दक्षिणी गुजरात के धरमपुर एवं कपराडा क्षेत्रों में कुंकणा, वारली, धोड़िया, नायका आदि आदिवासियों द्वारा होली के दिन खाने, पीने और नाचने (खावला, पीवला और नाचुला) का भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। ये आदिवासी होली के त्योहार के दिनों में जीवन के दुःख, दर्द और दुश्मनी को भूलकर गीत गाकर तथा तूर, तारपुं, पावी, कांहली, ढोल-मंजीरा आदि वाद्यों की मस्ती में झूमने लगते हैं।