दिवाली पर कविता : हे मां

हे मां सीते, विनती है मेरी
घर दीवाली पर आ जाना
राम लखन बजरंगी सहित
जन-जन के उर बस जाना
 
हे मां सीते, मेरा हर धाम
चरणों में तेरे रोज बसता है
दि‍वाली की यह जगमगाहट
तेरे ही तेज से मिलती है
मां सीते, आकर उर मेरे 
प्यार फुलझड़ी जला जाना
हर जन को रोशन करके 
अंधेरा दिल का मिटा जाना
 
हे मां सीते! आशीष अपना
दुष्ट जनों पर बरसा जाना
बन कर दीप चाहतों का तुम
नवयौवन का अंकुर फूटा जाना
 
हे मां सीते, दिलों में आकर
लोगों को सब्र का पाठ पढ़ाना
जैसे तुम बसी हो उर राम के 
वैसे प्रिय प्रेम का दीप जला जाना
 
हे मां, लक्ष्मण प्रिय भक्त तेरे
भाव हर भाई में यह जगाना
न हो बंटवारा भाई -भाई में 
दीप वह जला मां तुम जाना 
 
हे मां सीते, खील-खिलौने की 
हर गरीब जनों पर बारिशें हो 
हृदय में मधु मिठास को घोल
शब्द शब्द को मधु बना जाना 
 
दीप जलते अनगिनत दीवाली पर
राकेट जैसे जाता है दूर गगन तक
जाति-पाति धर्म की खाई को पाट
सबके हृदय विशाल बना जाना

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