साइबेरिया में उसने एक सेठ से कहा कि मैं जमीन खरीदना चाहता हूँ। सेठ ने कहा- ठीक है, जितना पैसा लाए हो यहाँ रख दो और कल सुबह सूरज के निकलते ही तुम चलते जाना और सूरज के डूबते ही उसी जगह पर लौट आना जहाँ से चले थे, शर्त बस यही है। जितनी जमीन तुम चल लोगे, उतनी तुम्हारी हो जाएगी।
यह सुनकर वह आदमी रातभर योजनाएँ बनाता रहा कि कितनी जमीन घेर लूँ। उसने सोचा 12 बजे तक पुन: लौटना शुरू करूँगा, ताकि सूरज डूबते-डूबते पहुँच जाऊँ। जैसे ही सुबह हुई वह भागा। मीलों चल चुका था। बारह बज गए, मगर लालच का कोई अंत नहीं। सोचा लौटते वक्त जरा सी तेजी से और दौड़ लूँगा तो पहुँच जाऊँगा अभी थोड़ा और चल लूँ।
कुछ गज की दूरी पर गिर पड़ा। तब घिसटते हुए उसका हाथ उस जमीन के टुकड़े पर पहुँचा, जहाँ से भागा था और सूरज डूब गया। वहाँ सूरज डूबा और यहाँ वह आदमी भी मर गया। शायद हृदय का दौरा पड़ गया था। वह सेठ हँसने लगा। जीने का समय कहाँ है? सब लोग भाग रहे हैं।