खुद लिख रहा पड़ोसी राष्ट्र अपनी बर्बादी की इबारत...

जलने दो उसे फिदाई आतंकवाद की आग में।
धर्मांधता की खोह में मुंह ढंककर सोने दो।


 
आज के संसार में दोनों हैं आत्मघाती जहर।
उसे अपनी जिद पर अपने हाथों बर्बाद होने दो ।।1।।
 
फैक्टरियां सुस्त हैं वहां, अर्थव्यवस्था उतार पर।
कई मायनों में देश दिवालियेपन की कगार पर।
विकसित देशों के दरवाजे उनके लिए बंद हैं।
युवा हैं वहां दिग्भ्रमित, उनके करियर कुंद हैं ।।2।।
 
घुसपैठियों पर हमारी सख्ती ने पैदा कर दी है उनमें घुटन।
अमेरिका, मध्य-पूर्व से किए विश्वासघातों से पैदा अनबन।
प्रांतों के असंतोष से मंडरा रहा खतरा-ए-विघटन।
मतलबी चीन के शिकंजों में अब उसकी गरदन ।।3।।
 
जहां हो सर्वशक्तिमान वहां सिविल सत्ता कहां टिक पाएगी।
सेना तो भस्मासुर है, दूसरों को नहीं तो खुद को खाएगी।
(सत्ता/ सुविधा की कमी होते ही लाल-लाल आंखें दिखाएगी)।
सेना, धर्मांधता, आतंकवाद तो चक्रव्यूह हैं, भंवर हैं।
इनमें फंसे राष्ट्र को कोई दुआ न बचा पाएगी ।।4।।
 

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