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आशा जाकड़
बरसात के अथाह समुद्र में
पीड़ा का समुद्र उमड़ पड़ा।
नदी-नाल सब टूट पड़े,
सड़कों पर पानी का रेला,
बह रहा वर्षों का कचरा-मैला।
पेड़-पौधे नख-शिख तक भीग रहे,
स्नान कर चैन की साँस ले रहे।
जीव-जंतु वृक्षों के नीचे,
दबे, कुचले आहें भर रहे,
मानो बच्चों की नावें तैर रहे।
अनगिनत पानी में समाधि ले गए,
कई घर छोड़ पलायन कर गए।