवित्र शहर जेरूसलम से प्रेम के चलते मार्मिक कविताएँ लिखीं। इन्हें इजराइल की पोएटिक वॉइस कहा गया। हिंसा, युद्ध और आतंक से व्यथित रहे और अपने समय की सचाईयों को उन्होंने बिना चीखे-चिल्लाए अपने संयत रचनात्मक कौशल से अभिव्यक्त किया। इसकी मार्मिकता हमें गहरे तक विचलित करती है।


उनकी इस कविता बम का व्यास में जो सच और मर्म है वह अपनी नैतिक संवेदना में थरथराता हुआ तमाम तरह की हिंसा के खिलाफ एक तीखा प्रतिरोधी स्वर बन जाता है। यह कविता इसका मजबूत साक्ष्य है। कविता इन पंक्तियों से शुरू होती है-

तीस सेन्टीमीटर था बम का व्यास
और इसका प्रभाव पड़ता था सात मीटर तक
चार लोग मारे गए, ग्यारह घायल हुए

शुरूआत की इन तीन पंक्तियों में कुछ सूचनाएँ हैं। ये सूचनाएँ लगभग खबर के अंदाज में हैं। इसमें एक तरह का भावनात्मक सूखापन साफ लक्षित किया जा सकता है क्योंकि इनमें आंकड़े हैं और इन पर अपनी तरफ से कोई टिप्पणी करने की कोशिश नहीं की गई है।


चौथी और पाँचवी पंक्ति में भी सूचना है लेकिन यहां संवेदना का स्पर्श है। दो अस्पताल और एक कब्रिस्तान के तबाह होने की बात है लेकिन कवि की निगाह यह बताने से नहीं चूकती कि इनके चारों तरफ एक बड़ा घेरा है दर्द और समय का।

इनके चारों तरफ़ एक और बड़ा घेरा है - दर्द और समय का

दो हस्पताल और एक कब्रिस्तान तबाह हुए

एक घटना को कवि की निगाह किस तरह देखती है इसकी काव्यात्मक मिसाल काबिले गौर है।

लेकिन वह जवान औरत जिसे दफ़नाया गया शहर में

वह रहनेवाली थी सौ किलोमीटर से आगे कहीं की

वह बना देती है घेरे को और बड़ा

इन पंक्तियों में सौ किलोमीटर आगे रहने वाली एक जवान औरत को दफनाने की सूचना धीरे धीरे काव्य संवेदना में थरथराती हुई इस घेरे को और बड़ा बनाती जा रही है।

जाहिर है जिस बम का व्यास तीन सेंटीमीटर था वह अब कवि निगाह से लगातार फैलता जा रहा है। कविता यही करती है। वह अपनी तरलता और संवेदना में एक बड़े सच को, उसमें छिपे मर्म को इसी तरह व्यक्त करती है।

  इस कविता का सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह कविता अपने को भावुकता से बचाती हुई उस नैतिक संवेदना से बनी है जो तमाम हिंसा के खिलाफ एक प्रतिरोध है।      
अब यह घेरा और बड़ा हो रहा है क्योंकि जिस बम से मरी औरत का आदमी सुदूर किनारों पर उसका शोक कर रहा है जो समूचे संसार को इस घेरे में ले रहा है।

और वह अकेला शख़्स जो समुन्दर पार किसी

देश के सुदूर किनारों पर

उसकी मृत्यु का शोक कर रहा था -

समूचे संसार को ले लेता है इस घेरे में


कहा जाता है कि हिंसा का शिकार सबसे ज्यादा महिलाएँ और बच्चे होते हैं। यदि हम आँकड़ें और उन तमाम खबरों का यहाँ न भी दें तो यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंसा की मार कहाँ-कहाँ और किस-किस तरह महिलाओं और बच्चों पर पड़ती है।


कवि अपनी आखिरी पंक्तियों में जो सच बताने जा रहा है वह इसका कविता को कितना बड़ा बना देता है, इस बम के व्यास के घेरे को कितना फैला देता है। इन पंक्तियों को पढ़िए-


और अनाथ बच्चों के उस रुदन का तो मैं

ज़िक्र तक नहीं करूँगा

जो पहुँचता है ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक

और उससे भी आगे

और जो एक घेरा बनाता है बिना अन्त

और बिना ईश्वर का ...

जैसा कि इस टिप्पणी में पहले कहा गया है कि एक कवि की निगाह इस घटना को कितनी गहरी संवेदना के जल में थरथराते हुए देखते-दिखाती है कि हम गहरे विचलित हो जाते हैं। इस बम विस्फोट में कवि उन अनाथ बच्चों के रूदन का जिक्र नहीं करना चाहता जो ऊपर ईश्वर के सिंहासन तक और उससे भी आगे चला गया है। यह रूदन ही वह घेरा बनाता है अंत का और बिना ईश्वर का।


कहने की जरूरत नहीं कि एक कवि ही वह अनसुना रूदन सुना सकता है जिससे हमारी आत्मा तक सिहर जाती है। सचमुच एक कवि हमारे सामने कितना बड़ा और बारीक मर्म उद्घाटित कर रहा है जिसमें अनाथ बच्चों के रूदन का अंतहीन और बिना ईश्वर का घेरा है। इस कविता का सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह कविता अपने को भावुकता से बचाती हुई उस नैतिक संवेदना से बनी है जो तमाम हिंसा के खिलाफ एक प्रतिरोध है।

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