यह तेरे मामू हैं, मेरे पिता नहीं

- सर्वोत्तम वर्मा

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शहर में सब ओर साम्प्रदायिक तनाव हो गया। बाजार में किसी मुस्लिम चूड़ीवाले की दुकान से शुरू हुई झड़प पूरे शहर में फैल गई। शाम होते-होते सड़कें वीरान और गलियाँ सूनी, जो जहाँ था, वहीं से सुरक्षित जगह भाग लिया था।

नगर प्रशासन की ओर से धारा एक सौ चवालीस लगा दी गई और कुछ संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस की गश्त शुरू हो गई थी। पुलिस आते-जाते लोगों की तलाशी लेती थी कि कहीं कोई उपद्रवी सामान तो नहीं ले जाया जा रहा है।

नगर के बीचोंबीच से जाने वाली सड़क का एक छोटा-सा भाग ऐसा था जिसके एक ओर रमजानपुरा और दूसरी ओर हनुमाननगर था। उस टुकड़े पर रेलवे स्टेशन से आया एक ऑटो दोनों ओर के लड़ाके लड़कों से घिरा हुआ था। ऑटो में बैठी दोनों लड़कियाँ किसी और नगर के स्कूल की यूनीफार्म पहने थीं और शक्ल-सूरत से भी एक-सी दिख रही थीं। उनकी दो अटैचियाँ थीं जिन पर उनके नाम लिखे थे- शबनम और ज्योत्स्ना। बस।
  शहर में सब ओर साम्प्रदायिक तनाव हो गया। बाजार में किसी मुस्लिम चूड़ीवाले की दुकान से शुरू हुई झड़प पूरे शहर में फैल गई। शाम होते-होते सड़कें वीरान और गलियाँ सूनी, जो जहाँ था, वहीं से सुरक्षित जगह भाग लिया था। नगर प्रशासन ने धारा एक सौ चवालीस लगा दी थी।      


अभी दोनों ओर के समझदार लड़ाके उनमें से हिन्दू को और मुस्लिम को पहचानने में लगे ही थे कि गश्ती पुलिस की वैन आती नजर आई। दोनों लड़कियों में से जो कुछ सुंदर-सी एक अटैची लेकर उतरी और हनुमाननगर में जाने लगी। उसे देखकर दूसरी भी उतरी और दूसरी अटैची लेकर रमजानपुरा में दाखिल हो गई। ऑटो वाला बिना पैसे लिए ही वापस स्टेशन की ओर भाग छूटा। गश्ती पुलिस की वैन सायरन बजाती हुई निकली पर पूरी सड़क सुनसान थी। वह आगे निकल गई।

रमजानपुरा में गई लड़की को मुसलमान लड़कों ने जान लिया था। दो लड़के उसके दोनों हाथ पकड़े खड़े थे। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। वह कह रही थी, 'मैं शबनम हूँ। मुझे मेरे घर जाने दो। मीठे कुँए वाली गली के सिरे पर मेरा घर है।'

आगे बढ़कर एक युवक ने उसे सँभाला और ले चला उसे घसीटते हुए। वह अपने साथियों को बोला, 'बासौदा वाली शब्बो है, मेरी फूफी की लड़की।' और उसका हिसाब होते ही लड़ाके सड़क पर आ गए।

उधर हनुमाननगर में गई लड़की हिंदू वीरों के हाथों धरी गई और उसका परीक्षण होने पर जैसे ही वीरों के नायक ने उसकी अटैची पर लिखा नाम पढ़कर पूछा, 'तुम ज्योत्स्ना हो न? कहाँ जाओगी? किसके घर? पिता का नाम बोलो तो हम तुम्हें सुरक्षित पहुँचा देंगे।'

उसने अटैची नीचे जमीन पर रख दी और नायक का हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़कर कहा, 'भाई जान, मैं ज्योत्स्ना नहीं शबनम हूँ। हड़बड़ी में रमजानपुरा की बजाय इधर आ गई। मेरे पिता का नाम आपने पूछा है। मेरे मामू अतीक अहमद मीठे कुँए वाली गली के सिरे पर रहते हैं। रमजानपुरा में।' कुछ वीर उसकी अटैची की ओर लपके और उसको खोलने लगे। नायक ने रोका भी पर हर कोई जोश में था। शबनम ने स्कर्ट की जेब से निकालकर चाबी दे दी और अटैची खोल दी गई। उसमें सबसे ऊपर रखी थी गोस्वामी तुलसीदास रचित पवित्र पुस्तक 'रामचरितमानस।'

लड़के चक्कर में पड़ गए। अटैची तो ज्योत्स्ना की ही है यह निश्चित हो गया पर चाबी शबनम के पास कैसे? अब इस शबनम का क्या करें? शबनम ने कहा, 'भाईजान, मैं जानती हूँ कि आपके जिगर में खून का एक भी कतरा बाकी रहा, तब तक मैं महफूज हूँ। आप ज्योत्स्ना को देखिए जाकर। वह बेचारी उनके हाथों पड़कर...।'

नायक ने उसका मुँह रोका, बोला, 'इसे ज्योत्स्ना के घर पहुँचा देते, पर उसका घर मालूम है किसी को?' सब चुप। तो शबनम ही बोली, 'भाईजान, मेरे साथ किसी को कर दीजिए। मैं जानती हूँ उसका घर।'

वह अभी भी नायक का हाथ पकड़े थी। अब नायक ने उसका हाथ पकड़ा और पीछे आने की कहकर सड़क की ओर आ गया। उधर सब तैयार थे। कुछ देर हुँकार सुनाई दिए फिर शांति हो गई। तभी रमजानपुरा से भागता एक लड़का सड़क के बीचोंबीच आया और नायक से बोला, 'मेघराज, देख लो मैं निहत्था हूँ, मेरे पास आओ। जो कहता हूँ ध्यान से सुनो।'

मेघराज शबनम का हाथ पकड़े सड़क पर आ गया, कहा, 'बोलो रफीक मियाँ, कोई दाँव मत खेलना, हाँ।'

'तुम दाँव खेलने की कह रहे हो मुझसे?' रफीक बोला, 'दाँव तो इन लड़कियों ने खेल डाला है हम दोनों से।'

'क्या कहते हो रफीक मियाँ?'

'मेघराज, शब्बो को मैंने गोदी खिलाया था पर पिछले दस सालों से देखा नहीं था सो एक शब्बो को मैं पहले ही घर पहुँचा आया हूँ। भीतर पहुँचकर वह अब्बा के सीने से लग गई। रो तो वह पहले से ही रही थी। अब्बा की बाँह उसकी पीठ से छुई भर थी कि वह बिलखने लगी, 'आप शबनम को बचा लीजिए। वह उन लड़कों के हाथों पकड़कर कहीं लुट न जाए। उसका हाथ पकड़े हुए मेरे अब्बा धीरे-धीरे चलकर आ रहे हैं।'

वह कह ही रहा था कि ज्योत्स्ना अतीक अहमद के साथ आ गई। अतीक अहमद ने मेघराज से कहा, 'बरखुरदार, घर जाकर चैन से सोओ। इन लड़कियों का दाँव चल गया। रफीक, सबसे कहो कि सड़क के पार हमारी कोई दुश्मनी नहीं है।'

शबनम मेघराज के पीछे से सामने आई तो अतीक के साथ आई ज्योत्स्ना उससे लिपट गई। 'तेरे मामू शब्बो... मैं उस समय भूल गई थी कि ये मेरे मामू हैं, मेरे पिता नहीं।'