साठ वर्ष आजादी के

आजादी के साठ वर्षों में हमारा देश बहुत से उतार-चढ़ावों से गुजरा है। इन वर्षों में जहाँ हमने ढेरों उपलब्धियाँ हासिल कीं, वहीं दूसरी ओर पीड़ा और दुर्दिनों का भी सामना किया। आजादी के इन साठ वर्षों में हमारे देश के इन दोनों चेहरों पर एक नजर :
जब आँखें हो आती हैं नम...
दो टुकड़ों में टूटा भारत
भारत को आजादी मिलते ही इसके सीने पर पहला जख्‍म पड़ा देश के विभाजन के रूप में। अँग्रेजों ने भारत को अपनी गुलामी से मुक्‍त जरूर किया, लेकिन इसके पहले उन्‍होंने देश की आत्‍मा को छलनी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विभाजन की त्रासदी आज भी आँखें नम कर देती है। सांप्रदायिकता का जो बीज अँग्रेजों ने बोया, हम आज भी उसकी दुखद फसल काट रहे हैं।

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छोड़ गए बापू
देश को आजाद हुए अभी एक साल भी नहीं बीता था कि अहिंसा के पुजारी राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गाँधी की गोली मारकर हत्‍या कर दी गई। इस गोली ने बापू को अमर बना दिया। गाँधीजी को लगी गोली की गूँज ने भारत ही नहीं, पूरे विश्‍व को हिलाकर रख दिया।

जब देश में लगा आपातकाल
26 जून, 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक दाग की तरह रहेगा, क्‍योंकि इसी दिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित किया था। इस आपातकाल को लागू करने का कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह फैसला था, जिसमें न्‍यायालय ने लोकसभा चुनाव में इंदिरा गाँधी की जीत को अनुचित करार दे दिया था। न्‍यायालय के फैसले पर गैरलोकतांत्रिक ढंग से प्रतिक्रिया देते हुए इंदिरा गाँधी ने आपातकाल घोषित कर दिया। आपातकाल का यह फैसला न केवल भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर एक बदनुमा दाग है, बल्कि स्‍वयं इंदिरा गाँधी के राजनीतिक जीवन की यह सबसे बड़ी भूल है।

इंदिरा पर दागी गोलियाँ
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31 अक्‍टूबर, 1984 का दिन ढ़लते हुए भारत को एक बार फिर सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस गया। इसी दिन देश की प्रधानमंत्री इं‍दिरगाँधी पर उनके अंगरक्षकों ने उनके निवास स्‍थान पर मशीनगन से गोलियाँ दागकर उन्‍हें मौत की नींद सुला दिया। इंदिरा गाँधी की हत्‍या देश के लिए बहुत बड़ा सदमा थी। हमारा देश से इस सदमे से पूरी तरह उबर पाता, इसके पहले ही सांप्रदायिक दंगों की चिंगारी ने पूरे देश को अपनी लपट में घेर लिया। आज इन दंगों के जख्‍म भले ही भर चुके हों, लेकिन दाग अभी तक बाकी हैं।


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मौत की नींद सोया भोपाल
3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल शहर अगले 84 वर्षों तक नहीं भूला पाएगा। इसी काली रात को मौत शहर की हवाओं में घुल गई और 20,000 से अधिक लोग रातोंरात काल के गर्त में समा गए। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्‍लांट में एक भूल की वजह से कंपनी की यूनिट से विषैली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट की 40 टन मात्रा का स्राव हुआ। आज भी यह जख्‍म देश के सीने में हरा है। यह अब तक हुई विश्‍व की सबसे बड़ी औद्योगिक दुघर्टना है।

फिर छीना जिगर का टुकड़ा
इंदिरा गाँधी की हत्‍या के छ: वर्षों के बाद ही उनके पुत्र राजीव गाँधी भी एक षड्यंत्र के शिकार हो गए। 21 मई, 1991 को लिट्टे संगठन के कुछ आतंकवादियों के एक आत्‍मघाती हमले में युवा राजनीतिज्ञ राजीव गाँधी की मौत हो गई। 22 मई की सुबह राजीव गाँधी की हत्‍या की खबर सुनकर सारा देश हतप्रभ हो गया। एक ओर जहाँ एक युवा और लोकप्रिय नेता ने इस दुनिया से विदा ली, वहीं आतं‍कवादी हमले की सफलता ने हमारे सुरक्षातंत्र की पोल भी खोल दी।

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बाबरी मस्जिद विवाद
6 दिसंबर, 1992 के दिन अयोध्‍या में बाबरी मस्जिद को ध्‍वस्‍त कर दिया गया। एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए यह घटना शर्मनाक तो थी ही, साथ ही इस विध्‍वंस के बाद देश एक बार फिर सांप्रदायिकता की चपेट में आ गया। सांप्रदायिकता की इस आग को नियंत्रण में करने के लिए देश के विभिन्‍न शहरों में कई दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा। उद्योग-धंधे, स्‍कूल-कॉलेज, आवागमन, सांस्‍कृतिक गतिविधियाँ सबकुछ बंद रहीं। बाबरी मस्जिद को गिराना उचित था या अनुचित यह विवाद आज भी थमा नहीं है।


सुरसा बनी धरती
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26 जनवरी, 2001 की सुबह जब भारत गणतंत्र दिवस मना रहा था, उसी सुबह नियति भयानक कोहराम मचा रही थी। सुबह नौ से दस बजे के बीच गुजरात के भुज में भूकंप के झटके लगे, जिनकी तीव्रता रिक्‍टर पैमाने पर 7.6 नापी गई। इस भूकंप ने रंगीले और समृद्ध गुजरात पर किसी असुर की तरह प्रहार किया। सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस भयावह आपदा में 19 हजार, 727 लोग मारे गए, 1 लाख, 66 हजार घायल हो गए और 6 लाख लोग बेघर हुए।

तबाही की लहरे
26 दिसंबर, 2004 को क्रिसमस के ठीक दूसरे दिन सुबह की कच्‍ची धूप में जब अंडमान निकोबार से लेकर कन्‍याकुमारी तक कई लोग समुद्र की लहरों का आनंद ले रहे थे, अचानक यह आनंद आतंक में बदल गया। इंडोनेशिया के द्वीप सुमात्रा के समुद्र उठी सुनामी लहरें देश कई तटीय इलाकों को लील गईं। इन लहरों की चपेट में तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, पांडिचेरी और अंडमान और निकोबार द्वीप आए थे। इन लहरों से हुई तबाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस ने भारत के भूगोल को ही बदल डाला। भारत का उत्‍तरी छोर कहलाने वाला इंद्रा प्‍वाइंट सुनामी की चपेट में आ गया।

रुक गई मुंबई की धड़क
11 जुलाई, 2006 का दिन मायानगरी मुंबई कभी नहीं भूला सकेगी, क्‍योंकि इसी दिन कुछ आतंकवादी संगठनों ने मुंबई की धड़कन को रोककर पूरे देश को ह्दयाघात देने का प्रयास किया। 11 जुलाई, 2006 को 11 मिनटों के अंतराल पर मुंबई की लोकल ट्रेनों में सात बम विस्‍फोट हुए। इन विस्‍फोटों ने न केवल मुंबई, बल्कि पूरे देश की श्‍वास को चंद पलों के लिए स्थिर कर दिया। देश की आर्थिक राजधानी पर हमला करके भारत को घायल करने का एक असफल प्रयास था, मुंबई बम ब्‍लास्‍ट। भले ही मुंबई की धड़कन न थमी हो पर इसनने जो घाव दिए, उसकी पीड़ा अभी कम नहीं हुई है।

गर्व से ऊँचा मस्तक भारत का

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भारत बना गणतंत्र...
आजादी के बाद 26 जनवरी, 1950 का दिन भारत के इतिहास का सबसे महत्‍वपूर्ण दिन था। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। भारत को एक धर्मनिरपेक्ष, संप्रभु और लोकतांत्रिक गणराज्‍य घोषित किया गया था। प्रथम गणतंत्र दिवस के साथ ही भारत के इतिहास में एक और गौरवशाली दिवस जुड़ गया, जब विश्‍व का सबसे बड़ा और सुलिखित संविधान लागू करने का गौरव भारत का प्राप्‍त हुआ। इस संविधान में विश्‍व के अलग-अलग राष्‍ट्रों की अच्‍छाइयों को शामिल किया गया था।

हरित क्रांति...
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1943 में अविभाजित और गुलाम भारत ने बंगाल में अकाल की विभीषिका भुगती थी। आजादी के बाद कृषि के क्षेत्र में आत्‍मनिर्भर होना भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। समृद्ध और खुशहाल भारत के निर्माण के लिए जरूरी था कि दो वक्‍त की रोटी हर भारतीय की पहुँच में हो। इसी सिद्धांत को आधार बनाकर 1967 से 1978 तक हरित क्रांति का बिगुल बजाया गया। 1967 में जिस हरित क्रांति की शुरूआत हुई, उसमें किसानों की मेहनत सरकार के प्रयास और कृषि तकनीकों के विकास की मदद से सफलता प्राप्‍त हुई और देश खाद्यान्‍न मामलों में आत्‍मनिर्भरता की ओर बढ़ा। एक समय अमेरिका से लाल गेहूँ आयात करने वाला देश आज अनाजों का निर्यातक है।

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1971 की विजय...
1971 में बांग्‍लादेश के स्‍वतंत्रता संघर्ष में भारत ने बांग्‍लादेश को अपना पूरा सहयोग दिया। बांग्‍लादेश के साथ वादा निभाते हुए भारत की सेनाओं ने रणभूमि में पाकिस्‍तानी सेनाओं को पराजित कर भारतीय शौर्य और वीरता का परचम लहराया। यह विजय भारत के लिए सिर्फ एक सैन्‍य विजय या कूटनीतिक स्‍तर पर शक्ति प्रदर्शन ही नहीं था, बल्कि इस विजय के साथ सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए भारत का आत्‍मसम्‍मान, आत्‍माभिमान वापस लौटा था।

टेलीविजन का प्रवेश...
भारत में टेलिविजन की शुरुआत 1959 में हुई। शुरुआती दौर में टेलीविजन केवल धनाढ्य वर्ग तक ही सीमित था। अपने आगमन के पूरे 13 वर्षों के बाद भारत में दिल्‍ली के अतिरिक्‍त एक अन्‍य टेलीविजन प्रसारण केंद्र की स्‍थापना मुंबई में 1972 में हुई। इसके बावजूद टेलिविजन की पहुँच उच्‍च और उच्‍च-मध्‍य वर्ग तक ही सीमित रही। इसके दस वर्ष बाद 1982 में एशियाड खेलों के दौरान टेलीविजन का जादू भारतीय जनमानस के दिलोदिमाग पर छाया रहा।

अंतरिक्ष तक पहुँचे भारत के कदम...
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19 अप्रैल, सन 1975 को भारत ने पहली बार अंतरिक्ष के दरवाजे पर दस्‍तक दी। इस दिन भारत ने अपना पहला उपग्रह 'आर्यभट्ट' रूस की मदद से अंतरिक्ष में भेजा। उसके बाद भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र की स्‍थापना की गई और भारत ने इस क्षेत्र में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज विश्‍व भर में भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को सम्‍मानित किया जाता हैं। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत आज दुनिया के वि‍कसित देशों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चल रहा है।

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1983 का विश्‍वकप...
सन् 1983 में जब कपिल देव के नेतृत्‍व में भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्‍वकप पर अपना कब्‍जा जमाया तो देश में रात भर जश्‍न मनाया गया। खेल के मैदान में भारतीय प्रतिभा के लहराते परचम को देख हर भारतीय का दिल गद्गद हो गया। सामूहिक खुशी के इस अनूठे अवसर पर देश में खूब खुशियाँ मनाई गई।

जब खोले अर्थतंत्र के दरवाजे...
1991 का वर्ष भी भारत के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण रहा। इसी वर्ष तत्‍कालीन वित्‍तमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के लिए नई आर्थिक नीति तय की। यह आर्थिक नीति इससे पूर्व चली आ रही नीति की अपेक्षा उदार थी। यहीं से भारत में उदारीकरण और वैश्‍वीकरण की नींव पड़ गई, जिसका प्रतिसाद आज हमें देश भर में गगनचुंबी इमारतों, सड़कों पर सरपट दौड़ती गाडि़यों, रोजगार के अनेक विकल्‍पों और आम भारतीयों के जीवन स्‍तर में आए सुधार के रूप में दिख रहा है।

भारतीय मनीषा हुई सिरमौर...
भारत की तकनीकी और औद्योगिक प्रगति का सपना अपनी आँखों में सजाए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत में आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्‍थानों की स्‍थापना की थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू के ख्‍बाव को प्रतिभाशाली भरतीय युवाओं ने अपने परिश्रम से साकार कर दिखाया। किसी समय भारत और भारतीयों को पिछड़ा करार देने वाले पश्चिमी देश आज इन संस्‍थानों से पढ़कर निकले युवाओं को सिर-आँखों पर बिठाकर अपनी संस्‍थाओं की बागडोर उनके हाथों में सौंप देते है। व्‍यवसायिक भाषा में कहें तो इन संस्‍थाओं और यहाँ के विद्यार्थियों ने भारत की ब्रांडि़ग में एक अहम् भूमिका निभाई औशर विश्‍वपटल पर भारत को एक सम्‍मानजनक स्‍थान दिलाया।

कारगिल युद्ध...
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सन् 1999 में पाकिस्‍तान ने भारत से काश्‍मीर छीनने के लिए एक नया षडयंत्र रचा। पाकिस्‍तान समर्थित घुसपैठियों ने भारत और पाकिस्‍तान के बीच की वास्‍‍तविक नियंत्रण रेखा को पार कर भारत की कई महत्‍वपूर्ण पहाडि़यों पर अपना कब्‍जा जमाने की कोशिश की थी। पीठ पीछे किये गए इस वार का भारतीय सेनाओं ने मुँह तोड़ जवाब दिया और घुसपैठियों को खदेड़ दिया। एक बार फिर भारतीय पराक्रम के आगे षडयंत्रकारियों को झुकना पड़ा। इस विजय के बाद एक मजबूत और आत्‍मनिर्भर राष्‍ट्र के रूप में भारत की छवि और भी पुख्‍ता हुई।

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सूचना क्रांति...
1990 के दशक में भारत में सूचना क्रांति की शुरुआत हुई। पिछले दो दशकों में इस क्रांति ने पूरे देश में सफलता, सकारात्‍मकता की सहज धारा प्रवाहित की। सूचना क्रांति ने तकनीक को पूरे देश में बिना किसी भेदभाव के समान रूप से प्रसारित कर आमजन के जीवन को सरल बनाया। बैंक का एटीएम कार्ड हो या मोबाइल फोन, इनकी सुलभता ने आम भारतीयों के जीवन स्‍तर को सुधारा। जो बातें पहले केवल कल्‍पना में संभव थीं, उसे इस क्रांति ने यथार्थ में कर दिखाया।

महिला बनी राष्‍ट्राध्‍यक्
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हाल ही में प्रतिभा पाटिल भारत की राष्‍ट्रपति चुनी गई हैं। देश के सर्वोच्‍च पद पर आसीन होने वाली वह पहली महिला हैं। यह हमारे देश के लिए बहुत गौरव की बात है। अब भारत का नाम भी विश्‍व के उन देशों की सूची में शुमार हो गया है, जहाँ महिलाओं ने देश का सर्वोच्‍च पद सँभाला है।

प्रस्तुति : नूपुर दीक्षित