जो अतिथि विद्वान, अतिथि शिक्षक, अध्यापक
की तख्तियां टांगें कोशिश में हैं थामने की
पहाड़ से लुढ़कती सरकारी शिक्षा को।
सिसकती, बिलखती सरकारी शिक्षा
लच्छेदार भाषणों के पिटारे में।
कुछ नहीं हैं उन फटे-चिथड़े पहने
जिसने अपनी आत्मा की चीत्कार को
अपने केशों के साथ विसर्जित किया है।
मैं नहीं कहूंगा कि शासन निष्ठुर है
ये भी नहीं कहूंगा कि असंवेदनशील है
बल्कि कहूंगा ये बलात्कारी है
जिसने बलात्कार किया है शिक्षा से