अभिषेक कुमार अंबर की ग़ज़लें...

वो मुझे आसरा तो क्या देगा,
चलता देखेगा तो गिरा देगा।
 
क़र्ज़ तो तेरा वो चुका देगा,
लेकिन अहसान में दबा देगा।
 
हौसले होंगे जब बुलंद तेरे,
तब समंदर भी रास्ता देगा।
 
एक दिन तेरे जिस्म की रंगत,
वक़्त ढलता हुआ मिटा देगा।
 
हाथ पर हाथ रख के बैठा है,
खाने को क्या तुझे ख़ुदा देगा।
 
लाख गाली फ़क़ीर को दे लो,
इसके बदले भी वो दुआ देगा।
 
ख़्वाब कुछ कर गुज़रने का तेरा,
गहरी नींदों से भी जगा देगा।
 
क्या पता था कि जलते घर को मेरे,
मेरा अपना सगा हवा देगा।

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