कैसे बना यहूदियों का राज्य इसराइल, लड़ाई का केंद्र यरुशलम
सोमवार, 17 मई 2021 (19:54 IST)
वर्तमान में इसराइल के 4 प्रमुख क्षेत्र हैं- तेल अवीव, यरुशलम, हैफा और बीयर शेव। परंतु प्राचीन समय में इसमें फिलिस्तीन के क्षेत्र गाजापट्टी और रामल्लाह भी शामिल थे। आओ जानते हैं कि कैसे इजराइल बना यहुदियों का अधिकृत क्षेत्र।
1. यहुदियों के पैगंबर हजरत मूसा : हजरत मूसा का जन्म संभवत: ईसा पूर्व 1392 को मिस्र में हुआ था। उस काल में मिस्र में फेरो का शासन था। उनका देहावसान संभवत: 1272 ईसा पूर्व हुआ। ह. अब्राहम के बाद यहूदी इतिहास में सबसे बड़ा नाम 'पैगंबर मूसा' का है। ह. मूसा ने यहूदी धर्म को एक नई व्यवस्था और स्थान दिया। उन्होंने मिस्र से अपने लोगों को ले जाकर इसराइल में बसाया। यहूदियों के कुल 12 कबीले थे जिनको बनी इसराइली कहा जाता था। एक कबीले को छोड़कर सभी अपने प्राचीन साम्राज्य इसरायल में जा बसे थे।
2. प्रभु यहोवा ने दिया देश : प्राचीन मेसोपोटामिया (वर्तमान इराक तथा सीरिया) में सामी मूल की विभिन्न भाषाएं बोलने वाले अक्कादी, कैनानी, आमोरी, असुरी आदि कई खानाबदोश कबीले रहा करते थे। इन्हीं में से एक कबीले का नाम हिब्रू था। वे यहोवा को अपना ईश्वर और ह. अब्राहम को आदि पितामह मानते थे। उनकी मान्यता थी कि यहोवा ने ह. अब्राहम और उनके वंशजों के रहने के लिए इसराइल देश नियत किया है।
3. मिस्र से यहूदियों का अपने देश लौटना : ह. अब्राहम मध्य में उत्तरी इराक से कानान चले गए थे। वहां से ह.अब्राहम के खानाबदोश वंशज और उनके पुत्र इसाक और इस्माइल, जो तब तक 12 यहूदी कबीले बन चुके थे, मिस्र चले गए। मिस्र में उन्हें कई पीढ़ियों तक गुलाम बनकर रहना पड़ा। मिस्र में वे मिस्रियों के साथ रहते थे, लेकिन दोनों ही कौमों में तनाव बढ़ने लगा तब मिस्री फराओं के अत्याचारों से तंग आकर हिब्रू (यहूदी) कबीले के लोग लगभग ई.पू. 13वीं शताब्दी में वे ह. मूसा के नेतृत्व में पुन: अपने देश इसराइली लौट आए।
4. यहूदी 'निष्क्रमण' : लौटने की इस यात्रा को यहूदी इतिहास में 'निष्क्रमण' कहा जाता है। इसराइल के मार्ग में सिनाई पर्वत पर ह. मूसा को ईश्वर का संदेश मिला कि यहोवा ही एकमात्र ईश्वर है अत: उसकी आज्ञा का पालन करें, उसके प्रति श्रद्धा रखें और 10 धर्मसूत्रों का पालन करें। ह. मूसा ने यह संदेश हिब्रू कबीले के लोगों को सुनाया। तत्पश्चात अन्य सभी देवी-देवताओं को हटाकर सिर्फ यहोवा की आराधना की जाने लगी। इस प्रकार यहोवा की आराधना करने वाले यहूदी और उनका धर्म यहूदत कहलाया।
5. ईसाई और इस्लाम धर्म का उदय : इसके सैंकड़ों वर्षों तक यहूदी अपने राज्य में खुश थे परंतु...ईसाई धर्म के उदय के बाद दुनिया बदल गई और फिर अरब में इस्लाम की उदय के बाद यहुदियों के बुरी दिन प्रारंभ हो चले। हजरत मुहम्मद सल्ल. की वफात के मात्र 100 साल में इस्लाम समूचे अरब जगत का धर्म बन चुका था।
6. पहला क्रूसेड : अगर 1096-99 में ईसाई फौज यरुशलम को तबाह कर ईसाई साम्राज्य की स्थापना नहीं करती तो शायद इसे प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) नहीं कहा जाता। जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे। इस कत्लेआम ने मुसलमानों को सोचने पर मजबूर कर दिया। जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में एकजुट हुए और पहली दफा अरबी भाषा के शब्द 'जिहाद' का इस्तेमाल किया गया। जबकि उस दौर में इसका अर्थ संघर्ष हुआ करता था। इस्लाम के लिए संघर्ष नहीं, लेकिन इस शब्द को इस्लाम के लिए संघर्ष बना दिया गया।
7. दूसरा क्रूसेड : 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। 1191 में तीसरे धर्मयुद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े। इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-बदर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी। लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दरबदर रहना पड़ा जबकि उनका साथ देने के लिए कोई दूसरा नहीं था। वह या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में रह रहे थे।
8. यरुशललम के लिए लड़ाई जारी : इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिए जंग करते रहे। लगभग 600 साल के इस्लामिक शासन में इसराइल, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अफ्रीका आदि मुल्कों में इस्लाम स्थापित हो चुका था। लगातार जंग और दमन के चलते विश्व में इस्लाम एक बड़ी ताकत बन गया था। इस जंग में कई संस्कृतियों और दूसरे धर्म का अस्तित्व मिट चुका था।
9. इस्लाम विरुद्ध ईसाई : 17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ जहां इस्लाम स्थापित किया जा रहा था। यह था अंग्रेजों का वह काल जब मुसलमानों से सत्ता छीनी जा रही थी। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। उसी दौरान अरब राष्ट्रों में पश्चिम के खिलाफ असंतोष पनपा और वह ईरान तथा सऊदी अरब के नेतृत्व में एक जुट होने लगे। बहुत काल तक दुनिया चार भागों में बंटी रही, इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य। फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। कम्यूनिस्ट आंदोलन, आजादी के आंदोलन चले और सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा। इसके चलते ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया तो कई नए मुल्कों का जन्म हुआ।
10. द्वितीय विश्व युद्ध : द्वितीय विश्व युद्ध में यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली। यहां दुनिया भर से यहूदी फिर से इकट्ठे होने लगे। इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया जिसके विरोध में फिलिस्तीन इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ। फिर से एक नई जंग की शुरुआत हुई जो अभी तक चल रही है।
11. इसराइल के 4 प्रमुख क्षेत्र हैं- तेल अवीव, यरुशलम, हैफा और बीयर शेव। यरुशलम इसराइल का सबसे बड़ा शहर है। यरुशलम को इब्रानी में येरुशलयिम और अरबी में अल-कुद्स कहा जाता है। इसे जेरूसलम भी कहते हैं। मध्यपूर्व का यह प्राचीन नगर यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का संगम स्थल है। उक्त तीनों धर्मों के लोगों के लिए इसका महत्व है इसीलिए यहां पर सभी अपना कब्जा बनाए रखना चाहते हैं। फिलिस्तीन इसे अपनी राजधानी बनाना चाहता है जबकि इसराइल अपनी। इसराइल का एक हिस्सा है गाजा पट्टी और रामल्लाह, जहां फिलीस्तीनी मुस्लिम लोग रहते हैं। इसे स्वतंत्र देश की घोषित कर रखा है। फिलीस्तीनी लोग यरुशलम को इसराइल के कब्जे से मुक्त कराना चाहते हैं।
गाजा पट्टी एक छोटे सा फिलिस्तीनी क्षेत्र है, यह मिस्र और इसरायल के मध्य भूमध्यसागरीय तट पर स्थित है। फिलिस्तीन अरबी और बहुसंख्य मुस्लिम बहुल इलाका है। इस पर 'हमास' द्वारा शासन किया जाता है जो इजरायल विरोधी समूह है। वो यूं क्योंकि फिलिस्तीन और कई अन्य मुस्लिम देश इजरायल को यहूदी राज्य के रूप में मानने से इनकार करता है।
1947 के बाद जब यूएन ने फिलिस्तीन को एक यहूदी और एक अरब राज्य में बांट दिया था जिसके बाद से फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संर्घष जारी है जिसमें एक अहम मुद्दा जुइस राज्य के रूप में स्वीकार करना है तो दूसरा गाजा पट्टी है जो इजराइल की स्थापना के समय से ही इजरायल और दूसरे अरब देशों के बीच संघर्ष का कारण साबित हुआ है।