हिन्दी कविता : अलग-अलग विषय

बेटी राखी पावनी, ज्यों गंगा की धार।
दोनों कुल पावन करे, खुशियां देय अपार।


 
रक्षाबंधन पर्व है, नेह-मिलन और मिठास।
बहनों को रक्षा वचन, भाइयों को स्नेह आकाश।
 
पदक तालिका देखकर, लोग हैं बहुत निराश।
यह ओलंपिक सूना गया, अब आगे की आस।
 
बाजारों में शिक्षा बिकी, खो गए सारे मूल्य।
फर्जी डिग्री बिक रही, नौकरी हुई अमूल्य।
 
मुख्य न्यायाधीश रो रहे, देख व्यवस्था न्याय।
सरकारें सोती रहीं, न्याय बना अन्याय।
 

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