कविता : मैं कवि नहीं कल्पित अक्षर हूं

मैं कवि नहीं कल्पित अक्षर हूं,
जो रच-रच शब्द खिलाता हूं।
बड़े-बड़े विद्वानों से,
समय-समय बचवाता हूं।।
मैं वीर नहीं विरला अक्षर हूं,
जो स्वर से स्वर मिलाता हूं।
बड़े-बड़े कलाकारों के संग,
साथ में ठुमका लगाता हूं।।
 
मैं फूल नहीं फुलझड़ियां हूं,
जो बायां हाथ मिलाता हूं।
भगवान के मन-मंदिर में,
मंगलमय बात बताता हूं।।

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