आप में से शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो कभी किसी रोग के चंगुल में न फँसा हो। आज की हमारी भाग-दौड़ की जिंदगी, जिसने एक ओर रोगों की भरमार पैदा कर दी है, वहीं दूसरी ओर दवा व इलाज इतना महँगा है कि शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के पश्चात उसका तनाव नए रोगों के रूप में प्राप्त हो जाता है।
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इन परेशानियों का हल कुछ हद तक प्रकृति के समीप ही मिल सकता है। और हम इससे या तो अनजान हैं अथवा हम इसे नजरअंदाज कर रहे हैं। प्रकृति प्रदत्त उपहारों में से एक है गेहूँ के ज्वारे, जो एक उपयोगी औषधि के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।
अनेक प्रयोगों तथा अनुसंधानों के पश्चात पाया गया है कि इनमें अत्यधिक पोषक तत्व होते हैं। प्रतिदिन तीन से चार गिलास रस भी पिया जा सकता है। कैंसर के इलाज में इसका प्रयोग किया जा रहा है। हाथ-पैरों में दर्द, आँख की तकलीफ, शरीर की दुर्बलता, मुख की दुर्गंध, सर्दी -जुकाम, गुर्दे की पथरी में यह विशेष रूप से उपयोगी है। ऐसा माना जाता है कि यह रक्त में वृद्धि करता है, जिसके कारण इसे वैज्ञानिकों द्वारा 'हरा लहू' की संज्ञा दी गई है। जीवन के आखिरी चरण में पहुँच चुके लोगों को इसने नई शक्ति प्रदान की है।
ज्वारे उगाने का सही तरीका :
प्रकृति की इस अनुपम भेंट से आप भी लाभान्वित हो सकते हैं। इसके लिए मिट्टी के 8 गमले लें। उनमें मिट्टी भरकर एक-एक करके प्रतिदिन गमलों में क्रम से गेहूँ बो दें। इस तरह आपके लिए 8 दिन की औषधि तैयार हो गई। जब पहले गमले में ज्वारे 7-8 इंच तक हो जाएँ तो उन्हें काट लें व दो-तीन घंटे के भीतर इनका रस पी लें अथवा चबा लें।
अगले दिन दूसरे गमले के लिए भी यही क्रम दोहराएँ। इस प्रकार आपको निरंतर ज्वारे मिलते रहेंगे। इनके लगातार सेवन से आप कुछ हद तक बीमारियों से बचे रहेंगे। साथ ही कमजोरी व थकान रफूचक्कर हो जाएगी। इस संदर्भ में यह ध्यान रखें कि गमले छायादार स्थानों पर रखें व ज्वारों को अधिक लंबा न होने दें, क्योंकि इसका प्रभाव लंबाई बढ़ने पर घटने लगता है। ज्वारों के रस में नमक न डालें। यदि स्वादिष्ट बनाना हो तो शहद की कुछ मात्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह एक अत्यंत सस्ता व आसान प्रयोग है, जिसे विदेशों में भी आजमाया जा चुका है। निःसंदेह यह आपके व आपके स्वास्थ्य के लिए वरदान साबित होगा।