बहुत मशहूर गीत है यह आशाजी का। आप इसे कई दफे सुन चुके होंगे। सन् 65 के साल इस गीत का वो आलम था कि रोज किसी-न-किसी रेडियो प्रोग्राम में या किसी-न-किसी रेडियो स्टेशन से यह बजता ही रहता था।
गीत क्यों इतना मशहूर हुआ? पहला मगर छिपा हुआ कारण है इसकी शायरी, जो आसान होने के साथ-साथ दिल को छू लेने वाली है। दूसरा कारण है इस गीत की धुन। वह इतनी मनमोहक और तालप्रधान है कि हमारे दिल को टप्पे की तरह उछालती चलती है और खामोश, ठंडी हवा सा सुकूनदेह नर्म एहसास नब्जों को देती है।
तीसरा विशेष कारण है- स्वयं नैयर साहब का वाद्य संगीत। यहां रोम-रोम को पुलका जाने वाला मीठा, गहरा संगीत है, जो हवा में फूल की पंखुड़ी सा बहता है और रंचमात्र अति में नहीं जाता। ऐसा लगता है जैसे गीत, गायन और साज की अदायगी सब कुदरत से उपजे हैं और कुदरती सम के भीतर चल रहे हैं।
मजाल क्या बाल का हजारवां भाग इधर-उधर हो जाए। इसी के साथ ऑर्केस्ट्रा में शोर-शराबा और वाद्यों की फिजूलखर्ची नहीं है। इने-गिने वाद्यों से इस अमर मेलडी को रच दिया गया है। मगर इन तमाम बातों को सर झुकाकर मंजूर करते हुए भी जोर से चीखकर यह कहने को जी करता है कि गीत की असल आत्मा हैं आशाजी।
यह आउट एंड आउट उनका गीत है। उनके सिवा किसी और के गाने की कल्पना नहीं की जा सकती। इस गीत में उनकी संवेदनशीलता, ठहराव, संतुलन और दर्दभरी मादकता का जवाब नहीं है। थमे-थमे से लरजते हुए आलाप उन्होंने इस संयम और मार्मिकता से लिए हैं कि पंखुड़ी से बादलों को चीरते जाने का अहसास होता है।
गीत पढ़िए- (फिल्म : मेरे सनम/ गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी)
जाइए आप कहां जाएंगे
ये नजर लौट के फिर आएगी
दूर तक आपके पीछे-पीछे
मेरी आवाज चली आएगी
जाइए आप... फिर आएगी
...ये नजर... फिर आएगी
आपको प्यार मेरा याद जहां आएगा
कोई कांटा-सा कहीं दामन से लिपट जाएगा-2
जाइए आप... फिर आएगी
ये नजर...... फिर आएगी
जब उठोगे मेरी बेताब निगाहों की तरह
रोक लेगी कोई डाली मेरी बांहों की तरह-2
जाइए आप... फिर आएगी
ये नजर...... फिर आएगी
(इस अंतरे के बाद आशा दर्दभरे आलाप लेती हैं। वे स्वयं गीत से ज्यादा कह देते हैं।)
देखिए चैन न मिलेगा कहीं दिल के सिवा,
आपका कोई नहीं, कोई नहीं दिल के सिवा
(ऊपर की दो लाइनें कितनी सार्वभौमिक हैं। ऐसे फलसफे इन फिल्मी गीतों में आ जाया करते थे। यह अलग बात है कि सिनेमा को हेय मानने वाले आचार्यों की जमात इन्हें अभी तक साहित्यिक नहीं मान सकी। देखें कौन कूड़ेदान में फेंका जाता है?)
जाइए आप कहां जाएंगे/
ये नजर लौट के फिर आएगी-2
दूर तक आपके पीछे-पीछे-2
मेरी आवाज चली जाएगी
जाइए आप... फिर आएगी
ये नजर... फिर आएगी
आगे आशाजी थोड़ा गुनगुनाती हैं और गीत खत्म। कमरे में सन्नाटा छा जाता है। गीली दीवारों पर आशा की सिलगती आवाज चिपकी रह जाती है। बाद में नैयर-आशा की जोड़ी टूट गई, जैसे राज कपूर व नरगिस की टूट गई, लता और सी. रामचन्द्र की टूट गई। दोष किसका था, फैसला करना बेकार है, क्योंकि कुदरत को अपना काम लेना था और वह ले चुकी थी। अदाकार पृष्ठभूमि में चले गए। उनकी अब कोई दास्तां नहीं। बस उनका काम ही उनका नाम है, जैसे यह नगमा
चलते-चलते नैयर साहब की तरफ से एक शे'र-
हमसे क्या हो सका मोहब्बत में
तूने तो खैर बेवफाई की।
(अजातशत्रु द्वारा लिखित पुस्तक 'गीत गंगा खण्ड 2' से साभार, प्रकाशक: लाभचन्द प्रकाशन)