लघुकथा : कहो ना प्यार है

तुमने मुझसे आज तक नहीं कहा कि तुम्हें मुझसे प्यार है।
अरे...कितनी बार तो कहा ! 
अच्छा बताओ जरा कब कहा ?
 

उस दिन, जब तुम मम्मी के साथ मॉल में थी और अचानक मुझे देखकर चौंक गई थी। वो फटी आंखें देखकर मैंने कहा था...
जनाब, कहा कुछ नहीं था। चुपचाप गायब हो गए थे वहां से।
और उस दिन जब मैं तुमसे मिलने की जल्दी में अलग-अलग रंग की जुराबें पहनकर आ गया था। कैसे दोहरी होकर हंस रही थीं तुम। तब मैंने....
हां याद है मुझे । तब तुमने कहा था, खुलकर हंसती हुई कितनी खूबसूरत लगती हो तुम ! 
अच्छा, तो जब हम दोनों मंदिर गए थे और तुमने लाल चुनरी सिर पर डाली थी। तब मैंने... 
ओ..... तब तुमने कहा था तुम्हारा ये रूप कितना अलग है। जी चाहता है तुम्हें सदा ऐसे ही देखूं।
अरे यार, छोड़ो सब। चलो आज ही कह देता हूं। 
 सच ? तो जल्दी से कहो ना ?
ओह ! तुम्हारी ये बेसब्र आंखें कितनी कमाल लगती हैं।

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