कविता : ऐश्वर्या राय का कमरा
- बृजमोहन स्वामी 'बैरागी'
चला जाता हूं उस सड़क पर
जहां लिखा होता है-
आगे जाना मना है।
मुझे खुद के अंदर घुटन होती है
मैं समझता हूं लूई पास्चर को,
जिसने बताया कि
करोड़ों बैक्टीरिया हमें अंदर ही अंदर खाते हैं
पर वो लाभदायक निकलते हैं
इसलिए वो मेरी घुटन के जिम्मेदार नही हैं
कुछ और ही है
जो मुझे खाता है चबा-चबा कर।
आपको भी खाता होगा कभी
शायद नींद में या जागते हुए
या रोटी को तड़फते
झुग्गी झोंपड़ियों के बच्चों को
निहारती आपकी आंखों को।
धूप, नहीं आएगी उस दिन
दीवारें गिर चुकी होंगी
या काली हो जाएंगी
आपके बालों की तरह
आप उन पर गार्नियर या कोई
महंगा शैंपू नही रगड़ पाओगे
आपकी वो काली हुई दीवार
इंसान के अन्य ग्रह पर रहने के
सपने को और भी ज्यादा आसान कर देगी।
अगर आपको भी है पैर हिलाने की आदत,
तो हो जाएं सावधान..
सूरज कभी भी फट सकता है
दो रुपये के पटाके की तरह
और चांद हंसेगा उस पर
तब हम, गुनगुनाएंगे
हिमेश रेशमिया का कोई नया गाना।
तीन साल की उम्र तक आपका
बच्चा नहीं चल रहा होगा तो
आप कुछ करने की बजाए
कोसेंगे बाइबिल और गीता को
तब तक आपका बैडरूम
बदल चुका होगा एक तहखाने में
आप कुछ नहीं कर पाओगे
आपकी तरह मेरा दिमाग
या मेरा आलिंद-निलय का जोड़ा,
सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है
कि जब मृत्यु घटित होती है,
तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या नहीं?
आपके शरीर पर कोई नुकीला पदार्थ खरोंचेगा
और अगर धर्म, पदार्थ को पकड़ ले,
तो विज्ञान की फिर
कोई भी जरूरत नहीं है।
मैं मानता हूं कि हम सब
बौने होते जा रहे हैं
कल तक हम सिकुड़ जाएंगे
तब दीवार पर लटकी
आइंस्टीन की एक अंगुली हम पर हंसेगी।
और आप सोचते होंगे कि
मैं कहां जाऊंगा?
मैं सपना लूंगा एक लंबा सा
उसमें कोई "वास्को डी गामा" फिर से
कलकत्ता की छाती पर कदम रखेगा
और आवाज सुनकर मैं उठ खड़ा हो जाऊंगा
एक भूखा बच्चा,
वियतनाम की खून से सनी गली में
अपनी मां को खोज लेता है
उस वक्त ऐश्वर्या राय
अपने कमरे (मंगल ग्रह वाला) में सो रही है
और दुबई वाला उसका फ्लैट खाली पड़ा है।
मेरे घर में चीनी खत्म हो गई है..
मुझे उधार लानी होगी..
इसलिये बाकी कविता कभी नही लिख पाउंगा।
(हालांकि आपका सोचना गलत है)