'तो क्या रूही आपा अपना कुरआन पूरा नहीं कर पाएंगी ?'
'मैंने यह तो नहीं कहा कि रूही अपना कुरआन पूरा नहीं करेगी, मैंने तो इतना ही कहा कि वो अब मदरसे में पढ़ने नहीं जाएगी।'
'पर ऐसा क्या हो गया ?' जोया ने सवालिया नजरों से अम्मी को देखते हुए कहा।
'अभी तुम छोटी हो। रूही आपा बड़ी हो गई है, बड़ी लड़कियां मदरसे में पढ़ने नहीं जाया करती'... अम्मी जोया को समझाती हुई बोलीं।
'तो क्या अम्मी, जब हम बड़े होंगे, हम भी मदरसे में पढ़ने नहीं जाएंगे?' जोया ने खुशी जाहिर करते हुए सवाल किया।
'हां, वो पांच नंबर गली वाली नसरीन आप हैं ना, उन्हीं के जाना, कल से रूही वहीं जाया करेगी और घर के कुछ काम भी सीखेगी।' अम्मी ने जोया के सवालों का जवाब दिया।
अब अम्मी जोया को क्या समझाती कि एक खास उम्र के बाद लड़कियों में जिस्मानी बदलाव होता है जिसकी वजह से लड़कियां मस्जिद-मदरसों में नहीं जाया करतीं। औरतें तो वैसे भी नापाक होती हैं। और नापाक चीज खुदा को भी पसंद नहीं। वो तो फिर भी खुदा का घर होता है। अम्मी इसी उधेड़बुन में नमाज की तैयारी करने जा रही थी।
रूही खुश थी कि अब उसे मदरसे में जाना नहीं होगा। उसे भी अपने जिस्मानी बदलाव की वजह से शर्म और झिझक महसूस होने लगी थी। मौलाना के सामने जाते उसे बहुत शर्म आती थीअ वो भी सोच रही थी कि नसरीन आपा के यहां है ही कौन? उनके मियां अक्सर बाहर ही रहते हैं काम के सिलसिले में और लड़का भी साथ ही चला जाता है। आपा पढ़ी-लिखी और जहीन हैं। यही सोचते सोचते रूही आपा के घर पहुंच जाती है।
सलाम दुआ होती है।
'कहां तक पढ़ा है कुरआन?' नसरीन आपा पूछती हैं।
'जी अभी कुरआन लगा ही है।' रूही जवाब देती है।
'ठीक है, अभी पढ़ो एक घंटे बाद पिछला कहीं से भी सुनेंगे।' नसरीन आपा सबक देकर चली जाती हैं।
नसरीन आपा के पांच छः लड़कियां और आती थीं, जो कि रूही से बड़ी थीं। वो उन्हीं के साथ बैठ पढ़ने लगी।
वैसे आपा बहुत ही पर्दानशीं थी। जरा भी सिर से दुपट्टा ढलकने नहीं देती थीं, ना तो अपना और ना ही पढ़ने वाली लड़कियों का। उनका कहना था कि सिर से दुपट्टा उतरते ही शैतान सवार हो जाता है।
एक दिन रूही ने देखा कि आपा के भाई आए हुए हैं। सब उन्हें मामू कह रहे थे। मामू उसी कमरे में बैठते थे जहां लड़कियां पढ़ाई करती थीं। वो भी क्या करें, कमरा भी तो एक ही था। हां, आपा तो सबक देकर दुकान पर बैठ जाया करती थीं, जो बाहर दरवाजे पर थी।
रूही ने देखा कि मामू सब लड़कियों से कह रहे थे कि आओ हमें अपना सबक सुनाओ।
सब हंस कर कमरे से बाहर आ जाती। बाहर धूप में ही तो सब पढ़ रहे थे। पर उनके हंसने की वजह रूही को समझ नहीं आई।
उन्होंने रूही से कहा, 'तुम सुनाओ अपना सबक।'
सब हंस रही थी। रूही चली गई। उन्होंने थोड़ा सबक सुनने के बाद कहा, ठीक से याद करके फिर सुनाओ आके।'
अगली बार रूही से फिर से गई। जैसे ही रूही गई और सुनाने बैठी तो मामू ने रूही को छूने की कोशिश की और दो दिन ऐसे जगह हाथ लगाया कि रूही झिझक गई। उस चीज को याद करके रूही तो कांप ही गई। छुट्टी होने पर घर वापस आ गई लेकिन रह-रह के उसे सब याद आ रहा था जिससे उसे घिन पैदा हो रही थी।
'रूही,रूही, जाओ पढ़ने जाओ।' रूही की अम्मी उसे आवाज दे रही थीं।
'नहीं अम्मी, हम नहीं जाएंगे।'
'क्यों नहीं जाओगी? कुरआन भी तो पूरा करना है। कुरआन पूरा ना किया तो पता हम पर कितना अजाब होगा।' अम्मी उसे समझा रही थीं।
रूही को उस गुनाह की फिक्र नहीं थी, लेकिन जो गुनाह उसके साथ हुआ उसकी उसे फिक्र थी। पर यह बात वह बताए तो किसे बताए?
'अब कोई भी तो नहीं है जिसे मैं बताऊं, किससे पूछूं? मरजाना मरता भी नहीं है वो मामू...रूही बुदबुदा रही थी।
'अब क्या बुदबुदा रही है? अम्मी ने सवाल किया।
'कुछ नहीं अम्मी।'
'तो जाओ तैयार होकर नसरीन आपा के यहां पढ़ने।' अम्मी ने डांटते हुए कहा।
किसी और चीज का खौफ हो या ना हो लेकिन खुदा का खौफ था अम्मी को। यही तो सीखा था अम्मी ने बचपन से। उनका कहना था कि कुरआन की तिलावत करना बहुत जरुरी है। घर में किसी एक के पढ़ लेने भर से उसके खानदान की सात पुश्तों के गुनाह माफ होते हैं। अब अगर पढ़ाई ना की तो मरने के बाद कब्र में बहुत अजाब होगा और दोजख में तो उल्टा लटकाया जाएगा। मां-बाप की नाफर्मानियां करने पर कोड़े मारे जाएंगे और भी ना जाने क्या-क्या...। रूही को तो यह सब सुनकर रूह कांप जाती थी।
इसी सोच में रूही आपा के घर पहुंच जाती है। 'शुक्र है कि आज मामू नहीं है...' रूही बुदबुदाई।
आज कई लड़कियां छुट्टी पर थी, तो रूही ने हिना से पूछा, क्यों हिना आज मामू नहीं है.?'
'अच्छा है, जो नहीं है। बहुत दिक्कत होती है उसके होने पर। कमबख्त आ जाता है' हिना गुस्से में बोली।
'क्यों क्या हुआ ? ' रूही ने कुरेदने की कोशिश की।
'आपा से मत बताना, नहीं तो डांट लगेगी। अरे वो आदमी तो बहुत ही खराब है। बहुत ही बेहूदा हरकतें करता है। किसी से बताना नहीं, ना घर ना आपा से। हिना ने गुपचुप तरीके से कहा।
बातों ही बातों में रूही को पता चला कि इन पर्दानशीं घरों में सब बेपर्दा होता है। वो अक्सर लड़कियों से अजीब हरकतें किया करते थे। जिनका पता आपा को ना चलता था।
'तो चलो आपा से कहते हैं...' रूही ने कहा।
'आपा से कहोगी तो हमारी डांट पड़ेगी, उनके घर की इज्जत की मामला है.' हिना समझाते हुए बोली।
'हां, घर में भी नहीं कह सकते। क्या बताएंगे, कैसे बताएंगे ? रूही थोड़ा घबराते हुए से बोली।
'पता है एक दिन तो उन्होंने मेरा जारबंद तक खोल दिया था, वो तो किसी तरह मैं भागी. हिना ने रूही को बताया।
'तुमने आपा से शिकायत नहीं की..?' रूही बोली।
'कहा था एक बार जैनब ने। आपा कह रही थी. हमारी इज्जत है इस मोहल्ले में, तुम हमारे भाई पर इल्जाम लगाकर हमें बदनाम करना चाहती हो। हम तुम्हें बदनाम कर देंगे। खबरदार ! कल से जो यहां आई। हिना रूही को बता रही थी।
' तो क्या अगले दिन जैनब आई?'
'नहीं, आपा ने बाकी लड़कियों को बताया कि जैनब बहुत ही बदतमीज लड़की थी। बड़ों से जुबान लड़ाती है, ऐसी बदतमीज लड़कियों को मैं नहीं पढ़ाती, हिना बोली।
'अगले दिन आपा दूसरी लड़कियों से बोली, 'हिना और रूही बहुत ही बदतमीज और बेहया लड़कियां थीं। वो बड़ों से जुबान लड़ाती थीं। ऐसी बदतमीज बच्चों को मैं नहीं पढ़ाती। हमारी भी मोहल्ले में इज्जत है कि नहीं! अब कोई ऐसा करेगा तो यहां मत आना।' नसरीन आपा दूसरी लड़कियों को बता रही थी।
हिना, रूही और जैनब तो वहां से बच निकलीं। लेकिन कब्र के अजाब का डर बाकी लड़कियों की दिमाग में अभी भी था।