गरीबी से घिरी बेटियां, दिन-रात संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होकर अपनी शिक्षा और सपनों को तो पूरा कर लेती हैं, लेकिन पुरुष वर्ग को शायद उसका ये पढ़ना-लिखना, आगे बढ़ना तथा उनके कदम से कदम मिलाकर चलने का प्रयास शायद उन्हें अपने ही नजरों में जीने नहीं देता हैं, इसीलिए तो अपने माता-पिता द्वारा हर अच्छी-बुरी परिस्थिति का सामना करके बेटियों को समाज में सिर उठाकर चलने की इस सीख और भावना को कुछ लोग सहन नहीं कर पाते हैं और उनके साथ अभद्र तथा अनैतिकतापूर्ण व्यवहार करके उनको बेइज्जत करने में अपनी शान समझते हैं।
शादी के बाद पिता के घर को भूलकर इस नए घर को अपनाती हैं, जहां वे सिर्फ अपने पति के लिए सभी को हमेशा खुश रखने का प्रयास करती हैं और मां बनने के पश्चात तो उसका पूरा जीवन अपने पूरे परिवार के प्रति समर्पण और मात्र अपने बच्चों और ससुराल वालों का होकर रह जाता है, लेकिन यहां भी बेटियों की अधिक कद्र नहीं होती और वे निरंतर उपेक्षा की शिकार होती रहती है। ससुराल में वो अपना करियर छोड़कर परिवारजनों की सेवा में लग जाती है, लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें यहां भी भेदभाव, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा आदि का शिकार होती हैं।
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