प्राचीन भारतीय परंपरा में यज्ञ या वहन किए जाने की परंपरा चली आ रही है। आज भी पूजा के समापन या विशेष अवसरों पर हवन किए जाने की परंपरा है। खासकर नवरात्रि के अंतिम दिन या किसी देवी या देवता के प्रकटोत्सव पर हवन किया जाता है। किसी गुरु की जयंती पर भी हवन किया जाता है। आखिर हवन या यज्ञ करने का क्या है वैज्ञानिक महत्व और क्या होगा होम करने से फायदा।
हवन सामग्री : हवन में खासकर आक, ढाक, कत्था, चिरचिटा, पीपल, आम, गूलर, जांड, दूब, कुशा, नीम, पलाश, चंदन, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़ आदि का होम किया जाता है। इसके अलावा गुड़, घी, तिल, जौ, कर्पूर, गूगल, चावल, शक्कर, लौंग, इलायची, अगर, तगर, नागर मोथा, बालछड़, छाड़छबीला आदि कई समग्री डाली जाती है। मुख्यत: आम, बड़, पीपल, ढाक, जांटी, जामुन और शमी से हवन किया जाता है।
पांच प्रकार के यज्ञ : ब्रह्मयज्ञ (ईश्वर उपासना, ऋषि संत्संग), देवयज्ञ (देव पूजा और अग्निहोत्र कर्म), पितृयज्ञ (श्राद्ध कर्म), वैश्वदेवयज्ञ (प्राणियों को अन्न जल देना), अतिथि यज्ञ (मेहमानों की सेवा करना) इसमें से देवयज्ञ में ही हवन आदि कर्म किया जाता है।
हवन का वैज्ञानिक महत्व : Scientific Importance of Yajna:
- हवन में डाले जाने वाले घी और गुड़ से ऑक्सिजन का निर्माण होता है।
- विभिन्न प्रकार के धुएं पर किए गए शोधानुसार सिर्फ आम की 1 किलो लकड़ी जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए लेकिन जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डालकर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर 94 प्रतिशत कम हो गया। कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं बाहर निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था। इस धुएं का असर करीब एक माह तक रहता है।